मराठा साम्राज्य का सम्पूर्ण इतिहास, Maratha Era, Complete History of Maratha Empire

 

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शिवाजी (1627-1680 ई.)

 👉20 अप्रैल1627 को शिवाजी का जन्म पूना के निकट स्थित शिवनेर किले में हुआ था।

👉 शिवाजी के पिता शाहजी भोसले थे।

👉 उनका पालन-पोषण उनकी माँ जीजा बाई ने कियाजो खुद दादा जी कोंडदेव के संरक्षण में थी।

👉 शिवाजी के गुरु एवं संरक्षक दादाजी कोण्डदेव थे।

👉 उनके आध्यात्मिक गुरु स्वामी समर्थ रामदास थे। 

👉 शिवाजी ने 18 वर्ष की अवस्था में 1644 में सर्वप्रथम बीजापुर राज्य के तोरण नामक पहाड़ी किले पर अधिकार किया।

👉 शिवाजी की राजधानी रायगढ़ थी।

👉 शिवाजी ने 'गुरिल्ला युद्ध पद्धति को अपनाया था।

👉 1645-47 के बीच उन्होंने रायगढ़कोण्डनतोरण पर अधिकार कर लिया। 1656 तक शिवाजी ने चाकनपुरन्दरबारामतीसूपातिकोनालोहगढ़ आदि विभिन्न किलों पर अधिकार कर लिया।

👉 1656 में शिवाजी की महत्वपूर्ण विजय जावली के विरुद्ध थी।

👉 1656 में शिवाजी का पहली बार मुकाबला मुगलों से हुआजब बीजापुर की तरफ से वे मुगलों के विरुद्ध लड़े। परन्तु उसके बाद उनके बीजापुर से फिर संबंध खराब हो गये। बीजापुर ने अफजल खान को शिवाजी की हत्या के लिये भेजाजिसे शिवाजी ने 1659 में मार दिया।

👉 1660 में शाहस्ता खां को औरंगजेब द्वारा ेजा गयापरन्तु 15 अप्रैल1663 को शिवाजी ने पूना में उसकी छावनी पर आक्रमण कर दिया।

👉 1664 में सूरत पर आक्रमण कर उसे लूटा। केवल डच और अंग्रेज फैक्ट्रियाँ उसके लूटे जाने से बच सकीं।

👉 1665 में औरंगजेब ने राजा जयसिंह को शिवाजी को दण्ड देने के लिये भेजाजिसने उन्हें हराकर पुरन्दर की संधि (22 जून1665) कर ली। पुरन्दर की संधि द्वारा खोये हुए सारे किले उन्होंने फिर प्राप्त कर लिये।

👉 1666 में शिवाजी जयसिंह के आश्वासन पर औरंगजेब से मिलने आगरा आयेपर उचित सम्मान न मिलने पर दरबार से उठकर चले गये। औरंगजेब ने उन्हें कैद कर लियापरन्तु बड़ी चतुराई से एवं बिमारी का बहाना बनाकर शिवाजी उसकी कैद से निकल भागे।

👉 1668 में उन्होंने मुगलों से संधि कर ली।

👉 1670 में फिर मराठा-मुगल युद्ध छिड़ गया। अक्टूबर1670 में शिवाजी ने सूरत पर दूसरी बार हमला कियातथा 1672 में उससे चौथ की मॉग की।

👉 16 जून1674 को शिवाजी ने रायगढ़ में अपना राज्याभिषेक किया उनका राज्याभिषेक काशी के प्रसिद्ध विद्वान् श्री गंगा भट्ट से करवाया गया। उन्होंने छत्रपतिकी उपाधि धारण की।

👉 राज्याभिषेक के दो ही वर्षों के बाद शिवाजी ने कर्नाटक में तंजौर तक अपना प्रभुत्व स्थापित कर लिया।

👉 शिवाजी का संघर्ष जंजीरा टापू के सीदियों (Sidis) से भी हुआजिसके लिये उन्होंने नौ सेना का निर्माण कियापरन्तु उसमें उन्हें सफलता नहीं मिल सकी।

👉 शिवाजी का अन्तिम महत्वपूर्ण अभियान 1676 में कर्नाटक का अभियान था।

👉 शिवाजी ने शासन कार्यों में सहयोग के लिए आठ मन्त्रियों की एक परिषद गठित कीजिसे 'अष्ट प्रधानकहा जाता था।

👉 शिवाजी की कर व्यवस्था मलिक अम्बर की व्यवस्था पर आधारित थी।

👉30 अप्रैल1680 को शिवाजी की मृत्यु हो गयी। 

प्रशासन

शिवाजी की प्रशासन व्यवस्था अधिकांशतः दक्कन की सल्तनतों से ली गयी थीजिसके शीर्ष पर छत्रपति होता था।

छत्रपति- प्रभुत्व संपन्न निरंकुश शासक थाअंतिम कानून निर्माताप्रशासकीय प्रधानन्यायाधीश और सेनापति था।

शासन का वास्तविक संचालन अष्टप्रधान नामक आठ मंत्री करते थेजिनका कार्य राजा को परामर्श देना मात्र था। प्रत्येक मंत्री राजा के प्रति उत्तरदायी था। वे आठ मंत्री थे-

1. पेशवा (प्रधानमंत्री) : राज्य की भलाई व हितों को देखना। राजा की मुहर के नीचे उसकी मुहर लगती थी।

2. अमात्य या मजुमदार : वित्त मंत्री होता था।

3. वाकिया नतीस अथवा मंत्री : राजा के कार्यों तथा दरबार की प्रतिदिन की कार्यवाइयों का विवरण रखता था (वर्तमान गृह मंत्री)

4. शुरु-नवीस अथवा सचिव : राजा का पत्र-व्यवहार देखना।

5. सुमन्त अथवा दबीर : यह विदेश मंत्री होता था।

6. सेनापति अथवा सर-ए-नौबत : सेना की भर्तीसंगठनरसद आदि का प्रबन्ध करना उसके प्रमुख कार्य थे।

7. पंडित राव : धार्मिक दान तथा अन्य सभी धार्मिक मामले देखता था।

8. न्यायाधीश : वह प्रधान न्यायाधीश होता था (राजा के बाद) इन मंत्रियों में पंडित राव और न्यायाधीश के अतिरिक्त सभी मंत्रियों को अपने असैनिक कर्तव्यों के अतिरिक्त सैनिक कमान संभालनी पड़ती थी। 

चिटनिस एवं मुंशी भी महत्वपूर्ण अधिकारी थेजो एक प्रकार से सचिव का कार्य करते थे।

सेना: शिवाजी ने एक नियमित तथा स्थायी सेना रखी। सेना का मुख्य भाग पैदल और घुड़सवार सेना थी।

घुड़सवार दो प्रकार के होते थे।

बरगीर- ये घुड़सवार सैनिक थे। इन्हें राज्य की ओर से वेतन तथा अस्त्र-शस्त्र एवं घोड़े प्रदान किया जाता था।

सिलेहदार- ये स्वतंत्र सैनिक थेजो अपना अस्त्र-शस्त्र खुद रखते थे। ।

किला : किले में तीन अधिकारी होते थे-

*हवलदार

*सर-ए-नौबत

*सबनीस 

हवलदार और सर-ए-नौबत मराठा तथा सबनीस ब्राह्मण होते थे। सबनिस किले का असैनिक शासन देखता था। रसद और सैनिक सामग्री की देखभाल कारखाना-नवीरस करता था। विश्वासघात को रोकने के लिये शिवाजी ने प्रत्येक सेना में भिन्न-भिन्न जातियों के सैनिक रखे थे। सैनिकों को नकद वेतन दिया जाता था।

सेना में कठोर अनुशासन रखा जाता था। शिवाजी ने कोलावा में एक बड़ा जहाजी बेड़ा भी बनाया। यह दो कमान में बँटी हुयी थी। एक दरिया सारंग (मुसलमान) और दूसरी नायक (हिंदू) के अधीन रहती थी।

राजस्व व्यवस्था

शिवाजी की राजस्व व्यवस्था मलिक अम्बर द्वारा अपनायी गयी रैयतवाड़ी प्रथा पर आधारित थी। शिवाजी ने भूमि को ठेके पर देने की प्रथा को त्याग दिया। भूमि की पैमाइश के आधार पर उत्पादन का अनुमान लगाया जाता था, तथा किसान से लगान निर्धारित किया जाता था। वह केन्द्रीय अधिकारी द्वारा एकत्र किया जाता था। प्रारम्भ में उपज का 33 प्रतिशत लगान के रूप में माँगा गया, परन्तु बाद में करों तथा चुंगियों को उठा देने के पश्चात् इसे बढ़ाकर 40 प्रतिशत (2/5 भाग) कर दिया गया। कृषकों को नकद अथवा अनाज किसी भी रूप में लगान देने की दूट थी और उन्हें कितना लगान देना है, यह स्पष्ट रूप से पता होता था।

राज्य कृषि को प्रोत्साहन देने के लिये तकावी ऋण देकर व बेकार भूमि पर खेती करने के लिये पहले कोई कर न लेकर प्रोत्साहित करते थे।

चौथ तथा सरदेशमुखी

विदेशी राज्यों के क्षेत्रों से शिवाजी उपज का एक चौथाई चौथ के रूप में तथा 1/10 सरदेशमुखी के रूप में लेते थे। चौथ और सरदेशमुखी का 1/4 राजा के लिये होता था तथा शेष 3/4, जिसे मोकासा या सरंजाम कहते हैं, सेनानायकों को सेना के रख-रखाव के लिये दिया जाता था।

पेशवाकाल

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पेशवा बालाजी विश्वनाथ (1713-1720 ई.)

बालाजी विश्वनाथ ने शाहू को ताराबाई के विरुद्ध पूर्ण सहयोग दिया था और शाह ने प्रसन्न होकर बालाजी को पेशवा बना दिया था। पेशवा ने मराठा सरदारों को संगठित किया। इस समय मुगल सम्राट फर्रुखसियर था, जो सैयद भाइयों को हटाना चाहता था। इस कारण सैयद भाइयों ने शाहू एवं पेशवा से सहायता माँगी। इस पर पेशवा ने 1719 ई. में एक सन्धि की, जिसे 'मराठा साम्राज्य का मैग्नाकार्टा कहा जाता है। जिसके तहत शाह को दक्षिण के 6 सूबों की चौथ व सरदेशमुखी प्राप्त हो गयी। इस तरह मराठा साम्राज्य को ठोस आधार प्रदान करने में पेशवा की महत्त्वपूर्ण भूमिका रही।

बालाजी विश्वनाथ को 'मराठा साम्राज्य का द्वितीय संस्थापक भी कहा जाता है। 

बाजीराव (1720-1740 ई.)

बालाजी विश्वनाथ की मृत्यु के बाद शाहू ने उसके पुत्र बाजीराव को पेशवा बनाया। इस समय इसकी उम्र 17 वर्ष थी। 1724 ई. में पेशवा ने मालवा व गुजरात को जीत लिया। 1728 ई. में पेशवा ने हैदराबाद के निजाम से मुशीशिवगाँव की सन्धि की, जिसके अनुसार निजाम ने शाहू को सम्पूर्ण महाराष्ट्र का स्वामी बना दिया। 1737 ई. में पेशवा ने मुगलों पर आक्रमण कर उन्हें परास्त किया। 1739 ई. में पेशवा ने पूर्तगालियों को पराजित कर सालसट और बसीन के टापू जीते और जंजीरा के सिदियों को पराजित किया। 1740 ई. में पेशवा बाजीराव की मृत्यु हो गयी।

बाजीराव प्रथम के समय मराठों की शक्ति चरमोत्कर्ष पर थी। उसे हिन्दू पर पादशाही का सिद्धान्त प्रतिपादित करने का भी श्रेय दिया जाता हैं 

बालाजी बाजीराव (1740-1761 ई.)

मराठा छत्रपति शाहू ने पेशवा की मृत्यु के पश्चात् उसके पुत्र बालाजी बाजीराव को पेशवा बनाया। इसने मालवा में मुगलों का नायब सूबेदार बनना स्वीकार कर लिया। 1741 ई. में कर्नाटक पर आक्रमण किया। 1759 ई. में अहमदनगर का दुर्ग जीता, 1752 ई. में मुगलों से सन्धि की। 1760 ई. में रघुनाथ राव व मल्हारराव होल्कर ने अहमदशाह अब्दाली की सूबेदारी छीन ली। इसलिए अहमदशाह ने भारत पर आक्रमण किया। 15 जनवरी, 1761 ई. को मराठा सरदार सदाशिवराव भाऊ व विश्वासराव व अहमदशाह अब्दाली के मध्य पानीपत नामक स्थान पर युद्ध हुआ, जिसमें मराठों की पराजय एवं अब्दाली की विजय हुयी।

बालाजी बाजीराव को 'नाना साहब के नाम से भी जाना जाता है। इसने पेशवा के पद को पैतृक बनाया।

माधवराव प्रथम (1761-1772 ई.)

1761 ई. में बालाजी बाजीराव की मृत्यु के पश्चात् उसका 16 वर्षीय पुत्र माधवराव पेशवा बना। इस पेशवा ने मराठों की प्रतिष्ठा को पुनः स्थापित किया। सबसे पहले 1762 ई. में निजाम को हराया व 1764, 1767, 1771 व 1772 ई. में मैसूर के हैदर अली को परास्त किया। उत्तर भारत में महादजी सिन्धिया ने 1772 ई. में मुगल सम्राट को दिल्ली की गद्दी पर बिठाया और बदले में 40 लाख रुपये, कड़ा और मानिकपुर की जागीर प्राप्त की। 

नारायणराव (1772-73 ई.)

1772 ई. में माधवराव की __ मृत्यु के पश्चात् माधवराव का भाई नारायण राव पेशवा बना,परन्तु नौ महीने के पश्चात् उसके चाचा रघुनाथराव द्वारा कत्ल किए जाने के कारण उसकी मृत्यु हो गयी। 

रघुनाथराव राघोवा' (1773 ई.)

मराठा सरदारों ने राघोवा का साथ नहीं दिया। सुखराम व नाना फड़नवीस ने मृत पेशवा नारायण राव के पुत्र को वासतविक पेशवा घोषित किया। जिसके परिणामस्वरूप राघोवा ने अंग्रेजों (बम्बई सरकार) की मदद लेने हेतु 1775 ई. में सूरत की सन्धि की। पर नाना फड़नवीस ने ब्रिटिश गवर्नर जनरल वारेन हेस्टिंग्स से 1776 ई. में पुरन्दर की सन्धि की और सूरत की सन्धि को रद्द करवा दिया। 

माधवराव नारायण (1774-96 ई.)

माधवराव नारायण के समय नाना फड़नवीस प्रभावशाली रहा। 1796 ई. में माधव की मृत्यु हो गयी और बाजीराव द्वितीय पेशवा बना।

बाजीराव द्वितीय (1796–1818 ई.)

इस पेशवा का शासन काल मराठों के पतन का काल रहा। मार्च, 1800 ई. में नाना फड़नवीस की मृत्यु के पश्चात् होल्कर, सिन्धिया, भोंसले, गायकवाड़ में मनमुटाव हो गया। बाजीराव ने अंग्रेजों से 1802 ई. में बेसीन की सन्धि कर पूना में एक अंग्रेजी सेना रखना स्वीकार किया। इस सन्धि का सिन्धिया, होल्कर व भोंसले ने विरोध किया, परन्तु लॉर्ड वेलेजली ने समस्त मराठा संघ को सहायक सन्धि स्वीकार करने को विवश किया। बची मराठा शक्ति लॉर्ड हेस्टिंग्स ने तृतीय आंग्ल मराठा युद्ध के पश्चात् समाप्त कर दी। 

बाजीराव द्वितीय मराठों का अन्तिम पेशवा था 1818 ई. में अंग्रेजों ने पेशवा पद को समाप्त करके बाजीराव द्वितीय को कानपुर के निकट बिठूर निर्वासित कर दिया, जहाँ 1853 ई. में उसकी मृत्यु हो गई।

नानासाहब (1818–1857 ई.)

बाजीराव की मृत्यु पर नाना ने भारत के ब्रिटिश गवर्नर जनरल लॉर्ड डलहौजी से अपनी पेन्शन व पदवी हेतु अर्जी दी, जो डलहौजी ने नामंजूर कर दी। इस पर नाना ने नाराज होकर 1857 ई. के सैनिक विद्रोह में भाग लिया। क्रान्ति के पश्चात् पेशवा व मराठा वंश समाप्त हो गया और उस पर अंग्रेजों ने अधिकार कर लिया।

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