History of Sen Dynasty, सेन वंश का इतिहास

 

प्रारम्भिक मध्यकालीन भारत

बंगाल के सेन (The Senas Of Bengal)

सामन्त सेन एवं हेमन्त सेन,विजय सेन,बल्लालसेन,लक्ष्मण सेन,विश्वरूप सेन एवं केशव सेन,सेन वंशीय वंगाल शासक,सेन वंश के संस्थापक कौन थे,सेन वंश की राजधानी

 देवपाड़ा अभिलेख के अनुसार वीरसेन चन्द्रवंशीय सेनवंश का आदिपुरुष था। मघाई नगर अभिलेख में सेनों के लिए कर्णाट-क्षत्रिय शब्द का प्रयोग हुआ है। सेनों का मूल उद्गम क्षेत्र कर्णाट प्रदेश (पश्चिमी आंध्र एवं उत्तरी मैसूर) था। सामंतसेन को ब्रह्मवादी (वेदों का पाठ करने वाला) कहा गया है। राढ़ में स्वतन्त्र राज्य की स्थापना के बाद सेनों का प्रमुख केन्द्र बंगाल बन गया था। आरम्भ में सेनवंश के लोग स्वयं को ब्राह्मण मानते थे, लेकिन सत्ता प्राप्ति के बाद उन्होंने स्वयं को क्षत्रिय माना।

सामन्त सेन एवं हेमन्त सेन

 बंगाल में सेन वंश का संस्थापक सामन्‍त सेन था। सामन्त सेन ने राढ़ एवं कर्णाट में अपने राज्य को स्थापित किया। सामन्त सेन का पुत्र हेमन्‍त सेन था। जिसे अभिलेखों में महाराजाधिराजसे सम्बोधित किया है। बंगाल के कैवर्त विद्रोह एवं कलचुरी कर्ण के आक्रमण के बाद हेमन्त सेन ने ग्यारहवीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में स्वतन्त्र राज्य की स्थापना की थी। हेमन्त सेन भी रा क्षेत्र तक ही सीमित रहा था।

विजय सेन (1095-1158 ई.)

विजयसेन सेन वंश का पहला लोकप्रिय एवं प्रतापी शासक था। उसके कार्यों के सम्बन्ध में देवपाड़ा अभिलेख में उल्लेख मिलता है। विजयसेन ने नेपाल, मिथिला, कामरूप गौड़ एवं अन्य राज्यों पर विजय प्राप्त की थी। देवपाड़ा अभिलेख के अनुसार न्याय, वीर, राधव, वर्द्धन नाम के राजाओं से विजयसेन ने युद्ध किया।

विजय सेन की दो राजधानियाँ विक्रमपुर एवं विजयपुरी थी। पाल शासक मदनपाल को हराकर उत्तरी-वंगाल में सत्ता स्थापित करना उसकी सर्वाधिक उत्कृष्टतम उपलब्धि थी। विजयसेन शैव मत को मानने वाला था। परमभट्टारक, महाराजाधिराज, परमेश्वर इत्यादि उसकी उपाधियाँ थी। देवपाड़ा के निकट प्रधुम्नेश्वर शिव मंदिर का निर्माण विजयसेन ने कराया था उसकी प्रशंसा में हर्ष नामक कवि द्वारा विजयप्रशस्ति एवं गौडोर्विशप्रशस्ति नामक काव्यों की रचना की थी। उसने “अरिराजवृषभशंकर' नामक उपाधि भी धारण की थी।

बल्लालसेन (1158-1178 ई.)

गौडेश्वर की उपाधि से विभूषित वल्लालसेन सेनवंश का दूसरा प्रतापी शासक था। उसकी गतिविधियों के सम्बन्ध में नैहड्टी अभिलेख' में उल्लेख मिलता है। आनन्दभट्ट की कृति वल्लालचरित के अनुसार वारेन्द्र, बंग, राढ़, वागड़ी, मिथिला, उत्तरी-विहार पर वल्लालसेन ने आक्रमण किया था।

वल्लालसेन भी शैव सम्प्रदाय से सम्बद्ध था। परमभट्टारक, महाराजाधिराज, परममाहेश्वर, निःशंकशंकर, अरिराज

निःशंकशंकर इत्यादि उसकी उपाधियाँ थी। विद्वान के स्वरूप में वललालसेन ने अदृभुतसागर एवं दानसागर नामक स्मृति ग्रन्थों की रचना की थी। वल्लालसेन का साहित्यिक गुरू विद्वान अनिरूद्ध था। अपने अन्तिम काल में वल्लालसेन ने त्रिवेणी में संन्यास लिया था।

लक्ष्मण सेन (1178-1205 ई.)

वृद्धावस्था में शासन संभालने वाला सेनवंश का अन्तिम शासक लक्ष्मण सेन था। विश्वरूप सेन के मदनपाड़ा अभिलेख में लक्ष्मण सेन को अश्वपति, गजपति, नरपति, गौडेश्वर, परमभट्टारक इत्यादि उपाधियों से विभूषित किया गया है। कलिंग, कामरूप, इलाहावाद, वनारस एवं कन्नौज तक लक्ष्मण सेन ने अपना अधिकार कर लिया था। खाड़ी मण्डल एवं मेघना नदी के पूर्व वाले क्षेत्र पर भी लक्ष्मण सेन का अधिकार हो चुका था। वख्तियार खिलजी एवं लक्ष्मण सेन के युद्ध का वर्णन “मिन्हाज के तवकात-ए-नासिरी' नामक ग्रन्थ में प्राप्त होता है। जयदेव, हलायुध, श्रीधरदास, धोयी, शरण गोवर्धन लक्ष्मण सेन के दरवार के प्रमुख विद्वान थे। लक्ष्मण सेन ने लक्ष्मण सम्व॒त्‌ का प्रचलन किया था।

विश्वरूप सेन एवं केशव सेन

लक्ष्मण सेन की मृत्यु के पश्चात्‌ विश्वरूप सेन एवं केशव सेन ने सेनवंश का बंग पर शासन संभाला। मिनहाज के अनुसार 1260 ई. तक बंग पर सेनवंश शासकों का अधिकाररहा। यवनों से संघर्ष के बाद सेनवंश का अन्त हो गया।

निष्कर्ष

सेन वंशीय शासकों का वंगाल में एक शताब्दी तक शासन रहा था। अभिलेखों के अनुसार सेन प्रशासन में निम्नलिखित अधिकारी थे-

भुक्तिपति, मण्डलपति, विषयपति, महामन्त्री, पुरोहित, महापुरोहितमहासंधिविग्रहाधिकृत, महामुद्राधिकृत , महाधर्माध्यक्ष, महापिलुपति, महाव्यूहपति, अध्यक्षसर्वग, गूढ़पुरुष, दूत इत्यादि। सेन प्रशासनिक व्यवस्था का आधार सामन्ती पद्धति थी। सेनों के सम्पूर्ण काल में सर्वाधिक साहित्यिक प्रगति वल्लाल सेन एवं लक्ष्मण सेन के समय में हुई. गीतगोविन्द-जयदेव, ब्राह्मण सर्वस्व-हलायुध, पवनदूत- धोयी, सदुक्तिकर्णामृत-श्रीधरदास की रचनाओं का इसी काल में प्रणयन हुआ था

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