9/11 हमले की कहानी
1990 के दशक में अल-कायदा नामक आतंकवादी संगठन, जिसकी अगुवाई ओसामा बिन लादेन कर रहा था, अमेरिका के खिलाफ कई हमलों की योजना बना रहा था। इस संगठन का उद्देश्य अमेरिका और उसके सहयोगियों पर हमला करके अपने राजनीतिक और धार्मिक एजेंडे को आगे बढ़ाना था। अमेरिका में 11 सितंबर 2001 को हुआ हमला इसी बड़े आतंकवादी योजना का हिस्सा था।
हमला शुरू होने से पहले:
11 सितंबर 2001 की सुबह, अमेरिका में एक सामान्य दिन की शुरुआत हो रही थी। लोग अपने रोज़मर्रा के काम में व्यस्त थे। इस दौरान चार यात्री विमानों को हाइजैक (अपहरण) किया गया। इन हाइजैकर्स ने इन विमानों को हथियार के रूप में इस्तेमाल करने की योजना बनाई थी।
हाइजैकिंग की शुरुआत:
वह सुबह 8:46 बजे थी जब पहला हाइजैक किया हुआ विमान, अमेरिकन एयरलाइंस फ्लाइट 11, न्यूयॉर्क शहर के वर्ल्ड ट्रेड सेंटर के नॉर्थ टॉवर से टकरा गया। इस टक्कर ने सभी को चौंका दिया, और चारों ओर दहशत फैल गई। शुरुआत में लोगों को लगा कि यह एक भयानक दुर्घटना है।
दूसरा हमला:
9:03 बजे दूसरा विमान, यूनाइटेड एयरलाइंस फ्लाइट 175, वर्ल्ड ट्रेड सेंटर के साउथ टॉवर से टकराया। अब यह स्पष्ट हो चुका था कि यह कोई हादसा नहीं था, बल्कि अमेरिका पर सुनियोजित हमला हो रहा था। इस दूसरे हमले ने पूरे देश और दुनिया को स्तब्ध कर दिया।
पेंटागन पर हमला:
तीसरा विमान, अमेरिकन एयरलाइंस फ्लाइट 77, सुबह 9:37 बजे अमेरिका के रक्षा मंत्रालय, पेंटागन, से टकराया। इस हमले ने अमेरिका की सैन्य ताकत के दिल पर सीधा वार किया। इसके बाद पूरे देश में आपातकालीन स्थितियां लागू हो गईं।
चौथे विमान का पतन:
चौथा विमान, यूनाइटेड एयरलाइंस फ्लाइट 93, जो वॉशिंगटन डी.सी. की ओर बढ़ रहा था, उसे यात्रियों ने आतंकवादियों से मुकाबला करके दुर्घटनाग्रस्त कर दिया। यह विमान सुबह 10:03 बजे पेंसिल्वेनिया के एक खेत में गिरा। माना जाता है कि यह विमान वाशिंगटन में व्हाइट हाउस या कैपिटल बिल्डिंग को निशाना बनाने वाला था।
वर्ल्ड ट्रेड सेंटर के टॉवर गिरना:
पहले हमले के एक घंटे बाद, सुबह 9:59 बजे, वर्ल्ड ट्रेड सेंटर का साउथ टॉवर गिर गया। इसका मलबा चारों ओर फैल गया और कई लोगों की जान चली गई। 10:28 बजे, नॉर्थ टॉवर भी गिर गया। इन दोनों टॉवरों का गिरना इतिहास की सबसे भयावह घटनाओं में से एक था।
हमले के बाद की स्थिति:
इस हमले में लगभग 3,000 लोगों की मौत हो गई, जिसमें कई पुलिसकर्मी, फायरफाइटर, और नागरिक शामिल थे। इसके बाद न्यूयॉर्क शहर और वाशिंगटन डी.सी. में आपातकालीन बचाव कार्य शुरू किए गए। दुनिया भर में इस हमले की निंदा की गई और आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई की शुरुआत हुई।
अमेरिका की प्रतिक्रिया:
9/11 के हमले के बाद, अमेरिका ने आतंकवाद के खिलाफ वैश्विक अभियान की शुरुआत की। इसके तहत अफगानिस्तान में तालिबान शासन के खिलाफ युद्ध छेड़ा गया, क्योंकि तालिबान ने ओसामा बिन लादेन और अल-कायदा को शरण दी हुई थी। अक्टूबर 2001 में, अमेरिका और उसके सहयोगी देशों ने अफगानिस्तान पर हमला किया और तालिबान शासन को हटा दिया।
ओसामा बिन लादेन की खोज:
अमेरिका ने ओसामा बिन लादेन को पकड़ने और न्याय दिलाने के लिए कई सालों तक प्रयास किए। अंततः 2 मई 2011 को, अमेरिकी नेवी सील्स ने पाकिस्तान के एबटाबाद में बिन लादेन को खोजकर मार गिराया। इस घटना के बाद भी अल-कायदा और अन्य आतंकवादी संगठनों का खतरा बना रहा, लेकिन अमेरिका के इस अभियान को एक बड़ी सफलता के रूप में देखा गया ।
ओसामा बिन लादेन का पकड़ा जाना:
ओसामा बिन लादेन, अल-कायदा का प्रमुख और 9/11 हमलों का मास्टरमाइंड, एक लंबे समय तक अमेरिका की "सबसे वांछित" सूची में सबसे ऊपर था। हमले के बाद, बिन लादेन कई सालों तक फरार रहा और अमेरिका उसकी खोज में जुटा रहा। आखिरकार, दस साल की खोजबीन के बाद, 2 मई 2011 को अमेरिका ने उसे मार गिराया। यह ऑपरेशन आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में एक बड़ी सफलता के रूप में देखा गया।
9/11 के बाद ओसामा का छिपना:
9/11 के हमले के बाद, ओसामा बिन लादेन अफगानिस्तान में छिप गया, जहां उसे तालिबान का समर्थन प्राप्त था। अमेरिका ने 2001 में अफगानिस्तान में युद्ध छेड़ा, जिससे तालिबान का शासन गिर गया, लेकिन बिन लादेन फरार हो गया। शुरुआती अटकलों के अनुसार, वह अफगानिस्तान-पाकिस्तान सीमा के पहाड़ी इलाकों में कहीं छिपा हुआ था। उसने कई सालों तक भूमिगत रहते हुए अल-कायदा का संचालन जारी रखा।
पाकिस्तान में ओसामा का ठिकाना:
2010 में, अमेरिकी खुफिया एजेंसियों को जानकारी मिली कि ओसामा बिन लादेन पाकिस्तान के एबटाबाद शहर में एक सुरक्षित परिसर में छिपा हुआ है। इस सूचना के आधार पर, अमेरिका ने गुप्त रूप से इस ठिकाने की निगरानी शुरू की। यह ठिकाना एक बड़े और सुरक्षित घर जैसा था, जो कि एबटाबाद में सैन्य छावनी के पास स्थित था। इस ठिकाने की सुरक्षा और गतिविधियों ने अमेरिकी एजेंसियों को यह विश्वास दिलाया कि यहाँ कोई बड़ा शख्स छिपा हुआ है।
ऑपरेशन की योजना:
अमेरिका के तत्कालीन राष्ट्रपति, बराक ओबामा, को इस जानकारी के बारे में अवगत कराया गया। कई महीनों की योजना और खुफिया जानकारी इकट्ठा करने के बाद, राष्ट्रपति ओबामा ने ओसामा बिन लादेन को पकड़ने या मार गिराने के लिए एक गुप्त सैन्य मिशन की मंजूरी दी। इस ऑपरेशन को "ऑपरेशन नेपच्यून स्पीयर" नाम दिया गया।
ऑपरेशन नेपच्यून स्पीयर:
1 मई 2011 की रात, अमेरिकी नेवी सील्स की एक विशेष टीम को हेलीकॉप्टर से एबटाबाद भेजा गया। यह टीम अत्यधिक प्रशिक्षित कमांडो थी, जिन्हें बिन लादेन को पकड़ने का कार्य सौंपा गया था। रात में, सील्स ने बिन लादेन के ठिकाने पर हमला किया। इस दौरान, उन्होंने ओसामा बिन लादेन को ढूंढ निकाला और उसे मार गिराया। इस ऑपरेशन के दौरान कई अन्य आतंकवादी भी मारे गए, और ओसामा का शव कब्जे में ले लिया गया।
बिन लादेन की मौत:
बिन लादेन को सिर में गोली मारकर हत्या कर दी गई। उसके शव की पहचान के लिए डीएनए परीक्षण किया गया, और पुष्टि की गई कि यह वास्तव में ओसामा बिन लादेन ही था। अमेरिकी अधिकारियों ने उसे इस्लामी रीति-रिवाजों के अनुसार समुद्र में दफनाने का निर्णय लिया, ताकि उसकी कब्र को किसी प्रकार के आतंकवादी प्रचार या प्रतीकात्मक स्थल के रूप में इस्तेमाल न किया जा सके।
ऑपरेशन की सफलता और वैश्विक प्रतिक्रिया:
2 मई 2011 को, राष्ट्रपति ओबामा ने आधिकारिक रूप से ओसामा बिन लादेन की मौत की घोषणा की। इस समाचार ने दुनिया भर में हलचल मचा दी। अमेरिका में इसे आतंकवाद के खिलाफ युद्ध में एक बड़ी जीत के रूप में देखा गया, और बिन लादेन की मौत का जश्न मनाया गया। हालांकि, कुछ जगहों पर, विशेष रूप से मुस्लिम देशों में, इस ऑपरेशन की आलोचना भी की गई, लेकिन अधिकांश अंतरराष्ट्रीय समुदाय ने इसे न्याय की जीत के रूप में देखा।
आतंकवाद पर प्रभाव:
ओसामा बिन लादेन की मौत से अल-कायदा कमजोर जरूर हुआ, लेकिन यह संगठन पूरी तरह खत्म नहीं हुआ। बिन लादेन के मारे जाने के बाद, अल-कायदा ने अन्य नेताओं की अगुवाई में अपने अभियानों को जारी रखने की कोशिश की। हालांकि, उसकी शक्ति और प्रभाव में कमी आई, लेकिन अन्य आतंकवादी संगठन जैसे आईएसआईएस (ISIS) का उदय हुआ।