जैन धर्म
जैन शब्द का अर्थ जिन से है, जिन का अर्थ है जीतने वाला अर्थात जिसने इंद्रियों को जीत लिया हो। जैन धर्म का मूल भारत की प्राचीन परंपराओं में रहा है और इसे श्रमणों का धर्म कहा जाता है
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जैन धर्म
के संस्थापक ऋषभदेव हैं।
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ऋषभ देव
प्रथम जैन तीर्थंकर थे।
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कुल 24
तीर्थंकर हुये।
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महावीर
24वें तीर्थंकर थे।
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महावीर
स्वामी जी को जैन धर्म का वास्तविक संस्थापक माना जाता हैं ।
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महावीर
स्वामी का बचपन का नाम वर्धमान।
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महावीर
स्वामी जी का विवाह यशोदा से हुआ था।
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महावीर
स्वामी जी के जीवन के जीवन, कृत्यों
एवं अन्य समकालिकों से उनके संबन्ध का विवरण भगवती सूत्र में मिलता है।
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जैन धर्म
के ग्रन्थों की भाषा प्राकृत है।
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जैन धर्म
दो पंथों में बँटा हुआ है श्वेतांबर एवं दिगम्बर।
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श्वेतांबर
संप्रदाय के संस्थापक स्थूलभद्र थे।
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दिगम्बर
वस्त्रों का त्याग करते हैं ।
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महावीर स्वामी के प्रथम
शिष्य जमालि थे।
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अनेकान्तवाद जैन धर्म का महत्वपूर्ण सिद्धान्त है।
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अणुव्रत सिद्धान्त का प्रतिपादन जैन धर्म में किया गया
है।
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त्रिरत्न – सम्यक दर्शन, सम्यक चरित्र एवं सम्यक ज्ञान ।
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जृंभिक ग्राम के निकट
ऋजुपालिका नदी के तट पर साल वृक्ष के नीचे महावीर स्वामी को कैवल्य (पूर्ण- ज्ञान) प्राप्त हुआ था।
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ज्ञान प्राप्ति के बाद
महावीर स्वामी केवलिन, जिन (विजेता), अहर्त (योग्य) तथा निर्ग्रंथ (बंधन रहित) कहलाए।
· महावीर स्वामी की मृत्यु पावापुरी (राजग्रह) में हुयी थी।