ब्रिटिश राज का अभ्युदय एवं प्रथम स्वतंत्रता संग्राम,Rise of British Raj and First War of Independence

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ब्रिटिश राज का इतिहास

1858 से 1947  ब्रिटिश शासन की अवधि है। ब्रिटिश शासन प्रणाली को 1858 में स्थापित किया गया था जब ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी की सत्ता को महारानी विक्टोरिया के हाथों में सौंपा गया और विक्टोरिया को 1876 में भारत की महारानी घोषित किया गया । और 1947 में  ब्रिटिश भारतीय साम्राज्य को दो स्वतंत्र देशों में विभाजित कर दिया गया भारतीय संघ (बाद में भारतीय गणराज्य) और पाकिस्तान (बाद में पाकिस्तानी इस्लामी गणतंत्र, जिसका पूर्वी भाग बाद में बांग्लादेश गणराज्य बना)।  

भारतीय साम्राज्य के पूर्वी क्षेत्र में बर्मा प्रांत को 1937 में एक अलग उपनिवेश बनाया गया और वह 1948 में स्वतंत्र हुआ। 

भारत में यूरोपीय कम्पनियों का आगमन

बंगाल में अंग्रेज

👉अंग्रेजों ने बंगाल में पहली फैक्ट्री शाहजहाँ के काल में शुजा (बंगाल सूबेदार) की आज्ञा से 1651 में हुगली में लगायी।

👉11651 में ही शुजा ने एक फर्मान द्वारा कम्पनी को तीन हजार रूपये वार्षिक कर के बदले व्यापार का विशेषाधिकार दे दिया। तत्पश्चात् अंग्रेजी कोठियाँ कासिमबाजार, पटना आदि स्थानों में भी खुल गयीं। 

👉1698 में अंग्रेजों को सूबेदार अजीम-उस-शान से सुतनुती, कालिकाता और गोविंदपुर नामक तीन गाँवों की जमींदारी मिल गयी, जो बाद में फोर्ट विलियम कहलायी। 

👉1717 में मुगल बादशाह फर्रुखसियर ने पिछले सूबेदारों द्वारा दिये गये व्यापारिक विशेषाधिकार को फिर से पष्ट कर दिया, जिसके अनुसार अंग्रेजों को तीन हजार रुपये वार्षिक कर के बदलो चुंगी कर से मुक्त कर दिया गया। 

👉सिराजुद्दौला (मिजा मुहम्मद) 9 अप्रैल, 1756 ई. को अलीवर्दी खाँ की मृत्यु के बाद सिराजुद्दौला गद्दी पर बैठा। सिराजुद्दौला के नवाब बनने का विरोध पूर्णिया के शौकत जंग व ढाका की घसीटी बेगम कर रहे थे जिनका साथ अंग्रेज दे रहे थे। इसके अतिरिक्त नवाब द्वारा कर मांगें जाने पर अंग्रेजों ने कलकत्ते आने वाले भारतीय वस्तुओं पर भारी चुंगी लगा दी। 

ब्लैक होल

20 जून, 1756 को फोर्ट विलियम पर सिराजुद्दौला ने अधिकार कर लिया। अंग्रेज अधिकारियों ने भागकर फुल्टा द्वीप पर शरण ली। इसी आक्रमण में कहा जाता है कि नवाब सिराजुद्दौला ने एक सौ छियालीस अंग्रेज कैदियों को एक छोटी सी ब्लैक होल नामक कोठरी में रात भर के लिये बन्द कर दिया, जिसमें से केवल तेइस आदमी जिन्दा बचे। परन्तु इस घटना की सत्यता संदिग्ध है। इस कथा का वर्णन हौलवेल ने किया है, जो स्वयं भी एक कैदी था। 

इस घटना के बाद क्लाइव और वाट्सन के नेतृत्व में एक सेना मद्रास से कलकत्ता पहुंची, जहाँ उसने आसानी से 2 जनवरी, 1757 को कलकत्ता पर दुबारा अधिकार कर लिया।

प्लासी का युद्ध

👉अंग्रेजों ने चन्द्रनगर(फ्रांसीसी उपनिवेश ) पर आक्रमण करके मार्च, 1757 को उसे जीत लिया जिसका विरोध सिराजुद्दौला ने किया और फ्रांसीसी भगोड़ों को अपने यहाँ शरण दी।

👉अंग्रेजों ने सिराजुद्दौला के स्थान पर मीरजाफर को नवाब बनाने का निर्णय लिया।

👉23 जून, 1757 को मुर्शिदाबाद से 30 किलोमीटर दूर प्लासी के मैदान पर नवाब और अंग्रेजों की सेना का मुकाबला हुआ, जिसमें सिराजुद्दौला की पराजय हुयी तथा उसका वध कर दिया गया। 

👉25 जून को मीर जाफर को बंगाल का नवाब घोषित कर दिया गया।

👉प्लासी के युद्ध का ऐतिहासिक दृष्टि से बहुत महत्व है। इससे बंगाल पर विजय का अंग्रेजों का रास्ता खुल गया तथा अंत में संपूर्ण भारत की विजय का मार्ग प्रशस्त हो गया।

1760 की क्रांति

यद्यपि मीर जाफर अधिक समय तक अंग्रेजों की धन की मांग पूरी न कर सका। इन सबसे ऊबकर मीर जाफर ने चिनसूरा के डचों से मिलकर षड्यंत्र रचा, परन्तु नवम्बर, 1759 में बेदारा के युद्ध में अंग्रेजों ने डचों को पराजित कर दिया। 27 सितम्बर, 1760 में अंग्रेजों ने मीर जाफर के दामाद मीर कासिम के साथ संधि की जिसमें उसे नायब सूबेदार के पद के बदले कम्पनी को बकाया चुकाना था तथा बर्दामान, मिदनापुर और चटगांव के जिले देना था। मीर-जाफर के मीर कासिम को नायब सूबेदार के पद को देने से इंकार करने पर उसे हटाकर अक्टूबर, 1760 में मीर कासिम को नवाब नियुक्त किया गया। यही घटना 1760 की क्रांति कहलाती है।

मीर कासिम

मीर कासिम ने कम्पनी के अधिकारियों को विपुल धनराशि प्रदान की। मीरकासिम अलीवर्दी खाँ के बाद बंगाल का योग्यता नवाब हुआ था। उसने अपनी राजधानी मुर्शिदाबाद से पूर्णिया स्थानान्तरित कर ली, सेना का गठन यूरोपीय पद्धति पर किया तथा अंग्रेजों के हाथ की कठपुतली बनना स्वीकार नहीं किया।

मीरकासिम ने कठोर कार्यवाही करते हुये सभी आंतरिक कर हटा दिये, जिससे अंग्रेज व भारतीय व्यापारी एक समान हो गये। 

बक्सर का युद्ध

👉अंग्रेजों ने मीर कासिम को 1763 में कई युद्ध में पराजित किया, जिसके फलस्वरूप वह भागकर अवध पहुँचा, जहाँ उसने नवाब शुजाउद्दौला और बादशाह शाहआलम द्वितीय के साथ मिलकर एक संघ कायम किया।

👉22 अक्टूबर, 1764 को बक्सर के युद्ध में अंग्रेज सेनापति हेक्टर मुनरो ने संघीय सेना को पराजित किया।

👉मीर-जाफर को पुनः नवाब बना दिया गया, शाह आलम अंग्रेजों से जा मिला और मीर कासिम भाग गया। 

👉बक्सर के युद्ध का भी भारीय इतिहास में अपना महत्व है। इसने अंग्रेजों की शक्ति का उत्तर भारत में निर्विरोध स्थापित कर दिया। बंगाल का नवाब उसने हाथ का कठपुतली था, अवध का नवाब सहायक तथा मुगल बादशाह उनका पेन्शनर ने दिल्ली जीतने के लिये मार्ग प्रशस्त कर दिया। 

नज्मुद्दौला

1765 के प्रारंभ में मीरजाफर की मृत्यु होने के बाद उसके पुत्र नज्मुद्दौला को गद्दी सौंपी गयी, परन्तु शासन की बागडोर नायब सूबेदार के हाथों में दी जानी थी, जिसे अंग्रेज मनोनीत करते और जिसे उनकी मर्जी के बिना नहीं हटाया जा सकता था। इसके अतिरिक्त नवाब को अपनी सेना की संख्या भी घटानी थी। यह शर्ते 20 फरवरी, 1765 की संधि के द्वारा डाली गयी।

इलाहाबाद की संधि

मई, 1765 में क्लाइव दुबारा बंगाल का गर्वनर बनकर आया और मुगल बादशाह शाह आलम द्वितीय से 12 अगस्त, 1765 को इलाहाबाद की संधि (इसके अनुसार अंग्रेजों को बंगाल, बिहार, उड़ीसा की दीवानी प्राप्त हुयी। इसके बदले में कम्पनी ने शाह आलम को कड़ा और इलाहाबाद के जिले तथा छब्बीस लाख रुपये वार्षिक पेंशन देना स्वीकार किया।

अब से शाह आलम द्वितीय को इलाहाबाद के किले में ब्रिटिश संरक्षण में रहना था।

अवध के नवाब शुजाउद्दौला को पचास लाख रुपये युद्ध क्षतिपूर्ति के रूप में कम्पनी को अदा करने थे। इसके अतिरिक्त अंग्रेजों ने बाहरी आक्रमण के समय नवाब को सैन्य मदद देने का वायदा इस शर्त पर किया कि यदि वह सेना का खर्च अदा करेगा। 

दोहरी सरकार

👉1765 की संधि से कम्पनी को नवाब नज्मुद्दौला ने निजामत (पुलिस, न्यायिक शक्ति) की शक्ति सौंप दी थी। इलाहाबाद की संधि द्वारा कम्पनी को दीवानी (वित्त एवं राजस्व अधिकार) शक्तियाँ प्राप्त हो गयी थी।

👉दीवान के रूप में कम्पनी सीधे राजस्व एकत्र करती थी और नायब सुबहदार के रूप में निजामत शक्तियों का प्रयोग करती थी। इतिहास में इस व्यवस्था को द्वैध शासन (Dual Government) कहा गया है।

👉द्वैध शासन व्यवस्था से अंग्रेजों को लाभ हुआ।

👉अंग्रेजों के पास सारी शक्तियाँ थीं, किन्तु उत्तरादायित्व नहीं था।

👉नवाब के अधिकारियों के पास शक्ति नहीं थी। इसका परिणाम यह हुआ कि कानून-व्यवस्था, व्यापार, वाणिज्य सब की हालत बदतर हो गयी।

👉द्वैध शासन 1767-1772 तक चला, जब वारेन हेस्टिंग्स ने इसे समाप्त कर दिया। 

महत्वपूर्ण बिन्दु

👉1706-1756 तक बंगाल को इसके निर्यात के लिये लगभग छः करोड़ पचास लाख रुपये प्राप्त हुये।

👉बंगाल में अंग्रेजी व्यापार की मुख्य वस्तुयें थीं- रेशम, फुटकर सूती के कपड़े, शोरा और चीनी।

👉जाब चर्नोक ने 1690 में सुतनुटी में एक अंग्रेज कोठी स्थापित की और इस प्रकार कलकत्ता की नींव डाली।

👉1756 में कलकत्ता जीतने के बाद सीराजुद्दौला ने उसका नाम अलीनगर रख दिया था।

👉प्लासी के युद्ध (23 जून, 1757) में अंग्रेजों का सेनापति क्लाइव तथा नवाब का सेनापति मीरजाफर थे।

👉प्लासी के युद्ध को 1757 की क्रांति भी कहा जाता है।

👉क्लाइव को जून, 1758 में कलकत्ता कौंसिल ने बंगाल का गवर्नर नियुक्त किया।

👉क्लाइव को मुगल बादशाह ने साबत जंग की उपाधिा दी।

👉द्वैध शासन के समय दीवानी कार्यों के लिये कम्पनी ने राजा शिताव राय को बिहार तथा मुहम्मद रजा खाँ को बंगाल का नायब दीवान नियुक्त किया।

👉मुहम्मद रजा खाँ ने नायब नाजिम के रूप में भी कार्य किया।

👉1765 से 1772 के मध्य बंगाल के शासन को द्वैध शासन (Dual Government) कहा गया है।

क्लाइव के शासन काल को के. एम. पन्निकर (K.M. Panniker) ने लुटेरा राज (Robber State) की संज्ञा दी है।

👉क्लाइव के शासन काल में भत्ते को लेकर ब्रिटिश सैनिकों ने विद्रोह किया था, जिसे श्वेत विद्रोह (White Mutiny) कहा गया है।

पहला भारतीय स्वाधीनता संग्राम

👉1857 की ग्रीष्म ऋतु में लॉर्ड कैनिंग के वायसरॉय के कार्यकाल के दौरान यह घटना घटी। 

👉इसे 1857 का विद्रोह या सैन्य द्रोह अथवा पहला स्वाधीनता संग्राम भी कहा जाता है। 

👉मेरठ का विद्रोह तथा दिल्ली पर कब्जा, एक व्यापक सैन्य विद्रोह तथा पूरे उत्तरी तथा साथ ही मध्य तथा पश्चिमी भारत में विद्रोह की भूमिका तैयार हुई। 

👉दक्षिण शांत रहा तथा पंजाब व बंगाल इससे आंशिक रूप से प्रभावित हुए। 

👉कम्पनी के सिपाहियों की कुल संख्या 2,32,224 में से लगभग आधों ने अपने रेजीमेटल 'कलर' के प्रति निष्ठा न रखने की घोषणा की तथा लम्बे समय से अनुशासन के एवं मेहनत से तैयार की गई सेना की विचारधारा को तिलांजलि दे दी।

👉1857 का विद्रोह भले ही असफल रहा हो परंतु इससे विदेशी शासन को समाप्त करने केलिए एक महान प्रयास प्रारंभ हो गया। 

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विद्रोह के प्रमुख कारण

1. आर्थिक शोषण तथा देश के परम्परागत ढाँचे का विनाश। 

2. डलहौजी का व्यपगत का सिद्धान्त (Coctrine of Lapse), जिसके कारण देशी रजवाड़े नष्ट हो गए थे। 

3. ब्रिटिश शासन का स्वरूप 'अनुपस्थित प्रभुसत्ता' (Absentee soverigntyship ) | इसके तहत यहाँ से एकत्रित किया गया धन (Revenue), यहां खर्च न कर ब्रिटेन भेजना। 

4. ब्रिटिश राज्य द्वारा स्थापित शांति की नीति (Pax Britannica) के कारण भारतीय रियासतों की सेनायें भंग हो गईं, तथा इन सेनाओं से निवृत्त सैनिकों पिण्डारी तथा ठगी जैसे समाज विरोधी कार्यों में लग गए। विद्रोह के दिनों में इन्हें स्वर्ण अवसर मिला और उन्होंने विद्रोहियों की संख्या में वृद्धि की। 

5. ब्रिटिश प्रजातीय श्रेष्ठता (Racial superiority) की नीति के तहत उन्होंने भारतीयों के साथ अपमानजनक व्यवहार किए तथा सैनिक-असैनिक क्षेत्रों में उच्च पदों पर उनके लिए प्रतिबंध लगाया। 

6. अंग्रेज सेनाओं की अपराजयेता का भ्रम टूटना। 

7. ईसाई मिशनरियों की गतिविधियाँ तथा ब्रिटिश सरकार द्वारा उनको दिया गया संरक्षण। 

8. 1850 में पारित धार्मिक अयोग्यता अधीनियम' (Religious Disabilities Act) इसके अनुसार धार्मिक परिवर्तन से पुत्र अपने पिता की सम्पत्ति से वंचित नहीं किया जा सकता था। 

9. सैनिकों को अपने जाति या धर्म के चिन्हों के उपयोग पर प्रतिबंध तथा 1856 का सामान्य भर्ती अधिनियम (General Service Enlistment Act) इस अधिनियम के तहत सैनिकों को आवश्यकता पड़ने पर समुद्र-पार भेजा था। भारतीय मान्यताओं के अनसार यात्रा पाप थी, तथा दंड स्वरूप उन्हें जाति से बाहर कर दिया जाता था।

10. 1854 का डाक घर अधिनियक (post office Act) के पारित होने पर सैनिकों की निःशुल्क डाक सुविधा समाप्त हो गई। 

11. चर्बी मिले कारतूसों (Greased cartridges) का प्रयोग- इस कारतूसों पर लगे खोल को दाँतों से काटना होता था। गाय तथा सुअर की चर्बी से निर्मित होने की वजह से सैनिकों को अपना धर्म भ्रष्ट होने की आशंका को बल मिला। इन कारतूसों का प्रयोग ने भारतीय सैनिकों तथा जनता में संचित हो रही असंतोष को चिंगारी प्रदान की। 

विद्रोह की असफलता के कारण

1857 के विद्रोह की असफलता के प्रमुख कारण निम्नवत् प्रभाव नायर के अतिम समर्थन की के दक्षिण

1. यह विद्रोह स्थानीय, असंगठित एवं सीमित था। बम्बई एवं मद्रास की सेनायें तथा नर्मदा नदी के दक्षिण के राज्यों ने विद्रोह में अंग्रेजों का समर्थन किया। राजस्थान में कोटा एवं अलवर के अतिरिक्त शेष स्थानों पर विद्रोह का कोई प्रभाव नहीं था। सिन्ध भी पूर्णतया शान्त था। 

2. अच्छे साधन एवं धनाभाव के कारण भी यह विद्रोह असफल रहा। अंग्रेजी अस्त्र-शस्त्र के समक्ष भारतीय, अस्त्र-शस्त्र बौने साबित हुए। 

3. 1857 के इस विद्रोह के प्रति 'शिक्षित वर्ग' पूर्ण रूप से उदासीन रहा। यदि इस वर्ग ने अपने लेखों एवं भाषणों द्वारा लोगों में उत्साह का संचार किया होता तो निःसन्देह विद्रोह का परिणाम कुछ और होता।

4. इस विद्रोह में 'राष्ट्रीय भावना का सचमुच अभाव था क्योंकि भारतीय समाज के सभी वर्गों का सहयोग इस विद्रोह को नहीं मिल सका। सामन्तवादी वर्गों में एक वर्ग ने विद्रोह में सहयोग किया परन्तु पटियाला, जीन्द, ग्वालियर एवं हैदराबाद के राजाओं ने विद्रोह को कुचलने में अंग्रेजों का सहयोग किया। 

5. विद्रोहियों में अनुभव, संगठन क्षमता व मिलकर कार्य करने की शक्ति की कमी थी। 

6. सैनिक दुर्बलता का विद्रोह की सहफलता में महत्वपूर्ण योगदान हैं बहादुरशाह जफर एवं नाना साहब एक कुशल संगठन कर्ता अवश्य थे, पर उनमें सैन्य नेतृत्व की क्षमता की कमी थी, वहीं अंग्रेजी सेना के पास लारेन्स बन्धु, निकल्सन, हैवलॉक, आउट्रम, एवं एडवर्क्स जैसे कुशल सेनानायक थे 

7. विद्रोहियों के पास उचित नेतृत्व का अभाव था। वृद्ध मुगल सम्राट बहादुर शाह जफर विद्रोहियों का उस ढंग से नेतृत्व नहीं कर सका जिस तरह के नेतृत्व की तत्कालीन परिस्थितियों में आवश्यकता थी। 

8. विद्रोहियों के पास ठोस लक्ष्य एवं स्पष्ट योजना का अभाव था। उन्हें अगले क्षण क्या करना होगा यह निश्चित न था, वे मात्र भावावेश एवं परिस्थितिवश आगे बढ़े जा रहे थे। 

9. आवागमन एवं संचार के साधनों के उपयोग से अंग्रेजों को विद्रोह को दबाने में काफी सहायता मिली और इस प्रकार आवागमन एवं संचार के साधनों ने भी इस विद्रोह को असफल करने में सहयोग दिया।

1857 के विद्रोह के परिणाम

1857 के विद्रोह के दूरगामी परिणाम रहे। इस विद्रोह के प्रमुख परिणाम निम्नवत् हैं

1. विद्रोह के समाप्त होने के बाद 1858 में ब्रिटिश संसद ने एक कानून पारित कर ईस्ट इंडिया कम्पनी के अस्तित्व को समाप्त कर दिया और अब भारत पर शासन का पूरा अधिकार महारानी के हाथों में आ गया। इंग्लैण्ड में 1858 के अधिनियम के तहत एक 'भारतीय राज्य सचिव की व्यवस्था की गयी, जिसकी सहायता के लिए 15 सदस्यों की एक 'मंत्रणा परिषद् बनाई गयी। इन 15 सदस्यों में 8 की नियुक्ति सरकार द्वारा करने तथा 7 की कोर्ट ऑफ डाइरेक्टर्स द्वारा चुनने की व्यवस्था की गई। 

2. महारानी विक्टोरिया के आदेशानुसर क्षेत्रों के अन्धाधुन्ध विस्तार की नीति को त्याग दिया गया, स्थानीय राजाओं को उनके गौरव एवं अधिकारों को पुनः वापस करने की बात कही गयी और साथ ही धार्मिक शोषण खत्म करने एवं सेवाओं में बिना भेदभाव के नियुक्ति की बात की गयी। 

3. 1861 में 'भारतीय जनपद सेवा अधिनियम, (Indian Civil Service Act) पास हुआ। इसके अनुसार प्रत्येक वर्श लन्दन में एक प्रतियोगी परीक्षा आयोजित करने की व्यवस्था की गयी, जिससे संश्रावित जनपद सेवा में भर्ती हो सके।  

4. सेना पुनर्गठन के आधार यूरोपीय सैनिकों की संख्या को बढ़ाया गया, उच्च सैनिक पदों पर भारतीयों की नियुक्ति को बंद हो गया। अब सेना में भारतीयों एवं अंग्रेजों का अनुपात 2 : 1 का हो गया। उच्च जाति के लोगों में से सैनिकों की भर्ती बंद कर दी गई। 

5. 1858 के अधिनियम के अन्तर्गत ही भारत में गवर्नर जनरल के पद में परिवर्तन कर उसे 'वायसराय का पद बना दिया गया। 

6. विद्रोह के फलस्वरूप सामंतवादी ढाँचा चरमरा गया, आम भारतीय में सामंतवादियों की छवि गहारों की हो गई, क्योंकि इस वर्ग ने विद्रोह को दबाने में अंग्रेजों को सहयोग दिया था। 

7. विद्रोह के परिणामस्वरूप भारतीयों में राष्ट्रीय एकता की भावना का विकास हुआ और हिन्दू-मुस्लिम एकता ने जोर पकड़ना शुरू किया, जिसका कालान्तर में राष्ट्रीय आंदोलन में अच्छा योगदान रहा। 

8. 1857 के विद्रोह के बादसाम्राज्य विस्तार की नीति का तो खत्मा हो गया परन्तु इसके स्थान पर अब आर्थिक शोषण केयुग का आरम्भ हुआ। 

9. भारतीयों के प्रशासन में प्रतिनिधित्व के क्षेत्र में अल्प प्रयास के अन्तर्गत 1861 में भारतीय परिषद् अधिनियम को पारित किया गया। इसके अतिरिक्त इसाई धर्म के प्रचार-प्रसार में कमी आई, श्वेत जाति की उच्चता के सिद्धान्त का प्रतिपादन किया गया, मुगल साम्राज्य के अस्त्वि को सदैव के लिए खत्म कर दिया गया आदि 1857 के विद्रोह के परिणाम थे।

विद्रोह का स्वरूप - कुछ प्रमुख विचार

इतिहासकारों तथा विद्वानों ने 1857 के विद्रोह के स्वरूप के विषय में भिन्न-भिन्न मत प्रकट किए हैं, जो निम्नलिखित हैं

1. सर जॉन सीले (John Seeley) : एक संस्थापित सरकार के विरुद्ध भारतीय सेना का विद्रोह। 

2. एल. ई. आर. रीज (L. E. R. Rees) : 'धार्मिक युद्ध' (धर्मान्धों का ईसाईयों के विरुद्ध युद्ध)।

3. जे. जी. मेडले (J. G. Medley) : जातियों का युद्ध

4. टी. आर. होम्ज (T. R. Holmes) : 'बर्बरता तथा सभ्यता के बीच युद्ध । 

5. सर जेम्स आउन्ट्रम (Sir James Outram) : 'हिन्दू मुस्लिम षड्यंत्र। 

6. बेन्जामिन डिजरेली (Benjamin Disraeli) : 'राष्ट्रीय विद्रोह।

7. बी. डी. सावरकर (V. D. Sawarkar) : 'सुनियोजित स्वतंत्रता संग्राम। 

8. आर सी. मजूमदार (R. C. Majumdar) : 'सैन्य विद्रोह' (स्वतन्त्रता संग्राम नहीं था)।

9. डॉ. एस. एन. सेन (S. N. Sen) : 'स्वतंत्रता संग्राम'।

10. डॉ. एस. बी. चौधरी (S. B. Choudhary) : 'सैनिक विप्लव और विद्रोह (नागरिक)।

11. जे. एल. नेहरू (J. L. Nehru) : सामन्ती विद्रोह'।

12 कार्ल मार्क्स (Karl Marx) : राष्ट्रीय मुक्ति संघर्ष ।

मुख्य बिन्दु

👉विद्रोह का विस्तार दक्षिण में नर्मदा नदी तक था। 

👉1857 के विद्रोह की एक प्रमुख विशेषता थी - हिन्दू-मुस्लिम एकता। 

👉बहादुर शाह-द्वितीय (जफर) ने 'शहंशाह-ए-हिन्दुस्तान' की उपाधि ग्रहण की। 

👉बहादुर शाह दिल्ली में प्रतीकात्मक नेता था। 

👉वास्तविक नेतृत्व सैनिकों की एक परिषद के हाथों में था, जिसका प्रधान बख्त खान था। 

👉उत्तर-पश्चिम प्रांत तथा अवध में मुजफ्फरनगर और सहारनपुर को छोड़ कर सभी स्थानों पर सैन्य विद्रोह के बाद नागरिक विद्रोह (Civil rebelion) हुए। 

👉विद्रोह के दौरान भारत का गवर्नर जनरल लॉर्ड कैनिंग था।


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