गुप्त काल
गुप्त काल के शासक एवं वंशावली
श्रीगुप्त एवं घटोत्कछ - 275-319 ई०
चन्द्रगुप्त प्रथम- 319-335 ई०
समुद्रगुप्त - 335- 375 ई०
चन्द्रगुप्त द्वितीय (विक्रमादित्य)- 375-413 ई०
कुमारगुप्त प्रथम- 415-455 ई०
स्कन्द गुप्त – 455-467 ई०
पुरुगुप्त - 467-473 ई०
कुमार गुप्त द्वितीय – 473-477 ई०
बुधगुप्त- 477-495
ई०
नरसिंह गुप्त बालादित्य- 495-530 ई०
भानुगुप्त –
वेन्यगुप्त-
कुमारगुप्त तृतीय – 530-543 ई०
विष्णुगुप्त - 543-550 ई०
गुप्त वंश के शासक
गुप्त वंश का प्रथम महत्वपूर्ण शासक चन्द्रगुप्त प्रथम था, लेकिन इसके पहले श्रीगुप्त (240-285 ई.) तथा घटोत्कच. (280-320 ई.) का शासक के रूप में उल्लेख मिलता है।
चन्द्रगुप्त प्रथम (319-335 ई)
👉चन्द्रगुप्त प्रथम 320 ई. में गुप्त सम्वत्
की शुरूआत की। उसने महाराजाधिराज की उपाधि घारण
की थी।
👉यह गुप्त वंश का वास्तविक संस्थापक था।
👉गुप्त वंश में सर्वप्रथम सोने के सिक्के
चलाने वाला शासक यही था।
👉चद्ध गुप्त प्रथम ने ही गुप्त संदत् की
स्थापना की थी।
👉चन्द्रगुप्त प्रथम ने लि छवि राजकुमारी कुमारदेती से दिवाह किया।
समुद्रगुप्त (335ई. - 375ई.)
समुद्रगुप्त को विसेट स्मिथ ने अपनी पुस्तक अली हिस्ट्री ऑफ इण्डिया में भारत का नेपोलियन कहा है।
उपाधियां - पराक्रमांक,
अप्रतिरथ एवं व्याघ्रपराक्रम।
समुद्रगुप्त का विजय अभियान
प्रथम चरण - अहिच्छत्र,
चम्पावती एवं विदिशा सहित उत्तर भारत के 9
राज्य। यह आर्यावर्त राज्य प्रसभोद्दरण कहलाया।
द्वितीय चरण - पंजाब,
सीमावर्ती राज्य एवं नेपाल।
तृतीय चरण – विंध्य क्षेत्र पर विजय ।
चतुर्थ चरण - पल्लव,
कोसल, कोट्टूर, महाकान्तर,
कांची, वेंगी आदि सहित कुल 12 राज्यों पर विजय प्राप्त की। दक्षिण भारत पर यह विजय धर्म विजय कहलायी।
पांचवां चरण - उत्तर पश्चिम भारत के कुछ
विदेशी राज्यों पर विजय।
👉विजय अभियान को पूरा करने के बाद अश्वमेधयज्ञ करवाया एवं अश्वमेध पराक्रम की उपाधि ली।
👉समुद्रगुप्त को उसके सिक्कों पर वीणा बजाते
हुए दिखाया गया है।
👉समुद्र गुप्त को कविराज की उपाधि प्रदान की गयी है।
चन्द्रगुप्त द्वितीय / विक्रमादित्य
उपाधियां - विक्रमांक, विक्रमादित्य, परमभागवत।
अन्य नाम - देवगुप्त,
देवराज, देवश्री।
👉चद्रगुप्त द्वितीय के शासन काल में गुप्त
साम्राज्य अपने सुनहरे काल पर था।
👉गुप्तकाल में चांदी के सिक्के चलाने वाला
प्रथम शासक यही था।
👉चन्द्रगुप्त द्वितीय ने ही विक्रम संवत् की
स्थापना की।
👉चन्द्रगुप्त द्वितीय के शासन काल में चीनी
यात्री फाह्यान आया था।
👉चन्द्रगुप्त द्वितीय का शासन काल कला एवं
साहित्य का स्वर्णकाल माना जाता है।
चन्द्रगुप्त द्वितीय के राजदरबार के 9 रत्न
नौ रत्न
- धन्वन्तरी - चिकित्सा क्षेत्र
- घाटखर्पर - कवि
- कालिदास - लेखक
- वाराहमिहिर - खगोल शास्त्री
- अमरसिंह
- कक्षपनक - ज्योतिष
- वररूचि - संस्कृत व्याकरण
- वेतालभट्ट -मंत्रशास्त्त
- शंकु - शिल्प शास्त्र
कुमारगुप्त
👉कुमारगुप्त, चन्द्रगुप्त
द्वितीय का पुत्र एवं उत्तराधिकारी था।
👉उपाधि - महेन्द्रादित्य,
श्री महेंद्र, गुप्तकुल व्योमशशि,
👉कुमारगुप्त की मुद्राओं पर गरूड के स्थान
पर मयूर आकृति अंकित है।
👉कुमारगुप्त प्रथम के शासन में नालंदा
विश्वविधालय की स्थापना करवायी।
👉कुमारगुप्त के सिक्कों पर कार्तिकेयन का अंकन मिलता है।
स्कन्दगुप्त
उपाधि- क्रमादितय
अन्यनाम- देवराय
👉स्कंदगुप्त के शासन काल में प्रथम हूण
आक्रमण हुआ जिसे स्कंदगुप्त ने विफल कर दिया।
👉स्कंदगुप्त ने अपनी राजधानी अयोध्य मे स्थानांतरित की थी।
विष्णुगुप्त
👉यह गुप्तवंश का अंतिम शासक था। इसके बाद गुप्त साम्राज्य छिन्न-भिन्न हो गया था।
गुप्त साम्राज्य के पतन के कारण
👉अयोग्य तथा निर्बल उत्तराधिकारी
👉प्रशासनिक व्यवस्था का संघात्मक/ विकेंद्रित
स्वरूप
👉उच्च पदों पर नियुक्ति योग्यता के आधार पर न
होकर आनुवांशिक।
👉प्रांतीय शासकों को विशेषाधिकार प्रदान
करना।
👉बाह्य आक्रमण
गुप्तकालीन प्रशासन
👉राजत्व का दैवीय उत्पत्ति सिद्धांत लोकप्रिय था।
👉राजपदवं शानुगत था परन्तु ज्येष्ठाधिकार की
अटल प्रथा का अभाव था।
👉गुप्तकाल प्रशासन विकेन्द्रीकरण व्यवस्था पर
आधारित अथवा संघात्मक था। प्रमाण: सामन्तों प्रांत अधिकारियों को प्राप्त
विशेषाधिकार।
👉राजा का मुख्य कार्य जनता की एवं राज्य की सुरक्षा, वर्ण व्यवस्था कायम रखना तथा धर्म की रक्षा करना था।
केन्द्रीय प्रशासन एवं प्रांतीय प्रशासन
राजा- प्रशासन
का सर्दोच्च अधिकारी
कार्यपालिका, न्यायपालिका एवं सैन्य
प्रधाना
विधि निर्माण का अधिकार नहीं।
देश / राष्ट्र- प्रशासन की सबसे बड़ी इकाई
इसका शासक गोप्ता होता था
भुक्ति / प्रांत- देश भुक्तियों में बंटा हुआ होता था।
यहां कुमारमात्यों को नियुक्त किया जाता था।
यहां उपरिक नामक अधिकारी होता था।
विषय / जिला- प्रांतों का विभाजन विषय / जिलों में होता था।
इसका सर्वोच्च अधिकारी विषयपति था।
विषयपति की सहायता श्रेष्ठ, सार्थवाह, कुलिक, कायस्थ करते थे।
विधि/तहसील- विषय विधियों में बंटा होता था।
पेठ- पेठ विधि से छोटी इकाई थी। गांवों का संघ।
ग्राम /गांव- गुप्त कालीन प्रशासन की
सबसे छोटी इकाई गांव थी।
इसका प्रधान महत्तर/मुखिया या ग्राम वृद्ध होता था।
गुप्त साम्राज्य के प्रशासनिक अधिकारी
👉महाबलाधिकृत – सेनापति
👉महादण्डनायक - न्यायाधीश
👉दण्डपाशिक - पुलिश विभाग का सर्वोच्च
अधिकारी
👉संधि विग्रहिक - युद्ध तथा संधि से संबंधित
विदेश मंत्री
👉विनयस्थिति - शिक्षा एवं धार्मिक मामलों का
प्रधान
👉महाअक्षपटलिक - लेखा विभाग का सर्वोच्च
अधिकारी
👉चौरोदरनिक - गुप्तचर विभाग का प्रधाना
👉अग्रहारिक - दान विभाग का प्रधान
👉भाण्डागाराधिकृत - राजकोष अधिकारी
गुप्तकालीन अर्थव्यवस्था
कृषि
गुप्तकालीन अर्थव्यवस्था का मुख्य आधार कृषि
था।
भमि के प्रकार- वास्तु भूमि - वास करने योग्य
अप्रहत - बिना जोती
गयी भूमि
सदबल भूमि - घास
मैदान वाली
औदिक - दलदल भूमि
राजस्व – भू राजस्व ही राज्य की आय का मुख्य साधन था। भू राजस्व कुल आय का 1/6 हिस्सा होता था।
विभिन्न प्रकार के कर
👉धान्य - अनाज मैं राजा का हिस्सा
👉भट्टकर - पुलिस कर
👉चाट - लुटेरों से बचाने के लिए कर
👉प्रणय - अनिवार्य कर
👉विष्ट - बेगार कर
👉शुल्क - सीमा कर या बिक्री कर
👉बलि- यह एक धार्मिक कर था।
👉उपरि कर - यह उन रैयतों पर लगाया जता था जो
भूमि के स्वामी नहीं थे।
👉भू राजस्व नकद तथा अनाज दोनों के रूप में वसूला जाता था।
गुप्तकालीन समाज
👉गुप्तकालीन समाज ब्राह्मणवादी था।
👉विभिन्न पेशेवर समूहों का जाति में ढलना
👉पुनरूत्थान के कारण उच्चवर्णों के
विशेषाधिकारों का बल
👉वैश्यों की सामाजिक दशा में तुलनात्मक रूप
में गिरावट
👉शूद्रों की सामाजिक दशा मैं सुधार
दास प्रथा
👉इस काल मेँ दास प्रथा प्रचलित थी।
👉इस काल में दासों को मुख्यतः घरेलू कार्यों में लगाया जाता था।
स्त्रियों की दशा
👉स्त्रियों की सामाजिक दशा में तुलनात्मक रूप से गिरावट आयी।
👉पर्दा प्रथा का प्रचलन हो चुका था।
👉बाल विवाह प्रथा एवं बहु विवाह प्रथा
व्याप्त हो चुकी थी।
👉सती प्रथा का साक्ष्य एरण अभिलेख से प्राप्त
हुआ है।
👉देवदासी प्रा द्वारा मंदिर के पुजारियों
द्वारा यौन शोषण बढ़ गया था।
👉गणिकाओं एवं वैश्यवृति में वृद्धि हुई।
👉स्त्रियों को सम्पत्ति सम्बन्धी अधिकार दिए
गए।
👉पत्नी एवं पुत्रियों को सम्पति का उत्तराधिकारी बनाया गया।
गुप्तकाल में धार्मिक स्थिति
👉गुप्तकालीन धार्मिक व्यवस्था का मुख्य लक्षण - जटिलता एवं विविधता है।
👉मंदिरों एवं मूर्तियों का निर्माण हुआ।
👉अवतार वाद की अवधारणा का उदय
👉ब्राह्मण धर्म के अन्तर्गत वैष्णव एवं शैव
भक्ति का विकास
👉नव हिन्दू धर्म की शुरूआत इसी काल में हुई।
👉वैष्णव धर्म सबसे प्रधान बन गया। शैव
सम्रदाय को भी संरक्षण मिला।
👉देवताओं के साथ देवियों को इसी काल में
जोड़ा गया।
👉त्रिदेव(ब्रम्हा, विष्णु, महेश) की संकल्पना इसी काल में विकसित हुई।
गुप्तकालीन स्थापत्य
👉देवगढ़ का दशावतार मंदिर – ललितपुर, उत्तर प्रदेश
👉तिगवा का विष्णु मंदिर – जबलपुर, मध्य प्रदेश
👉एरण का विष्णु मंदिर – सागर, मध्य प्रदेश
👉भूमरा का शिव मंदिर- सतना, मध्य प्रदेश
👉नचना कुठार का पार्वती मंदिर – पन्ना, मध्य प्रदेश
👉भीतर गांव का कृष्ण मंदिर – कानपुर,उत्तर प्रदेश
👉नागोद का शिव मंदिर – सतना मध्य प्रदेश
गुप्तकालीन शिक्षा एवं साहित्य
👉अधिकांश रचनाएं प्रेमप्रधान एवं सुखान्त
होती थी।
👉रचनाओं मैं उच्च वर्ण के पात्र संस्कृत बोलते थे। शूद्र एवं महिलाएं प्राकृत भाषा बोलती थी।
गुप्तकालीन रचनाएं
👉मालविकाग्रिमित्रम - कालिदास - अग्निमित्र एवं मालविका की प्रणयकथा।
👉अभिज्ञान शाकुन्तलम - कालिदास - दुष्यंत एवं
शकुन्तला की प्रेमकथा।
👉विक्रमोवर्षीयम - कालिदास - सम्राट पुरूरवा
एवं उर्वसी की प्रेमकथा।
👉मुद्राराक्षसम् - विशाखदत्त - चन्द्रगुप्त
मौर्य कालीन विश्लेषण व कथा।
👉देवीचन्द्रगुप्तम् - विशाखदत्त – चंद्रगुप्त
द्वितीय द्वारा शक राजा का वध एवं ध्रुवदेवी(रामगुप्त की पत्नी) से विवाह।
👉मृच्छकटिकम् - शूद्रक - चारूदत्त एवं वसन्त
सेना की प्रेमगाथा।
👉स्वप्रवासदत्तम्- भास - महाराजा उदयन एवं वासदत्ता की प्रेम कथा।