हीमोफीलिया, एक गंभीर रक्त रोग है जिसमें रक्त थक्का (क्लॉट) नहीं
बनता और रक्तस्राव बढ़ जाता है। यह एक अनुक्रमिक रूप से वार्तालापित रोग है, जिसमें रक्त थक्का बनाने और रक्तस्राव को नियंत्रित
करने के लिए महत्वपूर्ण घटकों की कमी होती है। यह एक उत्तेजक रोग है, जिसमें छोटे घाव या कटाव से भी अत्यधिक रक्तस्राव हो
सकता है। हीमोफीलिया के रोगी अक्सर बार-बार अनेक छोटे-छोटे घावों के कारण अत्यधिक
रक्तस्राव की स्थिति में पड़ सकते हैं।
हीमोफीलिया का
मुख्य कारण रक्त में एक कमजोरी होती है,
जो क्लॉटिंग कारकों की
कमी के कारण होती है। हीमोफीलिया रोग जीवन के पहले चरण में विकसित होता है, अर्थात्,
इसका प्रकार जन्म के समय
से ही निश्चित हो जाता है। यह एक आनुवंशिक रोग है, जो
उत्तराधिकारी विशेष गुणांकन (एलेल) के परिवर्तनों के कारण होता है।
हीमोफीलिया के
लिए जनेटिक उत्पत्ति लक्षण दोषपूर्ण एकल जीन में होती है, जिसका परिणाम होता है कि शरीर फैक्टर VIII, फैक्टर IX
या फैक्टर XI के लिए उपलब्ध रक्त क्लॉटिंग गुणों में कमी होती है।
जब यह फैक्टर कमी होती है,
तो रक्त क्लॉटिंग
प्रक्रिया में कमी होती है,
जिसके परिणामस्वरूप
हीमोफीलिया के रोगी को बड़े और छोटे घावों के रूप में अत्यधिक रक्तस्राव का सामना
करना पड़ता है।
हीमोफीलिया रोग
का पता लगाने के लिए प्राथमिक चरण आमतौर पर जन्म के बाद ही होता है, जब रक्तस्राव के विशेष रूप से अत्यधिक होने के लक्षण
दिखाई देते हैं। यह रोग उत्तराधिकारिता के लिए लिंग निर्धारित होता है, यानी यह पुरुषों और महिलाओं दोनों को प्रभावित कर सकता
है, लेकिन यह पुरुषों में अधिक सामान्य है।
सामान्यत: नवजात
शिशुओं में हीमोफीलिया का पता लगता है,
जब वे किसी चोट के बाद
अधिक ब्लीडिंग के लक्षण दिखाते हैं। यह रोग जीवन के पहले चरण में होता है, लेकिन उसे पहचाना और संभाला जा सकता है ताकि अनुकूल
उपचार प्रदान किया जा सके।
हीमोफीलिया के
प्रकार:
1. हीमोफीलिया A: यह सबसे सामान्य प्रकार है, जिसमें रक्त में फैक्टर VIII की कमी होती है।
2. हीमोफीलिया B: इस प्रकार में रक्त में फैक्टर IX की कमी होती है।
3. हीमोफीलिया C: यह प्रकार बहुत ही दुर्लभ है और इसमें रक्त में फैक्टर
XI की कमी होती है।
हीमोफीलिया के
लक्षण:
1. घावों से अत्यधिक रक्तस्राव: छोटे घावों
से अधिक रक्तस्राव होना।
2. जोड़ों के दर्द: अक्सर हीमोफीलिया के
रोगियों को जोड़ों में दर्द और सूजन की समस्या होती है।
3. ब्राउन रंग के खून के छिद्र: जब रक्तस्राव
होता है, तो खून का रंग काला या ब्राउन हो सकता है।
4. नाक से बहना: नाक से अत्यधिक रक्तस्राव हो
सकता है।
5. चक्कर आना: अधिक रक्तस्राव के कारण चक्कर
आना।
हीमोफीलिया के
उपचार:
1. फैक्टर प्रदान करना: हीमोफीलिया के उपचार
के लिए अधिकांश रोगी को रक्त में गुणों को बढ़ाने के लिए फैक्टर दिए जाते हैं।
2. रक्तस्तंभन: अत्यधिक रक्तस्राव को
नियंत्रित करने के लिए रक्तस्तंभन उपचार भी किया जा सकता है।
3. चिकित्सा और रक्त संचार: सामान्यतः, रक्त संचार (ब्लड ट्रांसफ्यूजन) के माध्यम से उपचार
किया जाता है, जिसमें स्वस्थ रक्त के उत्पादन के लिए
रक्तदानकर्ताओं का सहारा लिया जाता है।
हीमोफीलिया के
उपचार के लिए सावधानियाँ:
1. घावों से बचाव: रोगी को छोटे छोटे घावों
से बचाव के लिए सावधान रहना चाहिए। यह शारीरिक क्रिकेट और अन्य खेलों में संभावित
चोटों को रोकने के लिए सुरक्षा प्राथमिकता देना चाहिए।
2. रक्त परीक्षण: हीमोफीलिया रोगी को नियमित
अंतराल पर रक्त की जाँच करवानी चाहिए ताकि उनका रक्त क्लॉटिंग समय मापा जा सके।
3. ब्राउन रंग के खून के छिद्र का परीक्षण:
यदि किसी को नाक से ब्राउन रंग के खून के छिद्र के रूप में खून आता है, तो तुरंत चिकित्सक से संपर्क करना चाहिए।
4. डाइट और व्यायाम: स्वस्थ आहार और नियमित व्यायाम से स्वस्थ रहना भी महत्वपूर्ण है।