वैदिक काल किसे कहते हैं ? ,what is Vedic period? वैदिक काल कब प्रारम्भ हुआ? When did the Vedic period begin?

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 वैदिक काल


वैदिक सभ्यता का नाम ऐसा इस लिए पड़ा कि वेद उस काल की जानकारी का प्रमुख स्रोत हैं। वेद चार है - ऋग्वेद, सामवेद, अथर्ववेद और यजुर्वेद। इनमें से ऋग्वेद की रचना सबसे पहले हुई थी। ऋग्वेद में ही गायत्री मन्त्र है जो सविता(सूर्य) को समर्पित है।
    वैदिक काल को मुख्यतः दो भागों में बांटा जा सकता है- 

(I)ऋग्वैदिक काल  
(II)उत्तर वैदिक काल। 

ऋग्वैदिक काल (1500-1000 ई.पू.)

इस काल की तिथि निर्धारण विवादास्पद रही है इसका एक प्रमुख कारण यह भी है कि इस समय तक केवल इसी ग्रंथ (ऋग्वेद) की रचना हुई थी।
ईरानी भाषा के प्राचीनतम ग्रंथ अवेस्ता की सूक्तियां ऋग्वेद से मिलती जुलती हैं। अगर इस भाषिक समरूपता को देखें तो ऋग्वेद का रचनाकाल 1000 ईसापूर्व आता है। लेकिन "बोगाज-कोई" में पाए गए 1400 ईसा पूर्व के अभिलेख में हिंदू देवताओं इंद, मित्रावरुण, नासत्य इत्यादि को देखते हुए इसका काल और पहले मान सकते हैं। 
अन्य मत -
बाल गंगाधर तिलक के अनुसार 6000 ई.पू.
हरमौन जैकोबी के अनुसार 4500 ई.पू. - 2500 ई.पू.
विंटरनित्ज़  के अनुसार 3000 ई.पू.

वैदिक कालीन वेद

वेदों की संख्या 4 है।

1. ऋग्वेद

2 यजुर्वेद

3. सामवेद

4. अर्धवेद

ऋग्वेद

इसमें विभिन्न देवताओं की स्तुति में गाये जाने वाले मंत्रों का संग्रह है।

इसका संकलन महर्षि कृष्ण द्वैपायन(वेदव्यास) ने किया है।

इसमें कुल 10 मण्डल, 1028 सूक्‍त एवं 10462 मंत्र है।

दूसरा एवं सातवां मण्डल सबसे पुराना है। इन्हें दंश मण्डल कहते हैं।

दसवां मण्डल सबसे नवीन है।

ऋग्वेद का पाठ करने वाला पुरोहित  कहलाता है।

नौवां मण्डल सोम को समर्पित है।

दसवें मण्डल के पुरूष सुकत में शूद्रों का उल्लेख मिलता है।

ऋग्वेद एवं ईरानी ग्रन्थ जेन्द अवेस्ता में समानता पायी जाती है।

ऋग्वेद की सबसे पवित्र नदी सरस्वती थीइसे नदीतमा कहा गया है।

ऋग्वेद में यमुना का उल्लेख 3 बार एवं गंगा का उल्लेखबार(10 वां मण्डल) में मिलता है।

ऋग्वेद में पुरूष देवताओं की प्रधानता है। इन्द्र का वर्णन सर्वाधिक(250 बार) है।

अस्तो माँ सदगमय ऋग्वेद से लिया गया है। 

सामवेद

यह भारतीय संगीतशास्त्र पर प्राचीनतम ग्रन्थ है।

इसका पाठ करने वाला पुरोहित 'उदगात कहलाता है।

सामवेद के प्रथम दृष्टा वेदव्यास के शिष्य जैमिनी को माना जाता है।

सामवेद से सर्वप्रथम 7 स्वरो (सा,रे,गा.मा, ...) की जानकारी प्राप्त होती है।

सामवेद व अर्थवेद के कोई अरण्यक नहीं है।

सामदेद का उपवेद “गन्धर्वविदकहलाता है। 

यजुर्वेद

इसमें यज्ञ की विधियों कर्मकाण्डों पर बल दिया जाता है।

इसका पाठ करने वाला 'अध्वर्यु कहलाताह है।

इसमें 40 मण्डल और 2000 मंत्र हैं।

इसमें यज्ञ एवं यज्ञबलि की विधियों का प्रतिपादन किया गया है।

यजुर्वेद में हाथियों के पालने का उल्लेख है।

यजुर्वेद में सर्व्रथम राजसूय तथा वाजपैय यज्ञ का उल्लेख मिलता है।

 

अथर्ववेद

इसमें तंत्र-मंत्रजादू-टोनाटोटकाभारतीय औषधि एवं विज्ञान सम्बन्धी जानकारी दी गयी है।

इसकी दो शाखाएं - शौनकपिप्लाद हैं।

इसे ब्रह्मवेद भी कहा जाता है।

इसमें वास्तु शास्त्र का बहुमूल्य ज्ञान उपलब्ध है।

अधर्ववेद का कोई आरण्यक नहीं है।

अथर्ववेद के उपनिषद मुण्डकमाण्डूक्य और प्रश्न है

अथर्ववेद में कुरु के राजा परीक्षित का उल्लेख है जिन्हें मृत्यु लोक का देवता बताया गया है।

अथर्ववेद के मंत्रों का उच्चारण करने दाला पुरोहित को 'ब्रह्मकहा जाता है।

अथर्ववेद  में सभा एवं समिति को प्रजापति की 2 पुत्रियां कहा गया है।


वेदों से संबंधित ब्राह्मण

ऋग्वेद-             ऐतरेय

सामवेद-            पंचविशजैमिनीय

यजुर्वेद-             शतपथ

अथर्ववेद-           गोपथ

 

वेदों से संबंधित उपनिषद

ऋग्वेद-             ऐतरेय

सामवेद -           छान्दोग्य

यजुर्वेद-             बृहदारण्य

अथर्ववेद-          मुण्डक

 

वेदों से संबंधित अरण्यक

ऋग्वेद-              ऐतरेय

सामवेद-            छान्दोग्यजैमिनीय

यजुर्वेद-             वृहदारण्यक

अथर्ववेद-          कोई नहीं

 

वेदों से संबंधित उपवेद

ऋग्वेद-              आयुर्वेद

सामवेद-            गन्धर्ववेद

यजुर्वेद-             धनुर्वेद

अथर्ववेद-          शिल्पवेद

प्रशासन
प्रशासन की सबसे छोटी इकाई कुल थी। 

एक कुल में एक घर में एक छत के नीचे रहने वाले लोग शामिल थे। 

परिवार के मुखिया को कुलुप कहा जाता था। 

एक ग्राम कई कुलों से मिलकर बना होता था। 

ग्रामों का संगठन विश् कहलाता था और विशों का संगठन जन। कई जन मिलकर राष्ट्र बनाते थे। 

ग्राम के मुखिया को ग्रामिणी, विश का प्रधान विशपति , जन का शासक राजन् (राजा) तथा राष्ट्र के प्रधान को सम्राट कहते थे। 

ऋग्वैदिक आर्यों की दो महत्वपूर्ण राजनैतिक संस्थाएं थीं जिन्हें (1)सभा और (2)समिति  कहा जाता था। 

धर्म
ऋग्वैदिक काल में प्राकृतिक शक्तियों की ही पूजा की जाती थी और कर्मकांडों की प्रमुखता नहीं थी। 

ऋग्वैदिक काल धर्म की॑ अन्य विशेषताएं • क्रत्या, निऋति, यातुधान, ससरपरी आदि के रूप मे अपकरी शक्तियो अर्थात, राछसों, पिशाच एवं अप्सराओ का जिक्र दिखाई पडता है। 

इस समय में मूर्ति पूजन नहीं होता था और ना ही मंत्रोचार किया जाता था। 

कर्मकांड जैसे पूजा-पाठ, व्रत,यज्ञ आदि इस काल में नहीं होते थे।

उत्तरवैदिक काल (1000–600 ई०पू०)
ऋग्वैदिक काल में आर्यों का निवास स्थान सिंधु तथा सरस्वती नदियों के बीच में था।
इस काल में विश्व का विस्तार होता गया भरत, त्रित्सु और तुर्वस जैसे जन् राजनीतिक हलकों से ग़ायब हो गए जबकि पुरू पहले से अधिक शक्तिशाली हो गए। पूर्वी उत्तर प्रदेश और बिहार में कुछ नए राज्यों का विकास हो गया था।  (काशी, कोसल, विदेह (मिथिला), मगध और अंग) ऋग्वैदिक काल में सरस्वती नदी को सबसे महत्वपूर्ण माना जाता है।

उत्तर वैदिक राजनीतिक व्यवस्था

कबीलाई  ढांचा टूट गया एवं पहली बार क्षेत्रीय राज्यों का उदय हुआ।

जन का स्थान जनपद ने ले लिया।

युद्ध गायों के लिए न होकर क्षेत्र के लिए होने लगा।

सभा एवं समितियों पर राजाओंपुरोहितों एवं धनी लोगों का अधिकार हो गया।

विदथ को समाप्त कर दिया गया।

स्त्रियों को सभा की सदस्याता से बहिष्कृत कर दिया गया।

राजा अत्यधिक ताकतवर हो गया एवं राष्ट्र शब्द की उत्पत्ति हुई।

बलि के अतिरिक्त 'भाग तथा शुल्कदो नए कर लगाये गए।

राजा की सहायता करने वाले उच्च अधिकारी रत्निन कहलाते थे।

राजा कोई स्थायी सेना नहीं रखता था।

उत्तरवैदिक सामाजिक व्यवस्था

वर्ण व्यवस्था का आधार कर्म पर आधारित न होकर जन्म पर हो गया।

इस समय लोग स्थायी जीवन जीने लगे।

चारों वर्ण - पुरोहितक्षत्रियवैश्य व शूद्र स्पष्ट: स्थापित हो गए।

यज्ञ का महत्व बढ़ा और ब्राह्मणें की शक्ति में अपार वृद्धि हुई।

ऐत्रेय ब्राह्मण में चारों दर्णो के कार्यों का उल्लेख मिलता है।

इस काल मैं तीन आश्रम ब्रह्मचर्यगृहस्थ एवं वानप्रस्थ की स्थापना हुई।

जावालोपनिषद में सर्वप्रथम चारों आश्रमों का उल्लेख मिलता है।

स्त्रियों को शिक्षा प्राप्ति का अधिकार प्राप्त था।

बाल विवाह नहीं होता था।

विधवा विवाह,नियोग प्रथा के साथ अन्तःजातीय विवाह का प्रचलन था।

स्त्रियों की स्थिति में गिरावट आयी। 

उत्तरवैदिक आर्थिक स्थिति

इस काल में मुख्य व्यवसाय कृषि बन गया(कारण: लोहे की खोज एवं स्थायी जीवन)

मुख्य फसल धान एवं गैहूं थी।

यजुर्वेद में ब्रीहि(धान)भव(जी)गोधूम/गेहूं) की चर्चा मिलती है।

उत्तरवैदिक काल में कपास का उल्लेख नहीं हुआ।

ऊन शब्द का प्रयोग हुआ है।

सामान्य लैन-देन वस्तु विनिम द्वारा होता था।

निष्कशतमानपाद एवं कृष्णल माप की इकाइयां थी।

सर्वप्रथम अथर्ववेद में चांदी का उल्लेख हुआ है। 

उत्तरवैदिक धार्मिक स्थिति

धर्म का स्वरूप बहु देववादी तथा उद्देश्य भौतिक सुख की प्राप्ति थ।

प्रजापतिविष्णु तथा रूद्र महत्वपूर्ण देवता के रूप मे स्थापित हो गए।

सृजनके देवता प्रजापति का सर्वोच्च स्थात था।

पूषण सुडों के देवता थे

'वज्ञ का महल बढ़ा एवं जटिल कर्मकाण्डों का समादेश हुआ।

मृत्यु की चर्चा सर्वप्रथम शतपथ ब्राह्मणमें मिलती है।

सर्व प्रथम मोक्ष की चर्चा उपनिषद में मिलती है।

पुनर्जन्म की अवधारणा सर्वप्रथम वृहदारण्यक उपनिषद में मिलती है।  

आश्रम व्यवस्था

आश्रम व्यवस्था की स्थापना उत्तरवैदिक काल में हुई।

छंदोज्ञ उपनिषद में केवल तीन आश्रमों का उल्लेख है।

सर्वप्रथम जाबालोपनिषद में 4 आश्रम बताए गए हैं।

गृहस्थ आश्रम  सभी आश्रमों में श्रेष्ठ माना जाता है क्योंकि इसमें मनुष्य धर्म अर्थ एवं काम का एक साथ उपयोग करता है।                      

ब्रह्मचर्य आश्रम

            आयु- 0-25 वर्ष

            कार्य- ज्ञान प्राप्ति

            पुरुषार्थ- धर्म

गृहस्थ आश्रम

            आयु- 26-50 वर्ष

            कार्य- सांसारिक जीवन

            पुरुषार्थ- अर्थ व काम

वानप्रस्थ आश्रम

            आयु- 51-75 वर्ष

            कार्य- मनन/चिंतन/ध्यान

            पुरुषार्थ- मोक्ष

सन्यास आश्रम

            आयु- 76-100 वर्ष

            कार्य- मोक्ष हेतु तपस्या

पुरुषार्थ- मोक्ष

गृहस्थ आश्रम में  मनुष्य त्रि ऋण से निवृत होता है।

1. ऋषि ऋण- ग्रंथों का अध्ययन

2 पिठृऋण- पुत्रप्राणति

3 देव ऋण - यज्ञ करना

शूद्र मात्र गृहस्थ आश्रम को ही अपना सकते थे अन्य आश्रमों को नहीं।

वर्ण व्यवस्था

ऋगवेद में 4 वर्णों का उल्लेख है

पुरोहित- उत्पत्ति - ब्रम्हा के मुख से कार्य - धार्मिक अनुष्ठान

क्षत्रिय- उत्पत्ति- ब्रम्हा की भुजा सेकार्य - शासक वर्ग/धर्म की रक्षा

वैश्य- उत्पत्ति- ब्रम्हा की जटाओं से कार्य – कृषि/व्यापार/वाणिज्य

शूद्र- उत्पत्ति - ब्रम्हा के पैर से, कार्य - सेवा कार्य/अन्य वर्ण के लोगों की सेवा)

ऋग्वैदिक काल में वर्णों का आधार कर्म था परन्तु उत्तरवेदिक काल में आधार जन्मजात बना दिया गया।

उत्तरवेदिक काल में शुद्रों को गैर आर्य माना जाता था।

कर की अदायगी केदल वैश्य किया करते थे।

विवाहों के प्रकार 

ब्रम्ह विवाह - समान वर्ण में विवाह (कन्या का मूल्य देकर)

दैव विवाह - पुरोहित के साथ विवाह(दक्षिणा सहित)

आर्य विवाह - कन्या के पिता को वर एक जोड़ी बैल प्रदान करता था।

प्रजापत्य विवाह - बिना लेन-देनयोग्य वर के साथ विवाह

असुर विवाह - कन्या को उसके माता-पिता से  खरीद कर विवाह

गंधर्व विवाह - प्रेम विवाह

राक्षस विवाह - पराजित राजा की पुत्रीबहन या पत्नि से उसकी इच्छा के विरूद्ध

पिशाच विवाह - सोती हुई सतीनशे की हालत में अथवा विश्वासघात द्वारा विवाह

ब्रह्म विवाहदैव विवाहआर्य विवाह व प्रजापत्य विवाह ब्राह्मणों के लिए मान्य थे।

असुर विवाह केवल वेश्य और शूद्रों में होता था।

गंधर्व विवाह केवल क्षत्रिय में होता था। 

वैदिककाल संबन्धित अन्य महत्वपूर्ण बिन्दु

  1. आर्य शब्द का आशय श्रेष्ठ वंश से है।
  2. ऋग वेद सबसे प्राचीन वेद है।
  3. अथर्ववेद में जदुई भाषा और वशीकरण का वर्णन है।
  4. ऋग वेद में कुल 1028 सूक्त हैं ।
  5. ऋग वेद में कुल 10552 ऋचायेँ हैं ।
  6. यज्ञ सम्बन्धी विधि विधानों का उल्लेख यजुर्वेद में प्राप्त होता है।
  7. “उपनिषद” दर्शन पर आधारित पुस्तकें हैं।
  8. आरंभिक वैदिक साहित्य में सर्वाधिक वर्णन सिंधु नदी का प्राप्त होता है।
  9. ऋगवैदिक आर्यों की सबसे पवित्र नदी सरस्वती थी जिसे मतेतमा, देवीतमा एवं नदीतमा कहा गया है।
  10. वैदिक काल में निष्क शब्द का प्रयोग गले के आभूषण के लिए किया जाता था।
  11. गोत्र शब्द का उल्लेख सर्वप्रथम ऋगवेद में हुआ है।
  12. पूर्व वैदिक आर्यों का प्रकृति पूजा व यज्ञ था, प्राचीनकाल में आर्यों के जीविकोपार्जन का मुकया आधार शिकार था ।
  13. ऋग्वेद में सर्वाधिक ऋचाएँ (250) इन्द्र की स्तुति में हैं।
  14. ऋगवेद में द्वितीय सर्वाधिक सूक्त (200 ) अग्नि की स्तुति में हैं।
  15. पूर्व वैदिक आर्यों के सर्वाधिक लोकप्रिय देवता इन्द्र थे।
  16. गायत्री मंत्र का सर्वप्रथम उल्लेख ऋगवेद मेन मिलता है।
  17. पुराणों की संख्या 18 है ।
  18. सत्यमेव जयते मुण्ड्कोपनिषद से लिया गया है।
  19. ऋगवेद में गाय को अघन्या (अर्थात गाय को कभी मत मार) कहा गया है।
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