संघीय प्रणाली एवं केंद्र -राज्य व केंद्र-शासित प्रदेश सम्बंध
भारत की संघात्मक व्यवस्था के तीन रूप है :
1.संघात्मक
व्यवस्था
2.एकात्मक
व्यवस्था
3.सहयोगी
संघवाद
भारत
के संविधान के संघात्मक लक्षण निम्नांकित हैं :-
द्वैध
नीति– संविधान मेँ द्वैध नीति प्रावधान (दोहरी सरकार) है, जिसमेँ केंद्र स्तर
पर संघ और क्षेत्र स्तर पर राज्य शामिल हैं।
शक्तियोँ
का विभाजन- संविधान की सातवीँ अनुसूची के अनुसार शक्तियो को केंद्र और राज्योँ के
मध्य संघ सूची राज्य सूची और समवर्ती सूची के संदर्भ मेँ बांटा गया है।
लिखित
संविधान– भारत का एक संविधान लिखित संविधान है जो केंद्र तथा राज्य सरकारोँ दोनो
के संगठन शक्तियोँ और सीमाओं को परिभाषित करता है।
संविधान
की सर्वोच्चता- संविधान देश का उच्चतम कानून है तथा केंद्र और राज्योँ के कानून
संविधान के अनुरुप होने चाहिए।
अनम्य
संविधान– भारतीय संविधान अनम्य संविधान है,
क्योंकि संघीय नीति (अर्थात केंद्र राज्य संबंध और न्यायिक संगठन)
मेँ केंद्र द्वारा कोई भी संशोधन अधिकांश राज्योँ की स्वीकृति से किया जाता है।
स्वतंत्र
न्यायपालिका- भारतीय संविधान मेँ उच्चतम न्यायालय को सर्वोपरि मानते हुए स्वतंत्र
न्यायपालिका का प्रावधान है।
केन्द्र
के पक्ष में शक्तियों का वितरण-
संविधान
में शक्तियों का विभाजन केन्द्र के पक्ष में किया गया है। संघ सूची के विषयों पर
कानून बनाने का अधिकार केवल संसद को है।
संघ
व राज्यों के लिए एकही संविधान-
केंद्र
और राज्योँ दोनो के लिए एक संविधान प्रणाली का प्रावधान है।
इकहरी
नागरिकता-
संविधान
के तहत एकल नागरिकता, अर्थात सभी राज्योँ और संघ राज्य क्षेत्रोँ मेँ सभी लोगोँ के लिए समान
भारतीय नागरिकता का प्रावधान है।
एकीकृत
न्याय व्यवस्था-
केंद्र
और राज्य सरकारोँ के कानूनोँ को लागू करने के लिए उच्चतम न्यायालय की अध्यक्षता
मेँ एकीकृत एवं एकल न्यायिक प्रणाली का प्रावधान है।
संकटकाल
में एकात्मक रूप-
संविधान
के माध्यम से राष्ट्रीय,
प्रांतीय और वित्तीय आपातकाल के दौरान केंद्रोँ को असाधारण शक्तियां
प्राप्त हो सकती हैं।
संसद
को राज्यों के पुनर्गठन की शक्ति-
संसद
साधारण बहुमत माध्यम से भारतीय क्षेत्र तथा राज्योँ की सीमाओं और नामोँ को बदल
सकती है (अनुच्छेद 3)।
राज्यसभा में राज्यों का असमान प्रतिनिधित्व-
भारतीय
संघ के राज्योँ का प्रतिनिधित्व राज्यसभा मेँ असमान ढंग से अर्थात आबादी के आधार
पर होता है।
राष्ट्रपति
द्वारा राज्यपालों की नियुक्ति -
राज्यपाल
को राज्य मेँ उच्चतम दर्जा प्राप्त है,
जिसे राष्ट्रपति द्वारा किसी भी समय नियुक्त और पद से हटाया जा सकता
है। राज्यपाल केंद्र के एजेंट के रुप मेँ भी कार्य करता है (अनुच्छेद 155 और 156)।
संविधान
संशोधन प्रक्रिया में संघ की सर्वोच्चता-
संविधान
मेँ कठोरता की बजाय लचीलापन अधिक है,
क्योंकि इसके अधिकांश भाग को अकेले संसद द्वारा संशोधित किया जा
सकता है।
एकल
संरचनाएँ -
राज्योँ
के लेखाखातों की लेखा परीक्षा भारत के नियंत्रक और महालेखा परीक्षक द्वारा की जाती
है। इनकी नियुक्ति और पदच्युति राष्ट्रपति द्वारा ही की जाती है।
राज्यों
की दुर्बल वित्तीय स्थिति-
राज्यों
की आय के स्त्रोत बहुत सीमित हैं। ये वित्तीय स्त्रोत राज्यों की लोक-कल्याणकारी
सेवाओं और विकास के लिए अपर्याप्त होते हैं। इसलिए राज्य अनुदान व सहायता के लिए
केन्द्र पर आश्रित रहते हैं।
राज्य
विधान मण्डलों में प्रस्तुत कतिपय विधेयकों पर राष्ट्रपति की पूर्व स्वीकृति-
कुछ
विधेयकों को राज्य विधान सभा में प्रस्तुत करने से पूर्व राष्ट्रपति की अनुमति
आवश्यक होती है।
अन्तर्राज्यीय
व क्षेत्रीय परिषद् -
अनुच्छेद
263 के अनुसार राष्ट्रपति राज्यों के पारस्परिक विवादों की जांच करने, राज्य सूची के
विषयों पर सूचना एकत्रित करने, सामान्य नीति – निर्धारण के
लिए यदि राष्ट्रपति लोक हित में आवश्यक समझे तो अन्तर्राज्यीय परिषद् की स्थापना
कर सकता है।
केन्द्र
के विशेष उत्तरदायित्व-
राज्यों की तुलना में केन्द्र को विशेष उत्तरदायित्व प्रदान किये गये हैं। वह अल्पसंख्यकों, अनुसूचित जातियों तथा अनुसूचित जनजातियों के उत्थान के लिये योजना बना सकता है तथा उन्हें क्रियान्वित करने के लिए राज्यों को निर्देश दे सकता है।
सहयोगी संघवाद में संघ और राज्य सरकारों में
सहयोग की भावना व्याप्त रहती है। इसमें प्रतिद्वन्दिता, संघर्ष और दमन के
स्थान पर प्रयोग, सहयोग, समन्वय और
अनुनय पर बल दिया जाता है। प्रो. के. सी. व्हेयर ने भारतीय संविधान को अर्ध संघीय
बताते हुए कहा है कि भारतीय संघ सहायक संघीय लक्षणों वाला एकात्मक राज्य है न कि
सहायक एकात्मक लक्षणों एक संघीय राज्य।
भारत
की राजनीतिक प्रणाली को सहयोगी संघ का स्वरूप प्रदान करने वाली निम्नलिखित
संवैधानिक और गैर संवैधानिक संस्थाओं द्वारा सहयोग दिया है :-
👉योजना
आयोग और राष्ट्रीय विकास परिषद्
👉वित्त
आयोग
👉अन्तर्राज्यीय
परिषद्
👉क्षेत्रीय
परिषद्
👉अखिल
भारतीय सेवायें
👉विश्वविद्यालय
अनुदान आयोग
👉प्रति
वर्ष राज्यपाल सम्मेलन,
मुख्यमंत्री सम्मेलन, वित्त मंत्री सम्मेलन,
गृह मंत्री सम्मेलन, विधि मंत्री तथा सिंचाई
मंत्री सम्मेलन आदि भी सहयोगी संघवाद के सहायक तत्त्व है।
सहयोगी
संघवाद के लक्षण-
👉सहयोगी
संघवाद में संघ और राज्यों के मध्य प्रतिद्वंद्विता के स्थान पर सहयोग, समन्वय और अनुनय पर
बल दिया जाता है।
👉विशेष
परिस्थितियों में संघीय सरकार की स्थिति प्रधान और निर्णायक होती है।
👉संघ
और राज्यों के वित्तीय स्रोत पृथक – पृथक होते हुए भी, राज्यों की
विकासवादी योजनाओं को क्रियान्वित करने के लिए संघीय अनुदानों की व्यवस्था होती
है।
👉राष्ट्र
के समूचे धन का प्रयोग सभी क्षेत्रों के समुचित विकास के लिए किया जाता है।
संघ-राज्य संबंध / केंद्र-राज्य संबंध
भारत, राज्यों का एक संघ है। भारत के संविधान को विधायपालिका, कार्यपालिका और केंद्र तथा राज्यों के बीच वित्तीय शक्तियों में विभाजित किया गया है, जो संविधान को संघीय विशेषता प्रदान करता है जबकि न्यायपालिका एक श्रेणीबद्ध संरचना में एकीकृत है। भाग XI में अनुच्छे 245-255 केंद्र और राज्यों के बीच विधायी संबंधों के विभिन्न पहलुओं का आदान-प्रदान करता है। संविधान में केंद्र और राज्यों के बीच सहयोग और समन्वय को सुरक्षित करने के लिए विभिन्न प्रावधान तय किए गए हैं।
केंद्र-राज्य संबंध तीन भागों में विभाजित हैं जिनका उल्लेख नीचे किया जा रहा है:
1.विधायी सम्बंध ( अनुच्छेद 245-255)
2.प्रशासनिक सम्बंध ( अनुच्छेद 256-263)
3.वित्तीय सम्बंध ( अनुच्छेद 268-293)
भाग XI में अनुच्छेद 245-255 केंद्र और राज्यों के बीच विधायी संबंधों के विभिन्न पहलुओं का आदान-प्रदान करता है। इसमे शामिल हैं:
👉संसद और राज्यों के विधान मंडलों द्वारा बनाए गए कानूनी क्षेत्राधिकार |
👉 विधायी विषयों की वितरण
👉राज्य सूची में एक विषय के संबंध में संसद को की शक्तियां । कानून बनाने
👉केंद्र सरकार के नियंत्रण वाली राज्य विधान मंडल
👉हालांकि, संविधान की सातवीं अनुसूची केंद्र और राज्यों के बीच विधायी शक्तियों का वितरण प्रदान करती है। विधायी विषयों को प्रथम सूची (संघ सूची), द्वितीय सूची (समवर्ती सूची) और तृतीय सूची (राज्य सूची) में बांटा गया है।
👉वर्तमान में, संघ सूची के अंतर्गत 100 विषय शामिल हैं जिसमें विदेशी मामलों, रक्षा, रेलवे, डाक सेवा, बैंकिंग, ऊर्जा, संचार, मुद्रा आदि जैसे विषय शामिल हैं। परमाणु
👉वर्तमान में, राज्य सूची में 61 विषय शामिल हैं। सूची में पुलिस, सार्वजनिक व्यवस्था, परिवहन, स्वास्थ्य, कृषि, स्थानीय सरकार, पेयजल की सुविधा, साफ-सफाई आदि जैसे विषय शामिल हैं।
👉वर्तमान में, समवर्ती सूची में 52 विषय शामिल हैं। सूची में शिक्षा, वन, जंगली जानवरों और पक्षियों की रक्षा, बिजली, श्रम कल्याण, आपराधिक कानून और प्रक्रिया, सिविल प्रक्रिया, जनसंख्या नियंत्रण और परिवार नियोजन, दवा आदि जैसे विषय शामिल हैं।
👉अनुच्छेद 245 अपनी कार्यकारी शक्तियों के प्रयोग से संबंधित कुछ मामलों में राज्यों को निर्देश देने के लिए केंद्र को शक्तियां प्रदान करता है।
👉अनुच्छेद 249 राष्ट्रीय हित में राज्य सूची में एक विषय के संबंध में कानून बनाने के लिए संसद को शक्तियां प्रदान करता है।
👉अनुच्छेद 250 के तहत, संसद जब राष्ट्रीय आपात स्थिति ( अनुच्छेद 352 ) होती है तो संसद के हाथों में राज्य सूची से संबंधित मामलों पर कानून बनाने की शक्तियां आ जाती हैं।
👉अनुच्छेद 252 के तहत, संसद के पास दो या दो से अधिक राज्यों के लिए उनकी सहमति से कानून बनाने का अधिकार है।
अनुच्छेद 256-263 का संबंध केंद्र और राज्यों के बीच प्रशासनिक संबंधों के आदान-प्रदान से है। अनुच्छेद 256 यह बताता है कि संसद द्वारा बनाए गये कानूनों का अनुपालन सुनिश्चत करना प्रत्येक राज्य का अधिकार है। कोई भी मौजूदा कानून जो उस राज्य पर लागू होता है और संघ की कार्यकारी शक्ति का विस्तार करने हेतु एक राज्य को इस तरह के दिशा-निर्देश दिए जाते हैं जिसे राज्य को इस उद्देश्य हेतु भारत सरकार के सामने प्रस्तुत करना जरूरी होता है।
केंद्र और राज्यों के बीच सहयोग
संविधान में केंद्र और राज्यों के बीच सहयोग और समन्वय को सुरक्षित करने के लिए विभिन्न प्रावधान तय किए गए हैं। इसमें शामिल है:
👉अनुच्छेद 261 यह बताता है कि "सार्वजनिक कानूनों, रिकॉर्ड और प्रत्येक राज्य तथा संघ की न्यायिक कार्यवाही के लिए पूर्ण विश्वास और पूरा श्रेय भारतीय भूभाग को दिया जाना चाहिए। "
👉अनुच्छेद 262 के अनुसार, 'संसद, विधि द्वारा किसी भी अन्तर्रजीय नदी या नदी घाटी के पानी के उपयोग, वितरण या नियंत्रण के संबंध में किसी भी विवाद या शिकायत पर निर्णय या फैसला सुना सकती है।"
👉अनुच्छेद 263 राज्यों के बीच विवादों पर चर्चा करने के लिए राष्ट्रपति को जांच कराने के लिए एक अंतर-राज्य परिषद का गठन करने की शक्ति देता है। यह राष्ट्रपति को कुछ या सभी राज्यों या संघ अथवा एक से अधिक राज्यों के उन विषयों पर जांच या चर्चा कराने की भी अनुमति देता है जिन पर सभी का एक साझा हित होता है।
👉अनुच्छेद 307 के अनुसार, संसद कानून के द्वारा व्यापार और वाणिज्य के अन्तार्रजीय स्वतंत्रता से संबंधित संवैधानिक प्रावधानों के प्रयोजनों को कार्यान्वित करने के लिए उचित समझे जाने वाले कानून द्वारा ऐसे प्राधिकारी नियुक्त कर सकता है।
आपातकाल के दौरान केंद्र और राज्य के संबंध
👉एक राष्ट्रीय आपातकाल (अनुच्छेद 352 ) के दौरान राज्य सरकार केंद्र सरकार के अधीनस्थ हो जाती है। राज्य के सभी कार्यकारी कार्य केंद्र सरकार के नियंत्रण में आ जाते हैं।
👉एक राज्य में आपातस्थिति के दौरान (अनुच्छेद 356 के तहत), राज्य के विधान मंडल के अलावा, राष्ट्रपति खुद सभी या राज्य सरकार और राज्य में राज्यपाल या प्राधिकारी द्वारा प्रयोग की जाने वाली शक्तियों और सभी या किसी भी कार्य को अपने हाथों में ले सकते हैं।
👉वित्तीय आपात स्थिति ( अनुच्छेद 360) के दौरान संघ अथवा केंद्र किसी भी राज्य सरकार को वित्तीय सिद्धांतों का पालन करने के दिशा-निर्देश दे सकता है जो विशिष्ट दिशा-निर्दिष्ट भी हो सकते हैं। इन दिये जाने वाले दिशा-निर्देशों पर राष्ट्रपति स्पष्ट और आवश्यक निर्णय दे सकते हैं।
संविधान के बारहवें भाग का अनुच्छेद 268-293 केंद्र और राज्य के वित्तीय संबंधों के संबंधित है।
राजस्व शक्तियों का आवंटन
संविधान, केंद्र सरकार और राज्य सरकारों को राजस्व के स्वतंत्र स्रोत प्रदान करता है। केंद्र और राज्य को आवंटित शक्तियों को निम्नलिखित बिंदुओं द्वारा समझा जा सकता है:
👉संसद के पास संघ सूची में उल्लिखित विषयों पर कर लगाने की अनन्य शक्ति है।
👉राज्य विधायिकाओं के पास राज्य सूची में वर्णित विषयों पर कर लगाने की अनन्य शक्ति है
👉संसद और राज्य विधायिका दोनों के पास समवर्ती सूची में वर्णित विषयों पर कर लगाने का अधिकार है।
👉संसद के पास अवशिष्ट विषयों से संबंधित मामलों पर कर लगाने की अनन्य शक्ति है।
हालांकि, कर राजस्व वितरण के मामले में, अनुच्छेद 268 यह बताता है कि कर संघ अथवा केंद्र द्वारा लगाए जाते हैं लेकिन राज्य द्वारा उन्हें एकत्र और विनियोजित किया जाता है;
👉सेवा कर, संघ द्वारा लगाए जाता है और संघ एवं राज्यों द्वारा एकत्र और विनियोजित किया जाता है (अनुच्छेद 268-ए);
👉करों को संघ द्वारा लगाया और एकत्र किया जाता है लेकिन राज्यों को सौंपा जाता है (अनुच्छेद 269);
👉करों को संघ द्वारा लगाया और एकत्र किया जाता है लेकिन राज्यों और संघों के बीच वितरित किया जाता है ( अनुच्छेद 270);
👉संघ के प्रयोजनों के लिए कुछ खास शुल्कों और करों पर अधिभार लगाया जाता है ( अनुच्छेद 271 ) ।
👉अनुच्छेद 275 के तहत, संसद किसी भी राज्य के लिए अनुदान सहायता प्रदान करने के लिए अधिकृत है। संसद सहायता की जरूरत निर्धारित की जरूरत होने के लिए निर्धारित कर सकते हैं अनुदान सहायता की जरूरत निर्धारित कर सकते हैं और विभिन्न राज्यों के लिए भिन्न राशियां तय की जा सकती है।
👉अनुच्छेद 282 के तहत, संघ या किसी राज्य किसी भी सार्वजनिक उद्देश्य के लिए किसी भी प्रकार का अनुदान कर सकते हैं, बाबजूद इसके भी कि जिस संदर्भ के साथ संसद और राज्य विधायिका, नियमों का निर्माण किया है वो उसका उद्देश्य है ही नहीं ।
👉अनुच्छेद 352 के तहत, राष्ट्रीय आपातकाल की कार्रवाई के दौरान, केंद्र और राज्यों के बीच राजस्व के वितरण को राष्ट्रपति द्वारा बदला जा सकता है।
👉अनुच्छेद 360 के तहत, वित्तीय आपात स्थिति के आपरेशन के दौरान संघ अथवा केंद्र किसी भी राज्य सरकार को वित्तीय सिद्धांतों का पालन करने के दिशा-निर्देश दे सकता है जो विशिष्ट दिशा-निर्दिष्ट भी हो सकते हैं। इन दिये जाने वाले दिशा-निर्देशों पर राष्ट्रपति स्पष्ट और आवश्यक निर्णय दे सकते हैं।
केंद्र- व- राज्य संबंधों से संबंधित पहले प्रशासनिक सुधार आयोग की महत्वपूर्ण सिफारिशें इस प्रकार हैं:
👉अनुच्छेद 263 के तहत एक अंतर-राज्यीय परिषद की स्थापना ।
👉जितना संभव हो सके राज्यों के लिए शक्तियों का विकेन्द्रीकरण |
👉राज्यों के लिए वित्तीय संसाधनों का अधिक हस्तांतरण।
👉इस तरह की हस्तांतरण की व्यवस्था करना जिससे राज्य अपने दायित्वों को पूरा कर सकते हैं।
👉राज्यों के लिए ऋण की प्रगति 'उत्पादक सिद्धांत' के रूप से संबंधित होनी चाहिए ।
👉राज्यों में उनके अनुरोध या अन्यथा के अनुसार केंद्रीय सशस्त्र बलों की तैनाती ।
अन्य
महत्वपूर्ण बिन्दु-
👉भारतीय
संघीय व्यवस्था कनाडा से प्रभावित है।
👉उच्चतम
न्यायालय केंद्र और राज्योँ अथवा राज्योँ के मध्य विवाद का निपटान करता है।
👉डाक्टर
बी. आर. अंबेडकर ने कहा था कि भारतीय राजनीतिक व्यवस्था समय और परिस्थितियोँ की
जरुरतोँ के अनुसार एकात्मक और संघात्मक दोनो है। उनके अनुसार राज्योँ का संघ वाक्य
राज्योँ के परिसंघ वाक्य पर वरीयता देना दो चीजो का संकेतक है –
1.
भारतीय संघ अमेरिकी संघ की भांति भारतीय राज्योँ के बीच एक समझौते का परिणाम नहीँ
है, और
2. राज्यों को संग से पृथक होने का अधिकार नहीँ है। संघ एक सम्मिलन है क्योंकि यह अविघटनीय है।