History of Parmar Dynasty, Parmar vansh ka samrajya, parmar rajputon ka itihas,परमार वंश का इतिहास

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परमार वंश

👉 गुर्जर प्रतिहारों  की सत्ता समाप्ति के वाद मालवा में 20वीं शताब्दी में परमार वंश का उदय हुआ। धारा (उज्जैन मालवा, लाट), वागड़ (वांसवांडा), चन्द्रावती (आवृ), जालौर, मालवा (धारा-उज्जैन) में उनकी शाखाएँ थी। मालवा के परमार सर्वाधिक प्रसिद्ध थे। परमार राष्ट्रकूटों के सामन्त थे। परमार वंश का संस्थापक उपेन्द्र था।

👉 वैरिसिंह प्रथम, सियक प्रथम, वाक्पति प्रथम, वैरिसिंह द्वितीय-परमार वंश के प्रमुख प्रारम्भिक शासक थे।

👉 परमार वंश का पहला स्वतन्त्र एवं शक्तिमान शासक सीयक या श्री हर्ष था।

👉  प्रारम्भिक शासकों में सर्वाधिक शक्तिशाली शासक वाक्यति मुंज (973 से 995 ई.) था। त्रिपुरी, लाट, कर्णाट, केरल एवं चोल साम्राज्य तक उसने अपने साम्राज्य को फैलाया था। चालुक्य नरेश तैलप द्वितीय को उसने कई वार हराया था, लेकिन उसकी मृत्यु भी उसी युद्ध में हुई थी।

👉  वाक्पति पुंज के काल में उज्जयिनी की प्रसिद्धि चारों दिशाओं में फैल गई थी। वह एक महानू एवं विद्वान शासक था। घद्मगुप्त ने नवसाहसाइुचरितम्‌, धनंजय ने दशरूपक तथा धनिक ने यशोरूपावलोक की रचना इसी काल में की थी।

 👉  सिन्धुराज (995 से 1000) परमार वंश का अगला शासक था। चौलुक्य राजा सत्याश्रय को उसने परास्त किया था। दक्षिण कोशल, लाट एवं अपरान्त से भी उसने युद्ध किया था। चालुक्य राजा मुण्डराज ने युद्ध में उसे परास्त कर दिया था।

👉  भोज (1000-1055) परमारों का सर्वाधिक शक्तिशाली, श्रेष्ठ एवं महान शासक था। चेदि, गुजरात, कर्णाट, लाट और गुर्जर राजाओं से युद्ध करने के साक्ष्य उदयपुर प्रशस्ति में प्राप्त हुए। कल्याणी का चालुक्य राजा विक्रमादित्य चतुर्थ को उसने परास्त किया था। भोज ने कलचुरी शासक गांगेय देव को हराकर विहार में आरा के पास भोजपुर पर अपना अधिकार कर लिया था। भोजपुर की स्थापना परमार शासक भोज ने ही की थी। राजा भोज ने परमारों की राजधानी उज्जयिनी से धारा बनाई थी। कलचुरी और सोलंकियों के सम्मिलित आक्रमण से उसकी मृत्यु हुई थी।

👉  उदयपुर प्रशस्ति के अनुसार परमार शासक भोज ने रामेश्वर, केदारेश्वर तथा सोमनाथ में मन्दिर का निर्माण कराया था।

👉  भोजसर तालाब का निर्माण, धारी नगरी के चौराहों पर चौरासी मन्दिरों की स्थापना, शारदासदन का निर्माण, शारदा मन्दिर में सरस्वती की प्रतिमा की स्थापना परमार शासक भोज ने ही की थी।

👉  धारा नगरी के शारदासदन में दीवारों पर पारिजातमंजरी नाटक अर्जुनवर्मा ने खुदाया तथा भोजकृत कूर्मशतक उसके द्वारा खुदवाया गया था।

👉  राजा भोज ने सार्वभौम, पाल , मालवचक्रवर्ती जैसी उपाधियाँ धारण की थीं। वह कविराज के उपनाम से ख्यात था।

👉  भोज प्रसिद्ध लेखक, विद्वान तथा विद्वानों का संरक्षक था। भोज द्वारा लिखित ग्रन्थ निम्नलिखित थे-

समरांगणसूत्रधार (शिल्पशास्त्र)

सरस्वतीकंठाभरण (अलंकार शास्त्र)

शृंगारप्रकाश (अलंकार शास्त्र)

पातज्जलयोगसूत्रवृत्ति (योगशास्त्र)

कूर्मशतक (काव्य नाटक)

चम्पू रामायण (काव्य नाटक)

शरृंगारमंजरी (काव्य नाटक)

आवुर्वेद सर्वस्व (आयुर्वेद)

तत्त्व प्रकाश (शैव ग्रन्थ)

नाममालिका (शब्दकोष)

शब्दानुशासन (शब्दकोष) 

👉  भोज के पश्चात्‌ प्रथम जयसिंह (1055-1070) उदयादित्य (1070-1086), लक्ष्मदेव (1086-1094), नरवर्मा (1094 से 1133 ई.) यशोवर्मा (1133-1142 ई.), जयवर्मन तथा लक्ष्मणवर्मन प्रमुख शासक हुए थे। आन्तरिक दुव्यर्वस्था के फलस्वरूप 1233, में मालवा पर इल्तुतमिश ने आक्रमण कर लिया था। मालवा से परमार शक्ति का पतन अलाउद्दीन खिलजी ने किया था।

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