भारतीय अर्थव्यवस्था 1947-1991 तक , Indian Economy 1947-1991,स्वतंत्रता के बाद भारतीय अर्थव्यवस्था, Indian Economy After Independence

भारतीय अर्थव्यवस्था का विकास,भारतीय अर्थव्यवस्था के उद्देश्यों,भारतीय अर्थव्यवस्था की समस्याओं को समझाइए,भारतीय अर्थव्यवस्था में सर्वाधिक योगदान किसका

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भारतीय अर्थव्यवस्था 1950-1990

स्वतंत्रता के बाद भारत की अर्थव्यवस्था को मिश्रित अर्थव्यवस्था चुना गया। जिसमें सार्वजनिक तथा निजी दोनों क्षेत्रों को स्थान दिया गया था। मिश्रित अर्थव्यवस्था को समाजवादी और पूँजीवादी अर्थव्यवस्था के ऊपर स्थान दिया गया था।

समाजवादी अर्थव्यवस्था 
इस अर्थव्यवस्था में समाज की आवश्यकता के अनुसार भिन्न वस्तुओं का

उत्पादन किया जाता है। यह माना जाता है कि सरकार यह जानती हैं कि देश के हित में क्या है अतः लोगों की वैयक्तिक इच्छाओं पर ध्यान नहीं दिया जाता। इसमें वितरण लोगों की आवश्यकता के आधार पर होता है न कि उनकी क्रय क्षमता के आधार पर। वितरण तथा

पूँजीवादी अर्थव्यवस्था
👉 समाजवादी अर्थव्यवस्था के इतर पूँजीवादी अर्थव्यवस्था में निर्माण लोगों की क्रय शक्ति के आधार पर होता है, उनकी आवश्यकता के आधार पर नहीं ।

👉 वर्ष 1950 में प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में योजना आयोग की स्थापना हुई। इसे सोवियत संघ से प्रेरित होकर लिया गया था यह Top to Bottom approach पर कार्य करती थी। वर्तमान में इसकी जगह नीति आयोग ने ले ली है। द्वितीय पंचवर्षीय योजना महालनोबिस के सिद्धांत पर आधारित थी। 

पंचवर्षीय योजना के लक्ष्य- मुख्यतः 4 लक्ष्य थे।

1. संवृद्धि- देश में वस्तुओं और सेवाओं की उत्पादन क्षमता में वृद्धि।

2. आधुनिकीकरण- नई तकनीकी (New Technology) को अपनाना ही आधुनिकीकरण है। 

3. आत्मनिर्भरता हमारी सात पंचवर्षीय योजना में आत्मनिर्भरता पर जोर दिया गया। अर्थात् उन वस्तुओं के आयात से बचा जाये जिन्हें देश में ही बनाया जा सकता है।

4. समानता- यह सुनिश्चित करना कि आर्थिक समृद्धि के लाभ देश के निर्धन वर्ग को भी सुलभ हो ।

देश में जमींदारी को खत्म करने के लिए भूमि सुधार कार्यक्रम चलाए गए जिन्हें विशेष सफलता मिली।

औद्योगिक नीति प्रस्ताव (1956)

इसे द्वितीय पंचवर्षीय योजना में लागू किया गया। इसमें उद्योग को तीन वर्गों में बाँटा गया।

1. प्रथम वर्ग- वे उद्योग शामिल थे जिन पर राज्य का स्वामित्व था । 

2. द्वितीय वर्ग- निजी व सरकारी क्षेत्र मिलकर जो उद्योग शुरू करते थे।

3. तृतीय वर्ग- निजी क्षेत्र के उद्योग । निजी क्षेत्र को लाइसेंस पद्धति के माध्यम से नियंत्रण में रखा गया। उत्पादन बढ़ाने के लिए लाइसेंस तभी दिया जाता था जब सरकार आश्वस्त हो जाती थी कि अर्थव्यवस्था में बढ़ी हुई मात्रा की आवश्यकता है।

लघु उद्योग
👉 वर्ष 1955 में ग्राम तथा लघु उद्योग समिति, जिसे कर्वे समिति भी कहा जाता था ने लघु उद्योग का सुझाव दिया।

👉 1950 में 5 लाख तक के उद्योग को लघु उद्योग के दर्जे में रखा जाता था। आज इसे 1 करोड़ कर दिया गया है।

👉 लघु उद्योग को अधिक श्रम प्रधान माना जाता था। अतः ये अधिक रोजगार सृजन करते हैं। 

👉 लघु उद्योग, बड़े उद्योगों से प्रतिस्पर्धा नहीं कर सकते अतः इनकी रक्षा किया जाना आवश्यक है। जिसके लिए कम उत्पाद शुल्क, कम ब्याज पर ऋण आदि सुविधाएं इन्हें दी जाती हैं।

व्यापार नीति
प्रथम सात पंचवर्षीय योजना में व्यापार की अंतर्मुखी व्यापार नीति थी। तकनीकी रूप से इसे आयात प्रतिस्थापन कहा जाता है। वस्तुओं का आयात करने के स्थान पर भारत में ही बनाने पर जोर दिया जाता था। आयात संरक्षण के 2 प्रकार थे।

1. प्रशुल्क - आयातित वस्तुओं पर लगाया गया कर।

2. कोटा - आयातित वस्तुओं की मात्रा को निर्धारित करना

औद्योगिक नीतियों का प्रभाव

प्रभाव
क्षेत्र GDP(1950-1951) GDP(1990-1991)
कृषि 59% 34.9%
उद्योग 13% 24.6%
सेवायें 28% 40.5%

1950-1990 तक की नीतियों में कमियां 

👉 बड़े उद्योगपति नई फर्म शुरू करने के लिए नहीं बल्कि प्रतिस्पर्धा को समाप्त करने के लिए लाइसेंस जारी करा लेते थे।

👉 प्रतिस्पर्धा कम होने के कारण उत्पादक अच्छी गुणवत्ता की वस्तुएँ नहीं बनाते थे

👉 इस समस्याओं के कारण सरकार ने 1991 में नई आर्थिक नीति प्रारम्भ की।

👉 वर्ष 1990 तक देश में उत्पादन को बढ़ाने के लिए कई अभियान चलाए गए जिन्हें क्रांतियों का नाम दिया गया

1. भूरी क्रांति - उर्वरक उत्पादन तथा Non Conventional Energy Source.

2. श्वेत क्रांति - दुग्ध उत्पादन। डॉ॰ वर्गीज कुरियन के नेतृत्व में।

3. स्वर्णिम क्रांति - मधुमक्खी पालन से।

4. सुनहरी क्रांति - जूट और फल उत्पादन से।
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