सोलंकी (चौलुक्य) वंश और कलचुरी वंश
सोलंकी वंश
गुजरात के सोलंकी वंश की स्थापना मूलराज प्रथम ने (942-955 ई.) में की थी।
चौलुक्यशासक भीमराज प्रथम (1022-1064 ई.) के समय में सोमनाथ पर महमूद गजनवी ने आक्रमण किया था। 1025 ई. सोमनाथ पर आक्रमण के समय महमूद गजनवी से डरकर भीमराज भाग गया था।
चौलुक्य या सोलंकी वंश का सर्वाधिक शक्तिशाली शासक जयसिंह सिद्धराज था, जिसने 1044 से 1145 ई, तक शासन किया था। उसने चौहान, परमार, चन्देल कल्याणी के चालुक्यों को पराजित कर अपनी शक्ति का विस्तार किया था।
चौलुक्य शासक मूलराज द्वितीय के समय 1178 ई. में मुहम्मद गौरी ने सोलंकियों पर आक्रमण किया था, जो चौलुक्य शासक भीम के द्वारा पराजित कर दिया गया था।
1178 ई. में कुतुबद्दीन ऐवक ने भीम द्वितीय को परास्त कर गुजरात पर अधिकार कर लिया। चौलुक्य वंश का अन्त बघेलों ने किया था।
कलचुरी वंश
9वीं शताब्दी में कोक्कल प्रथम ने त्रिपुरी या चेदि जवलपुर के निकट डाहलमण्डल में कलचुरी वंश को स्थापित किया था।
गांगेयदेव कलचुरी वंश का सर्वाधिक प्रतापशाली शासक था, जिसने 1019 से 1040 ई. तक शासन किया था। गांगेयदेव ने “विक्रमादित्य” की उपाधि धारण की थी। उत्कल, भागलपुर, वनारस पर उसने अधिकार प्राप्त किया था।
कलचुरि वंश का अन्तिम महान शासक लक्ष्मीकर्ण था, जिसने 1042 से 1072 ई. तक शासन किया था। उसने चोल, पाण्ड्य एवं कुन्तल शासकों को पराजित किया था। इलाहाबाद एवं पश्चिमी बंगाल पर भी उसने विजय प्राप्त की थी। 1211 ई. में चन्देलों ने कलचुरि वंश की सत्ता को समाप्त कर दिया था।