प्रारम्भिक मध्यकालीन भारत
गुर्जर-प्रतिहार
(The Gurjara - Pratihars)
राजनीतिक इतिहास
गुर्जर प्रतिहारों का उल्लेख बौक के जोधपुर अभिलेख में मिलता है विद्वानों के अनुसार हृणों के साथ भारत में गुर्जर आये एवं पंजाव से राजपूताना तक प्रसारित हो गए। उनके पूर्वज (लक्ष्मण) ने रामचन्द्र के द्वारपाल (प्रतिहार) का कार्य किया, जिसके फलस्वरूप उन्हें “गुर्जर-प्रतिहार' कहा गया। गुजरानवाला, गूजरगढ़, गूजरखान, गुजरात जैसे नाम उनके अस्तित्व एवं लोकप्रियता को स्पष्ट करते हैं।
प्रमुख शासक
नागभट प्रवम (730-756 ई.)
गुर्जर-प्रतिहारों का पहला एवं प्रतापी शासक नागभट्ट प्रथम था। मिहिरभोज की ग्वालियर प्रशस्ति के अनुसार इस शासक ने अरबों को परास्त कर मालवा से गुजरात तक अपनी सीमा का विस्तार किया था। राष्ट्रकूटों के साथ भी नागभट्ट प्रथम का संघर्ष हुआ, बाण के हर्षचरितम् एवं चालुक्यराज पुलकेशिन द्वितीय के ऐहोल अभिलेख में नागभट्ट प्रथम का उल्लेख किया गया है।
बत्सराज (783-795 ई.)
गुर्जर-प्रतिहारों का दूसरा प्रतापी शासक वत्सराज था। वत्सराज ने पाल शासक धर्मपाल को पराजित किया था।राजस्थान के मध्यभाग तथा उत्तरी भाग के पूर्वी भाग पर उसने अधिकार किया। राष्ट्रकूट शासक ध्रुव ने उसे पराजित कर भागने पर मजबूर कर दिया था।
नागभट्ट द्वितीय (795-833 ई.)
ग्वालियर
प्रशस्ति के अनुसार नागभट्ट द्वितीय ने आन्ध्र, सिन्ध, विदर्भ,
कलिंग, वत्स, मत्स्य एवं
अरबों से संघर्ष कर उन पर अधिकार कर लिया था। 80 ई. में राष्ट्रकूट शासक गोविन्द
तृतीय ने नागभट्ट द्वितीय को पराजित कर मालवा एवं गुजरात पर आक्रमण कर लिया था था।
रामभट्ट (833-836) इस वंश का सर्वाधिक असफल शासक था।
मिहिरभोज (836-889 ई.)
इसे
भोज प्रथम के नाम से भी जाना जाता था। मिहिर-भोज गुर्जर-प्रतिहार वंश का
सर्वश्रेष्ठ एवं सर्वाधिक शक्ति शाली शासक था। अपने पिता रामचन्द्र (833-836 ई.)
को मार कर इसने सत्ता प्राप्त की थी। पाल शासक देवपाल, विग्रहपाल एवं
राष्ट्रकूट शासक कृष्ण द्वितीय को मिहिरभोज ने परास्त किया था। मिहिरभोज की राजधानी
कन्नौज थी। पंजाब, मालवा, राजपूताना,
काठियावाड़ मध्यप्रदेश मिहिर भोज के साम्राज्य के अन्तर्गत आते थे।
अरब यात्री सुलेमान के अनुसार वह अत्यधिक सैन्य-शक्ति वाला एवं अरबों का दुश्मन
शासक था। अभिलेखों में उसे आदिवाराह की उपाधि प्रदान की गई है।
महेंद्रपाल प्रथम (890-910 ई.)
महेन्द्रपाल
एक प्रतापी शासक था। जिसका साम्राज्य हिमालय से विन्ध्याचल एवं पूर्वी समुद्रीतट
से पश्चिमी समुद्रतट तक फैला हुआ था। महेन्द्रपाल प्रथम का संरक्षित विद्वान
राजशेखर था। राजशेखर ने कर्पूरमंजरी (प्राकृत नाटक), बालरामायण, काव्यमीमांसा,
वालभारत, प्रचण्ड-पाण्डव, विद्धसालभंजिका , हरविलास, भुवनकोष
की रचना की थी।
महीपाल प्रथम (912-944 ई.)
गुर्जर
प्रतिहार वंश का अन्तिम शक्तिशाली एवं प्रभाव- शाली शासक महीपाल प्रथम था, इस काल में कन्नौज
पर सर्वाधिक आक्रमण हुए। 915 से 918 ई.
तक राष्ट्रकूट शासक इन्द्रतृतीय ने कन्नौज पर आक्रमण कर खूब लूटपाट की थी।
गुर्जरों की मदद के लिए राष्ट्रकूट वंश के शासक आगे आये तथापि गुर्जर प्रतिहार वंश
का अनवरत विघटन होने लगा था। विकृत परिस्थितियों में भी दोआब , बनारस, ग्वालियर, काटियावाड़
पर महीपाल प्रथम ने अधिकार कर लिया था।
गुर्जर प्रतिहार वंश का पतन
महीपाल
की मृत्यु होते ही गुर्जर साम्राज्य के पतन का आरम्भ हो गया था। महीपाल प्रथम के
बाद महेन्द्रपाल द्वितीय,
देवपाल, विनायकपाल देव, विजयपाल
आदि अयोग्य शासकों ने गुर्जर राजवंश को संभाला, इस विकृत
परिस्थिति का लाभ उठाकर राष्ट्रकूट, पाल, चालुक्य, चंदेल, कलचुरी,
परमार, गुहिल, चौहान सबने स्वतन्त्र राज्यों को स्थापित कर लिया।
गुर्जर वंश के राजपाल शासक के दौरान 1018 ई. में कन्नौज पर
महमूद गजनवी ने आक्रमण कर दिया। राजपाल भाग गया और चंदेल शासक गण्डदेव ने उसे मार
दिया। राजपाल के वाद त्रिलोचनपाल गुर्जर राजवंश का शासक बना, गुर्जर प्रतिहार वंश का अन्तिम शासक यशपाल था। गहड़वालों ने 1080 ई. में कन्नौज पर अधिकार कर गुर्जर प्रतिहार वंश का अन्त कर दिया।
गुर्जर-प्रतिहार शासन की महत्ता
👉उत्तर भारत में समस्त साम्राज्यों को एकसूत्र में बाँधकर गुर्जर-प्रतिहार साम्राज्य के रूप में गुर्जर-प्रतिहार शासकों ने राजनीतिक एकता स्थापित की।
👉अरवी आततायियों को सिन्ध पर आने से रोकने का श्रेष्ठकार्य गुर्जर-प्रतिहारों ने किया।
👉प्रतिहार महाराजा, महाराजाधिराज की उपाधि धारण करते थे। भुक्ति, मण्डल, विषय प्रशासनिक इकाईयाँ थीं। दण्डपाशिक, महाप्रतिहार, दण्डनायक, वलाधिकृत प्रतिहारों के प्रमुख पदाधिकारी थे।
👉महाकवि राजशेखर गुर्जर-प्रतिहार शासक महेन्द्रपाल के दरवारी कवि थे, जिन्होंने वालरामायण, कर्पूरमंजरी इत्यादि ग्रन्थों की रचना की थी। चण्डकौशिक के रचनाकार सोमेश्वर इसी काल के थे।
👉व्राह्मण धर्म का इस काल में सर्वाधिक विकास हुआ। वैष्णव धर्म का सर्वाधिक प्रचलन था। शिव, गणेश, सूर्य, शक्ति की इस काल में पूजा होती थी। पश्चिमी भारत एवं राजपूताना में जैन धर्म का भी प्रचलन था।