सामान्य अशुद्धियाँ, वर्तनी एवं वाक्य शुद्धिकरण

वर्तनी शुद्ध कीजिए,वर्तनी के उदाहरण,वर्तनी क्या है, वर्तनी के प्रकार,वर्तनी किसे कहते हैं,वाक्य शुद्धिकरण,वाक्य शुद्धिकरण के नियम, वाक्य शुद्धि PDF

वर्तनी एवं वाक्य शुद्धिकरण

किसी शब्द को लिखने में प्रयुक्त वर्णों के क्रम को वर्तनी या अक्षरी कहते हैं अंग्रेजी में वर्तनी को 'Spelling  कहते हैं। किसी भाषा की समस्त ध्वनियों को सही ढंग से उच्चारित करने हेतु वर्तनी की एकरूपता स्थापित की जाती है। जिस भाषा की वर्तनी में अपनी भाषा के साथ अन्य भाषाओं की ध्वनियों को ग्रहण करने की जितनी अधिक शक्ति होगी, उस भाषा को बर्तनी उतनी ही समर्थ होगी। अतः वर्तनी का सीधा सम्बन्ध भाषागत ध्वनियों के उच्चारण से है।

शुद्ध वर्तनी लिखने के प्रमुख नियम निम्न प्रकार है

👉 हिन्दी में विभक्ति चिह्न सर्वनामों के अलावा शेष सभी शब्दों से अलग लिखे जाते हैं,
जैसे-
मोहन ने पुत्र को कहा। 
श्याम को रुपये दे दो।

परन्तु सर्वनाम के साथ विभक्तिचिह्न हो तो उसे सर्वनाम में मिलाकर लिखा जाना चाहिए। 
जैसे- हमने, उसने, मुझसे, आपको, उसकोतुमसे, हमको, किससे, किसको, किसने किसलिए आदि।

👉 सर्वनाम के साथ दो विभक्ति होने पर पहला विभक्ति चिह्न सर्वनाम में मिलाकर लिखा जाएगा एवं दूसरा अलग लिखा जाएगा, जैसे- आपके लिए, उसके लिए, इनमें से, आपमें से, हममें से आदि। 

सर्वनाम और उसकी विभक्ति के बीच "ही" अथवा "तक" आदि अन्य हों तो विभक्ति सर्वनाम से अलग लिखी जायेगी, जैसे- आप ही के लिए, आप तक को, मुझ तक को, उस ही के लिए।

👉 संयुक्त क्रियाओं में सभी अंगभूत क्रियाओं को अलग-अलग लिखा जाना चाहिये जैसे- जाया करता है, पढ़ा करता है, जा सकते हो, खा सकते हो आदि। 

👉 पूर्वकालिक प्रत्यय "कर" को क्रिया से मिलाकर लिखा जाता है, जैसे- सोकर, उठकर, गाकर, धोकर, मिलाकर, अपनाकर, खाकर, पीकर आदि । 

👉 द्वन्द्व समास में पदों के बीच योजक (-) हाइफन लगाया जाना चाहिए। जैसे- माता-पिता, राधा-कृष्ण, बाप-बेटा, रात-दिन आदि।

👉 "तक" "साथ" आदि अव्ययों को पृथक लिखा जाना चाहिए, जैसे-  मेरे साथ, हमारे साथ, यहाँ तक, अब तक आदि।

👉 'जैसा' तथा 'सा' आदि वाचकों के पहले योजक चिह्न (-) का प्रयोग किया जाना चाहिए जैसे- चाकू-सा तीखा-सा, प्यारा-सा, कन्हैया-सा आदि।

👉 जब वर्णमाला के किसी वर्ण के पंचम अक्षर के बाद उसी वर्ण के प्रथम चारों वर्णों में से कोई वर्ण हो तो पंचम वर्ण के स्थान पर अनुस्वार (ं) का प्रयोग होना चाहिए। जैसे- कंकर, गंगा, चंचल, ठंड, नंदन, संपन्न, अंत, संपादक आदि। परंतु जब व्यंजन (वर्ण  का पंचम वर्ण) उसी वर्ण के प्रथम चार वर्णों के अलावा अन्य किसी वर्ण के पहले आता है तो उसके साथ उस पंचम वर्ण का आधा रूप ही लिखा जाना चाहिए जैसे -पत्र सम्राट, पुण्य, अन्य, सन्मार्ग, रम्य, जन्म, अन्य, अन्वेषण, निम्न, सम्मान, परन्तु घन्टा, ठन्डा लिखना अशुद्ध है।

👉,, एवं आ मात्रा वाले वर्णों के साथ अनुनासिक चिह्न () को इसी चन्द्रबिन्दु () के रूप में लिखा जाना चाहिए

जैसे- आँख, हँस, जाँच, काँच, अँगना, साँस, ढाँचा, हूँ आदि। 

    परन्तु अन्य मात्राओं के साथ अनुनासिक चिह्न को अनुस्वार (ं) के रूप में लिखा जाता है

जैसे- मैंने नहीं खींचना वा सिंचाई, ईंट आदि।  

👉 संस्कृत मूल के तत्सम शब्दों की वर्तनी में संस्कृत वाला रूप ही रखा जाना चाहिए परन्तु कुछ शब्दों के नीचे  ) लगाने का प्रचलन हिन्दी में समाप्त हो चुका है। अतः उनके नीचे न लगाया जाये 

जैसे-महान, जगत, विद्वान आदि परन्तु संधि वा छन्द को समझने हेतु नीचे हलन्त ) लगाया जाएगा।

👉 अंग्रेजी से हिन्दी में आये जिन शब्दों में आधे 'ओ (अ एवं ओ के बीच की ध्वनि " ऑ") की ध्वनि का प्रयोग होता है, उनके ऊपर अर्द्ध चन्द्रबिन्दु लगानी चाहिए, जैसे- बॉल कॉलेज, डॉक्टर, कॉफी, हॉल, हॉस्पिटल आदि। 

👉 संस्कृत भाषा के ऐसे शब्दों, जिनके आगे विसर्ग (:) लगता है, यदि हिन्दी में वे तत्सम रूप में प्रयुक्त किये जाएँ तो उनमें विसर्ग लगाना चाहिए

जैसे- दुःख, स्वान्तः, फलतः,प्रातः अतः मूलतः प्रायः आदि। परन्तु दुखद एवं आदि में विसर्ग का लोप हो गया है। 

👉 विसर्ग के पश्चात् श, , या स आये तो या तो विसर्ग को यथावत लिखा जाता है या उसके स्थान पर अगला वर्ण अपना रूप ग्रहण कर लेता है।

जैसे- दुः + शासन = दुःशासन या दुश्शासन, निः + सन्देह = निःसन्देह या निस्सन्देह

वर्तनी संबंधी अशुद्धियाँ एवं उनमें सुधार

उच्चारण दोष अथवा शब्द रचना और संधि के नियमों की जानकारी की अपर्याप्तता के कारण सामान्यतः वर्तनी अशुद्धि हो जाती है। वर्तनी की अशुद्धियों के प्रमुख कारण निम्न हैं-

उच्चारण दोष 

कई क्षेत्रों व भाषाओं में आदि वर्णों में स-श, व-ब,न-ण में अर्थभेद नहीं किया जाता तथा इनके स्थान पर एक ही वर्ण स, , या न बोला जाता है जबकि हिन्दी में इन वर्णों  की अलग-अलग अर्थभेदक ध्वनियाँ हैं।  अतः उच्चारण दोष के कारण इनके लेखन में अशुद्ध हो जाती है। 

उदाहरण-

अशुद्ध                         शुद्ध

कोसिस-               कोशिश
सीदा-                   सीधा
सबी-                    सभी
सोर-                     शोर
अराम-                  आराम
पाणी-                   पानी
बबाल-                  बवाल
पाठसाला-             पाठशाला
निपुन-                  निपुण
प्रान-                     प्राण
बचन-                   वचन
गुन-                      गुण

👉 जहाँ '' एवं '' एक साथ प्रयुक्त होते हैं वहाँ '' पहले "श"आयेगा एवं उसके बाद "स"  आयेगा। 

जैसे- शासन प्रशंसा, शासक 

इसी प्रकार "श" एवं "ष" एक साथ आने पर पहले "श" आयेगा फिर "ष" आयेगा। 

जैसे- शोषण, शीर्षक, विशेष, विशेषण आदि।

👉 अक्षर रचना की जानकारी का अभाव: देवनागरी लिपि में संयुक्त व्यंजनों में दो व्यंजन मिलाकर लिखे जाते हैं, परन्तु इनके लिखने में त्रुटि हो जाती है,

जैसे- आर्शीवाद- अशीर्वाद, निमार्ण-       निर्माण, पुर्नस्थापना पुनर्स्थापना
            जब "र" (रेफ) किसी अक्षर के ऊपर लगा हो तो वह उस अक्षर से पहले पढ़ा जाएगा। यदि हम सही उच्चारण करेंगे तो अशुद्धि का ज्ञान हो जाता है। आशीर्वाद में वा से पहले बोला जायेगा। इसी प्रकार निर्माण में "र" का उच्चारण "मा" से पहले होता है। 

👉 कोई, भाई, मिठाई, कई, ताई, आदि शब्दों को कोयी, भायी, मिठायी, तायी आदि लिखना अशुद्ध है। इसी प्रकार अनुयायी, स्थायी वाजपेयी शब्दों को अनुयाई स्थाई वाजपेई आदि रूप में लिखना भी अशुद्ध होता है।

👉 सम उपसर्ग के बाद य, , , , , , , आदि ध्वनि हो तो "म" को हमेशा अनुस्वार (ं) के रूप में लिखते हैं

जैसे- संयम, संवाद, संलग्न, संसर्ग, संहार, संरचना संरक्षण आदि। इन्हें सम्शय, सम्हार, सम्बाद, सम्रचना सम्लग्न, आदि रूप में लिखना अशुद्ध होता है। 

👉 अनुनासिक शब्दों में यदि '' या '' या "ऊ" की मात्रा वाले वर्णों में अनुनासिक ध्वनि आती है तो उसे हमेशा ()  के रूप में ही लिखा जाना चाहिए। जैसे- दाँत, पूँछ,पाँच हाँ, चाँद, ढाँचा आदि, परन्तु जब वर्ण के साथ अन्य मात्रा हो तो () के स्थान पर अनुस्वार (ं) का प्रयोग किया जाता है, जैसे- फेंक, नहीं, खींचना। 

👉  विराम चिह्नों का प्रयोग न होने पर भी अशुद्धि हो जाती है और अर्थ का  अनर्थ हो जाता है।
जैसे-

रोको, मत जाने दो

रोको मत, जाने दो।

इन दोनों वाक्यों में अन्य विराम के स्थान परिवर्तन से अर्थ बिल्कुल उल्टा हो गया है।

👉 '' वर्ण केवल षट् (छ) से बने कुछ शब्दों, यथा- षट्कोण षणयंत्र आदि के प्रारंभ में ही आता है। अन्य शब्दों के शुरू में "श" लिखा जाता है। जैसे- शोषण, शासन, शेषनाग आदि। 

👉 संयुक्ताक्षरों में ट् वर्ण से पूर्व में हमेशा "ष" का प्रयोग किया जाता है, चाहे मूलशब्द "श" से बना हो, जैसे-सृष्टि षष्ट, नष्ट श्रेष्ठ, कृष्ण, विष्णु आदि। 

👉 'क्श' का प्रयोग सामान्यतः नक्शा, रिक्शा, नक्श आदि शब्दों में ही किया जाता है, शेष सभी शब्दों में "क्ष" का प्रयोग किया जाता है। 

जैसे- रक्षा, कक्षा, क्षमता, सक्षम, शिक्षा, दक्ष आदि। 

👉  ''ज्ञ" ध्वनि के उच्चारण हेतु 'ग्य' लिखित रूप में हिन्दी में ही प्रयुक्त होता है, ग्यारह, योग्य, अयोग्य, भाग्य, रोग से बने शब्द जैसे- अरोग्य आदि में इनके अलावा अन्य शब्दों में का प्रयोग करना सही होता है, जैसे ज्ञान, अज्ञात, यज्ञ, विशेषज्ञ, विज्ञान, वैज्ञानिक आदि

👉 हिन्दी भाषा सीखने के चार मुख्य सोपान है सुनना, बोलना, पढ़ना, लिखना हिन्दी भाषा की लिपि देवनागरी है जिसकी प्रधान विशेषता है कि जैसे बोली जाती है वैसे ही लिखी जाती है। जैसे -  यदि "ए' की ध्वनि आ रही है तो उसकी मात्रा का प्रयोग करें। यदि उ की ध्वनि आ रही है तो उ की मात्रा का प्रयोग करें।

हिन्दी में अशुद्धियों के विविध प्रकार

शब्द-संरचना तथा वाक्य प्रयोग में वर्तनीगत अशुद्धियों के कारण भाषा दोषपूर्ण हो जाती है। -

भाषा (अक्षर या मात्रा) सम्बन्धी अशुद्धियाँ

अशुद्ध                         शुद्ध

बृटिश                           ब्रिटिश
त्रगुण                            त्रिगुण
पैत्रिक                           पैतृक
जाग्रती                          जागृति
स्त्रीयाँ                           स्त्रियाँ
ईर्षा                              ईर्ष्या

लिंग सम्बन्धी अशुद्धियाँ

हिन्दी में लिंग सम्बन्धी अशुद्धियाँ प्रायः दिखाई देती हैं।-

(1) विशेषण शब्दों का लिंग सदैव विशेष्य के समान होता है।

(2) दिनों, महीनों, ग्रहों, पहाड़ों, आदि के नाम पुल्लिंग में प्रयुक्त होते हैं, किन्तु तिथियों, भाषाओं और नदियों के नाम स्त्रीलिंग में प्रयोग किये जाते हैं।

(3) प्राणिवाचक शब्दों का लिंग अर्थ के अनुसार तथा अप्राणिवाचक शब्दों का लिंग व्यवहार के अनुसार होता है।

(4) अनेक तत्सम शब्द हिन्दी में स्त्रीलिंग में प्रयुक्त होते हैं।

दही बड़ी अच्छी है। - (बड़ा अच्छा)
आपने बड़ी अनुग्रह की - (बड़ा, किया)
मेरा कमीज उतार लाओ - (मेरी)
लड़के और लड़कियाँ चिल्ला रहे हैं। - (रही)
कटोरे में दही जम गई। - (गया)
मेरा ससुराल जयपुर में है - (मेरी)
महादेवी विदुषी कवि हैं - (कवयित्री)
आत्मा अमर होता है - (होती)

समास सम्बन्धी अशुद्धियाँ

दो या दो से अधिक पदों का समास करने पर प्रत्ययों का उचित प्रयोग न करने से जो शब्द बनता है, उसमे कभी-कभी अशुद्धि रह जाती है। जैसे-

अशुद्ध                         शुद्ध

निरपराधी                      निरपराध
ऋषीजन                       ऋषिजन
प्राणीमात्र                       प्राणिमात्र
स्वामीभक्त                    स्वामिभक्त
पिताभक्ति                     पितृभक्ति

संधि सम्बन्धी अशुद्धियाँ

अशुद्ध                         शुद्ध

उपरोक्त                       उपर्युक्त
सदोपदेश                      सदुपदेश
सदेव                            सदैव
अत्याधिक                     अत्यधिक
सन्मुख                          सम्मुख

विशेष्य-विशेषण सम्बन्धी अशुद्धियाँ 

अशुद्ध                         शुद्ध

पूज्यनीय व्यक्ति             पूजनीय व्यक्ति
महान कृपा                   महती कृपा
गोपन कथा                    गोपनीय कथा
विद्वान नारी                   विदुषी नारी

प्रत्यय-उपसर्ग सम्बन्धी अशुद्धियाँ

अशुद्ध                         शुद्ध

सौन्दर्यता                      सौन्दर्य
गौरवता                         गौरव
चातुर्यता                        चातुर्य
ऐक्यता                          ऐक्य
सामर्थ्यता                      सामर्थ्य
सौजन्यता                      सौजन्य

वचन सम्बन्धी अशुद्धियाँ

(1) हिन्दी में बहुत-से शब्दों का प्रयोग सदैव बहुवचन में होता है. ऐसे शब्द हैं -हस्ताक्षर, प्राण, दर्शन, आँसू, होश आदि।

(2) वाक्य में “या”, “अथवा” का प्रयोग करने पर क्रिया एकवचन होती है। लेकिन “और” एवं “तथा” का प्रयोग करने पर क्रिया बहुवचन होती है।

(3) आदरसूचक शब्दों का प्रयोग सदैव बहुवचन में होता है।

उदाहरण-
दो चादर खरीद लाया। - (चादरें)
एक चटाइयाँ बिछा दो। - (चटाई)
मेरा प्राण संकट में है। - (मेरे)
यह हस्ताक्षर किसका है
? - (ये. किसके हैं)
विनोद
, रमेश और रहीम पढ़ रहा है। - (रहे हैं).

अन्य उदाहरण-

अशुद्ध                         शुद्ध

मातायों                         माताओं
नारिओं                         नारियों
अनेकों                          अनेक
विद्यार्थीयों                      विद्यार्थियों

कारक सम्बन्धी अशुद्धियाँ

उदाहरण-

अशुद्ध- राम घर नहीं है।
शुद्ध- राम घर पर नहीं है।

अशुद्ध- अपने घर साफ रखो।
शुद्ध- अपने घर को साफ रखो।

अशुद्ध- उसको काम को करने दो।
शुद्ध- उसे काम करने दो।

अशुद्ध- आठ बजने को पन्द्रह मिनट है।
शुद्ध- आठ बजने में पन्द्रह मिनट हैं।

अशुद्ध- मुझे अपने काम को करना है।
शुद्ध- मुझे अपना काम करना है।

अशुद्ध- यहाँ बहुत से लोग रहते हैं।
शुद्ध- यहाँ बहुत लोग रहते हैं।

शब्द-क्रम सम्बन्धी अशुद्धियाँ

उदाहरण-

अशुद्ध- वह पुस्तक है पढ़ता
शुद्ध- वह पुस्तक पढ़ता है।

अशुद्ध- आजाद हुआ था यह देश सन् 1947 में।
शुद्ध- यह देश सन
1947 में आजाद हुआ था।

अशुद्ध- पृथ्वीराज रासो रचना चन्द्रवरदाई की है।
शुद्ध- चन्द्रवरदाई की रचना
'पृथ्वीराज रासो है।

वाक्य-रचना सम्बन्ध अशुद्धियाँ

उदाहरण-

(1) वाक्य-रचना में कभी विशेषण का विशेष्य के अनुसार उचित लिंग एवं वचन में प्रयोग न करने से या गलत कारक चिह्न का प्रयोग करने से अशुद्धियाँ रह जाती हैं।

(2) उचित विराम-चिह्न का प्रयोग न करने से अथवा शब्दों को उचित क्रम में न रखने पर भी अशुद्धियाँ रह जाती हैं।

(3) अनर्थक शब्दों का अथवा एक अर्थ के लिए दो शब्दों का और व्यर्थ के अव्यय का प्रयोग करने से भी अशुद्धि रह जाती है।

उदाहरण-

अशुद्ध- सीता राम की स्त्री थी।
शुद्ध- सीता राम की पत्नी थी।

अशुद्ध- मंत्रीजी को एक फूलों की माला पहनाई।
शुद्ध- मंत्रीजी को फूलों की एक माला पहनाई।

अशुद्ध- शत्रु मैदान से दौड़ खड़ा हुआ था।
शुद्ध- शत्रु मैदान से भाग खड़ा हुआ।

अशुद्ध- मेरे भाई को मैंने रुपये दिए।
शुद्ध- अपने भाई को मैंने रुपये दिये।

अशुद्ध- यह किताब बड़ी छोटी है।
शुद्ध- यह किताब बहुत छोटी है।

अशुद्ध- उपरोक्त बात पर मनन कीजिए।
शुद्ध- उपर्युक्त बात पर मनन करिये।

सामान्यतः शुद्ध किए जाने वाले प्रमुख शब्द

अशुद्ध                         शुद्ध

अतिथी                          अतिथि
अतिश्योक्ति                  अतिशयोक्ति
अमावश्या                     अमावस्या
अनुगृह                         अनुग्रह
अन्धेरा                          अँधेरा

Previous Post Next Post