चन्देल वंश
चन्देल वंश का उदय जेजाक-भुक्ति या वुन्देलखण्ड में हुआ था। जिसकी राजधानी खजुराहो थी। चन्देल राज्य की स्थापना 9वीं शताब्दी में नन्नुक ने की थी। ये प्रतिहारों के अधीनस्थ थे, लेकिन हर्षदेव और यशोवर्मन के समय चन्देल स्वतन्त्र हो गये। चन्देलों को चन्द्रवंशीय माना गया था तथा राजपूतों के 36 कुलों में इनका नाम मिलता है।
Ø चन्देल वंश के संस्थापक नन्नुक के पौत्र जयसिंह या जेजा के नाम पर वुन्देलखण्ड का नाम जेजाक-मुक्ति पड़ा था।
चन्देल शासक यशोवर्मन (925-950 ई.) ने प्रतिहार शासकों को परास्त कर कालिंजर पर अधिकार कर लिया। कलचुरी, परमार, उड़ीसा के सोमवंशीय शासकों को इसी चन्देल शासक ने परास्त किया था। उसने कश्मीर, गौड़ और मिथिला के साथ भी संघर्ष किया था। खजुराहों के प्रसिद्ध विष्णु मंदिर का निर्माण यशोवर्मन ने ही कराया था।
यशोवर्मन का पुत्र धंगदेव (950-1002 ई.) चन्देलों का सर्वाधिक शक्तिशाली शासक था। प्रतिहारों से पूर्णतः मुक्त कराने का श्रेय धंगदेव (धंग) को ही दिया जाता है। काँची, वरार, लंका, कोशल के शासकों को उसने परास्त किया था। पालों से राढ़ (पं। वंगाल) तथा अंग छीनने वाला शासक धंगदेव ही था। हिन्दू राजा जयपाल को तुर्की आक्रमणकारियों के विरुद्ध सहायता उसने ही की थी। जिननाथ, विश्वनाथ तथा वैद्यनाथ के मंदिरों को खजुराहों में बनाने का कार्य उसी ने किया था। उसकी महत्त्वपूर्ण सफलता ग्वालियर विजय थी।
घंगदेव का पुत्र गण्डदेव (1002 से 1019 ई.) अगला चन्देल शासक वना। कन्नौज के राजा जयपाल की हत्या कर बत्रिलोचन पाल को शासक गण्डदेव ने ही बनाया था। गण्डदेव का पुत्र विधाधर भी महान शासक था।
Ø गण्डदेव के पश्चात्त चन्देलवंश में विजयपाल, देववर्मन, कीर्त्तिवर्मम, सलक्षणवर्मन, जयवर्मन, पृथ्वीवर्मन, मदनवर्मन इत्यादि अनेक शासक हुए। इनका इतिहास पर अधिक प्रभाव नही था।
Ø चन्देल वंश का अन्तिम महान राजा परमर्दि या
परिमल था, जिसने 1162 से 1202 ई. के मध्य
शासन किया। परमर्दि के समय वीर योद्धा आल्हा-ऊदल इतिहास में उल्लेखनीय है, उन्होंने पृथ्वीराज चौहान के साथ युद्ध किया था। 1203 ई. में कुतुबद्दीन ऐवक ने कालिंजर पर आक्रमण कर लिया था। चन्देलों की
सत्ता का पूर्णतः अन्त अलाऊद्दीन खिलजी के समय हुआ था।