इतिहास (HISTORY)
दक्षिण एशिया तथा भारतीय उपमहाद्वीप का इतिहास
पाषाण युग (7000-3000 ई.पू.)
पाषाण युग- पाषाण का अर्थ होता है पत्थर इससे
हम समझ सकते हैं की पाषाण काल में मानव पत्थर की सहायता से जीवन यापन करता था।
जैसे - पत्थर से आग जलाना, पत्थर से शिकार करना,
पत्थर की गुफाओं में रहना। पाषाण युग के तीन चरण माने जाते हैं -
पुरापाषाण काल, मध्यपाषाण काल एवं नवपाषाण काल।
पाषाण युग को हम ऐसे भी समझ सकते हैं -
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निम्न पुरापाषाण (20 लाख वर्ष पूर्व)
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मध्य पुरापाषाण (80 हजार वर्ष पूर्व)
·
मध्य पाषाण (12
हजार वर्ष पूर्व)
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नवपाषाण मेहरगढ़ संस्कृति
(7000–3300 ई.पू.)
·
ताम्रपाषाण (6000 ई.पू.)
पाषाण काल से संबन्धित
महत्वपूर्ण बिंदु -
👉 भारत
में मानव का साक्ष्य सर्वप्रथम नर्मदा घाटी (मध्य प्रदेश ) में मिलता है।
👉 मानव
कंकाल के साथ कुत्ते का का कंकाल बुर्जाहोम पुरातत्व स्थल (जम्मू और कश्मीर) से
प्राप्त होता है।
👉 गर्त
आवास के साक्ष्य बुर्जाहोम पुरातत्व स्थल (जम्मू और कश्मीर) से प्राप्त होते हैं।
👉 मेहरगढ़
से प्राचीनतम स्थायी जीवन के प्रमाण प्राप्त होते हैं।
👉 सर्व
प्रथम नवपाषाण काल में खाद्यानों की कृषि प्रारम्भ हुयी।
👉 भारतीय
उप महाद्वीप में कृषि के प्राचीनतम साक्ष्य लहुरादेव से प्राप्त होते हैं।
👉 मानव
द्वारा सर्वप्रथम प्रयोग किया जाने वाला अन्न जौं है।
👉 पशुपालन
का प्रारम्भ मध्य पाषाण काल में प्रारम्भ हुआ था।
👉 भीम
बेटका गुफा शैल चित्रों के लिए प्रसिद्ध है।
👉 राष्ट्रीय
मानव संग्रहालय भोपाल में स्थित है।
सिंधु घाटी सभ्यता
सिंधु घाटी सभ्यता जिसे हड़प्पा सभ्यता के नाम से भी जाना जाता है विश्व की प्राचीन नदी घाटी सभ्यताओं में से एक प्रमुख सभ्यता है। जो मुख्य रूप से दक्षिण एशिया के उत्तर-पश्चिमी क्षेत्रों में जो आज तक उत्तर पूर्व अफगानिस्तान तीन शुरुआती कालक्रमों में से एक थी। यह सभ्यता कम से कम 8,000 वर्ष पुरानी है।
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सिंधु घाटी सभ्यता हड़प्पा
की सभ्यता से संबन्धित है।
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सिंधु घाटी सभ्यता आध
एतिहासिक युग से संबद्ध है।
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हड़प्पा सभ्यता की जानकारी
का प्रमुख श्रोत पुरातात्विक साक्ष्य हैं।
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वृहद स्नानागार मोहन जोदड़ो
से प्राप्त हुआ।
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हड़प्पा सभ्यता में मिट्टी
के बर्तनों पर सामान्यतः लाल रंग का प्रयोग होता था।
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चाँदी की उपलब्धता का
प्राचीनतम साक्ष्य हड़प्पा से प्राप्त हुये।
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जुते हुये खेत कालीबंगा से
मिले।
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हड़प्पा सभ्यता का बंदरगाह
लोथल में अवस्थित था।
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भारत का सबसे बड़ा हड़प्पन
पुरास्थल राखीगढ़ी है।
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सिन्धु घाटी सभ्यता के लोग
मातृ शक्ति में विश्वास करते थे।
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सिन्धु घाटी सभ्यता के लोग
पशुपति की पूजा करते थे।
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सिन्धु घाटी सभ्यता की खोज
में चार्ल्स मैसेन, कनिंघम के अतिरिक्त राखलदास
बेनर्जी तथा दयाराम साहनी ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
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सर्वप्रथम मानव ने तांबा
धातु का उपयोग किया।
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सिंधु घाटी सभ्यता में
बांध का साक्ष्य धौला बीरा से प्राप्त होता है।
प्रमुख धातु एवं प्राप्ति स्थान
कच्चा माल प्राप्ति
स्थान
ताँबा खेतड़ी
(राजस्थान), बलूचिस्तान
लाजवर्द बद्ख्शां(अफगानिस्तान)
फिरोजा, टिन ईरान से
चाँदी जावर
एवं अजमेर (राजस्थान),
अफगानिस्तान, ईरान से
सीसा अफगानिस्तान
से
शिलाजीत हिमालय
से
गोमेद गुजरात से
काल निर्धारण
सैंधव सभ्यता की तिथि को
निर्धारित करना भारतीय पुरातत्व विभाग का बहुत ही विवादास्पद विषय रहा है ।
इस क्षेत्र में सर्व प्रथम प्रयास जॉन मार्शल का रहा जिन्होने इसका निर्धारण लगभग 3250 ई० पू० से 2750 ई०पू० निर्धारित किया।
काल निर्धारण तिथि
विद्वान निर्धारित
तिथि
जॉन मार्शल 3250
से 2750 ई०पू०
अर्नेस्ट मैके 2800
से 2500 ई०पू०
माटीमेर व्हीलर 2500 से
1500 ई०पू०
रेडियो कार्बन 2350 से
1750 ई०पू०
एनसीईआरटी 2500 से
1800 ई०पू०
डी०पी० अग्रवाल 2300 से 1700
ई०पू०
सैन्धव सभ्यता की देन -
* दशमलव पद्धिति पर आधारित माप तौल प्रणाली
* नगर नियोजन
* सड़कें एवं नालियों की व्यवस्था
* बहुदेव बाद का प्रचलन
* मातृ देवी की पूजा, प्रकृति पूजा , शिव पूजा
* योग का प्रचलन
* तंत्र मंत्र का प्रयोग
* आभूषणों का प्रयोग
* बहु फ़सली कृषि व्यवस्था
* अग्नि पूजा/ यज्ञ
* मुहरों का उपयोग
* बैलगाड़ी
* आंतरिक एवं वाह्य व्यापार
* जल का धार्मिक महत्व
* स्वास्तिक इत्यादि
सिंधु
घाटी सभ्यता का भौगोलिक विस्तार-
सिंधु घाटी सभ्यता
कांस्ययुगीन सभ्यता थी, जिसका उदद्भव
ताम्र पाषाण काल मेंभारत के पश्चिमी क्षेत्र में हुआ था और इसका विस्तार भारत के
अलावा पाकिस्तान व अफगानिस्तान के कुछ क्षेत्रों में भी था।
(1) मांडा से (2) आलमगीरपुर से
(3) दैमाबाद से (4) सुत्कागेनडोर तक।
मांडा
अखनूर जिले में चिनाव के तट पर
यह विकसित हड़प्पा सभ्यता का सर्वाधिक उत्तरी स्थल है।
उत्खलन -1982 जगपति जोशी व मधुवाला
मांडा में 3 सांस्कृतिक स्तर- प्राक सैन्धव, सैन्धव एवं उत्तर सैन्धव
आलमगीरपुर
मेरठ (उ०प्र०) में हिंडन नदी के तट पर स्थित ।
खोज 1958 भारत सेवक समाज द्वारा
उत्खलन- यज्ञ दत्त शर्मा
यह सिंधु सभ्यता का सर्वाधिक पूर्वी स्थल है ।
दैमाबाद
अहमदनगर महाराष्ट्र में प्रवरा नदी के वाएं किनारे पर
यह सैन्धव सभ्यता का सबसे दक्षिणी स्थल है।
सुत्कागेनडोर
दाश्क नदी के किनारे
खोज- 1927 मार्क आरेल स्टाइन
नोट – हड़प्पा संस्कृति का सम्पूर्ण क्षेत्रफल 1299600 वर्ग किमी है ।
सैन्धव काल के 7 प्रमुख नगर
1. हड़प्पा 2.
मोहनजोदड़ो
3. चन्हूदड़ो 4. लोथल
5. कालीबंगा 6. बनावली
7. धौलावीरा
हड़प्पा
* रावी नदी तट
* उत्खलन 1921 में जॉन मार्शल की अध्यक्षता में दयाराम साहनी द्वारा।
* सिंधु घाटी की पहली खुदाई के कारण इसका नाम हड़प्पा सभ्यता पड़ा।
* दो भागों में नगर (ऊपरी, निचले )
* मूर्ति की योनि से पौधे का उगना दर्शाया गया, जो उर्वरता की देवी का प्रतीक है।
* शव को ताबूत में रख कर दफनाया जाता था।
* यहाँ से 3 कक्षा वाला कब्रिस्तान प्राप्त हुआ जिसे समाधि-H कहा जाता है।
मोहनजोदड़ो
* शाब्दिक अर्थ मृतकों का टीला
* स्थित- लरकाना जिला सिंधु के दाएँ ओर
* प्रथम अन्वेषण -1922 राखलदास बनर्जी
* उत्खलन में नगर निर्माण के 9 चरण प्राप्त हुये इसलिए इसे नखलिस्तान कहा जाता है
* नगर दो भागों में विभाजित – पूर्वी और पश्चिमी टीला
* प्रमुख रचना – विशाल स्नानागार कोई कब्रिस्तान नहीं मिली किन्तु 21 नर कंकाल मिले।
* हांथी दांत से बने तराजू एवं कंघी , कांसे के दर्पण, ईंट से निर्मित खेल बोर्ड।
* मुहर पर सुमेरियन नाव का चित्रण मिला है।
चन्हूदड़ो
* खोज 1934 एन गोपल मजूमदार
* स्थित- लरकाना जिला सिंधु के दाएँ ओर
* उत्खलन -1935 अर्नेस्ट मैके
* सिंधु नदी तट
* प्राप्त साक्ष्य- कंघा, लिपस्टिक, चार पहियों वाली गाड़ी, वक्राकार ईंटें
लोथल
* 1955-62 एस आर राव
* भोगवा नदी के तट पर
* विश्व का प्राचीनतम जहाज निर्माण स्थल
* ममी के प्रमाण जो मिस्र की सभयता के समकालीन होने का संकेत करते हैं
* कुत्ते की ताम्र मूर्ति
* एक कब्र में दो लोग
* घरों में कुएँ के प्रमाण जो उत्तम जल प्रबंधन के सूचक हैं
* पशु बलि की प्रथा प्रचलित
कालीबंगा
* घाघर
नदी का तट
*
खुदाई 1960 (वी वी लाल & वीके थापर)
*
जुते हुये खेत के साक्ष्य
*
दुर्ग व वस्ती दोनों अलग अलग सुरक्षा दीवारों से घिरा था।
बनाबली
* 1973-74
आर एस विष्ट
* इसकी नगर योजना शतरंज के बोर्ड या जाल के आकार की है।
धोलावीरा
* 1967-68
(जे०पी० जोशी)
* स्थित
गुजरात के कच्छ जिले के निकट
* मानसर व मानहर नदियों के मध्य
* नगर
3 भागों में विभाजित- दुर्ग भाग, मध्यम नगर, निचला नगर
* भैंस
की हड्डी से बना मापक
* गोलीय व अङ्ग्रेज़ी के 8 अक्षर के अनुरूप पाषाण स्तम्भ
प्राप्त
* भारत
में हड़प्पा सभ्यता का सबसे बड़ा नगर
* घोड़े के अवशेष एवं नेवले की पत्थर की मूर्ति
* स्टेडियम ( खेल का मैदान ) के प्रमाण
सिंधु सभ्यता के प्रमुख स्थल एवं खोजकर्ता
हड़प्पा कालीन नदियों के किनारे
बसे नगर
नगर नदी
/सागर तट
हड़प्पा रावी नदी
मोहनजोदड़ो सिन्धु
नदी
रोपड़ सतलज
नदी
कालीबंगा घग्गर
नदी
लोथल भोगवा
नदी
सुत्कागेडोर दास्क नदी
सोत्काकोह शादी कौर नदी
आलमगीरपुर हिंडन
नदी
रंगपुर भादर नदी
कोट दीजी सिन्धु नदी
कुणाल (हरियाणा) सरस्वती नदी
चन्हूदड़ो सिन्धुनदी
बनावली सरस्वती नदी
मांडा चिनाब
नदी
भगवानपुरा सरस्वती नदी
दैमाबाद प्रवरा नदी
आमरी सिन्धु नदी
राखीगढ़ी घग्गर
सिंधु घाटी सभ्यता जिसे हड़प्पा सभ्यता के नाम से भी जाना जाता है विश्व की प्राचीन नदी घाटी सभ्यताओं में से एक प्रमुख सभ्यता है। जो मुख्य रूप से दक्षिण एशिया के उत्तर-पश्चिमी क्षेत्रों में जो आज तक उत्तर पूर्व अफगानिस्तान तीन शुरुआती कालक्रमों में से एक थी। यह सभ्यता कम से कम 8,000 वर्ष पुरानी है। सिंधु घाटी सभ्यता का मुख्य केन्द्र-स्थल पंजाब तथा सिन्ध में था। तत्पश्चात इसका विस्तार दक्षिण और पूर्व की दिशा में हुआ। इस प्रकार हड़प्पा संस्कृति के अन्तर्गत पंजाब, सिन्ध और बलूचिस्तान के भाग ही नहीं, बल्कि गुजरात, राजस्थान, हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के सीमान्त भाग भी थे। इसका फैलाव उत्तर में माण्डा में चेनाब नदी के तट से लेकर दक्षिण में दैमाबाद (महाराष्ट्र) तक और पश्चिम में बलूचिस्तान के मकरान समुद्र तट के सुत्कागेनडोर पाक के सिंध प्रांत से लेकर उत्तर पूर्व में आलमगिरपुर में हिरण्य तक मेरठ और कुरुक्षेत्र तक था।
कृषि
सिन्धु घाटी सभ्यता के लोग गेंहू,
जौ, राई, मटर, ज्वार आदि अनाज पैदा करते थे। वे दो किस्म की गेँहू पैदा करते थे। बनावली
में मिला जौ उन्नत किस्म का है। इसके अलावा वे तिल और सरसों भी उपजाते थे। सबसे
पहले कपास भी यहीं पैदा की गई।
पशु-पालन
यह लोग गाय, भैंस,
भेड़, बकरी, बैल,
कुत्ते, बिल्ली, मोर,
हाथी, शुअर, बकरी व
मुर्गियाँ पाला करते थे। इन लोगों को घोड़े और लोहे की जानकारी नहीं थी।
धातु
हड़पपा के लोग ताँबा खेतडी (राजस्थान) तथा
बलूचिस्तान से प्राप्त करते थे, व सोना कर्नाटक तथा
अफगानिस्तान से प्राप्त करते थे।
उद्योग
मिट्टी के बर्तन बनाने एवं मिट्टी के
बर्तनों पर काले रंग से भिन्न-भिन्न प्रकार के चित्र बनाये जाते थे। कपड़ा बनाने
का एवं जौहरी का काम भी उन्नत अवस्था में
था। मनके और ताबीज बनाने का कार्य भी लोकप्रिय था, अभी
तक लोहे की कोई वस्तु नहीं मिली है जिससे ज्ञात होता है कि इन्हें लोहे का ज्ञान
नहीं था।
व्यापार
यहाँ के लोग आपस में पत्थर,
धातु शल्क (हड्डी) आदि का व्यापार करते थे।
राजनैतिक
जीवन
इसके पुख्ता प्रमाण नहीं मिले हैं लेकिन नगर व्यवस्था को देखकर लगता है कि कोई नगर निगम जैसी स्थानीय स्वशासन वाली संस्था थी।
धार्मिक
जीवन
सिन्धु घाटी सभ्यता के नगरों में एक सील
पाया जाता है जिसमें एक योगी का चित्र है 3 या 4 मुख वाला,
कई विद्वान मानते है कि यह योगी शिव है। मेवाड़ जो कभी सिन्धु घाटी
सभ्यता की सीमा में था वहाँ आज भी 4 मुख वाले शिव के अवतार एकलिंगनाथ जी की पूजा
होती है। सिंधु घाटी सभ्यता के लोग अपने शवों को जलाया करते थे, मोहन जोदड़ो और हड़प्पा जैसे नगरों की आबादी करीब 50 हज़ार थी पर फिर भी
वहाँ से केवल 100 के आसपास ही कब्रें मिली है जो इस बात की और इशारा करता है वे शव
जलाते थे। लोथल, कालीबंगा आदि जगहों पर हवन कुण्ड मिले है जो
की उनके वैदिक होने का प्रमाण है। यहाँ स्वास्तिक के चित्र भी मिले है।
कुछ विद्वान मानते है कि हिन्दू धर्म
द्रविडो का मूल धर्म था और शिव द्रविडो के देवता थे जिन्हें आर्यों ने अपना लिया।
शिल्प
प्राचीन मेसोपोटामिया की तरह यहाँ के लोगों ने भी लेखन कला का आविष्कार किया था। हड़प्पाई लिपि का पहला नमूना 1853 ई॰ में मिला था और 1923 में पूरी लिपि प्रकाश में आई परन्तु अब तक पढ़ी नहीं जा सकी है।
वैदिक काल
·
आर्य शब्द का आशय श्रेष्ठ
वंश से है।
·
ऋग वेद सबसे प्राचीन वेद
है।
·
अथर्ववेद में जदुई भाषा और
वशीकरण का वर्णन है।
·
ऋग वेद में कुल 1028 सूक्त
हैं ।
·
ऋग वेद में कुल 10552
ऋचायेँ हैं ।
·
यज्ञ सम्बन्धी विधि
विधानों का उल्लेख यजुर्वेद में प्राप्त होता है।
·
“उपनिषद” दर्शन पर आधारित
पुस्तकें हैं।
·
आरंभिक वैदिक साहित्य में
सर्वाधिक वर्णन सिंधु नदी का प्राप्त होता है।
·
ऋगवैदिक आर्यों की सबसे
पवित्र नदी सरस्वती थी जिसे मतेतमा, देवीतमा
एवं नदीतमा कहा गया है।
·
वैदिक काल में निष्क शब्द
का प्रयोग गले के आभूषण के लिए किया जाता था।
·
गोत्र शब्द का उल्लेख सर्वप्रथम
ऋगवेद में हुआ है।
·
पूर्व वैदिक आर्यों का
प्रकृति पूजा व यज्ञ था, प्राचीनकाल में आर्यों के
जीविकोपार्जन का मुकया आधार शिकार था ।
·
ऋग्वेद में सर्वाधिक ऋचाएँ
(250) इन्द्र की स्तुति में हैं।
·
ऋगवेद में द्वितीय
सर्वाधिक सूक्त (200 ) अग्नि की स्तुति में हैं।
·
पूर्व वैदिक आर्यों के
सर्वाधिक लोकप्रिय देवता इन्द्र थे।
·
गायत्री मंत्र का
सर्वप्रथम उल्लेख ऋगवेद मेन मिलता है।
·
पुराणों की संख्या 18 है ।
·
सत्यमेव जयते
मुण्ड्कोपनिषद से लिया गया है।
· ऋगवेद में गाय को अघन्या (अर्थात गाय को कभी मत मार) कहा गया है।
बौद्ध
धर्म
·
गौतम
बुद्ध का जन्म 563 ई० पू० लुंबिनी नामक ग्राम में हुआ था।
·
गौतम
बुद्ध को एशिया के “ज्योति पुंज” के तौर पर जाना जाता है।
·
गौतम
बुद्ध के गुरु आलार कलाम थे।
·
गौतम
बुद्ध का महापरिनिर्वाण कुशीनगर में हुआ था।
·
गौतम
बुद्ध ने पहला उपदेश “ धर्म चक्र प्रवर्तन” सारनाथ में दिया था।
·
गौतम
बुद्ध ने सर्वाधिक उपदेश श्रावस्ती में दिये।
·
पवित्र
बोधगया स्थल निरंजना नदी के तट पर है।
·
बौद्ध
ग्रन्थों में संघ सम्बन्धी नियम तथा आचरण की शिक्षाएं विनयपिटक से प्राप्त होती
हैं।
·
अष्टांग
मार्ग का सम्बंध बौद्ध धर्म से है।
महाजनपद
महाजनपद राजधानी
अंग चंपा
मगध गिरि ब्रज/राज गृह
काशी वाराणसी
वत्स कौशाम्बी
वज्जि वैशाली / विदेह
कौशल श्रावस्ती
अवन्ती महिष्मती
मल्ल कुशीनगर/ पावा
पांचाल अहिच्छ्त्र
चेदि शुक्तिमती
कुरु इंद्रप्रस्थ
मत्स्य विराट नगर
कम्बोज राजपुर / हाटक
सूरसेन मथुरा
अश्मक पोटिल / पोतन
/प्रतिष्ठान
गांधार तक्षशिला
बौद्ध धर्म ग्रंथ
·
आरंभिक
बौद्ध ग्रंथ पालि भाषा में लिखे हुये थे।
·
खुद्दकनिकाय
में जातक कथाओं का वर्णन है, जो
बुद्ध के पूर्व जीवन से संबन्धित है।
·
बौद्ध
ग्रन्थों में त्रिपिटक सर्वाधिक महत्वपूर्ण है।
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त्रिपिटक
को तीन भागों में विभाजित किया गया है, विनयपिटक, सुत्तपिटक और अभिधम्म पिटक।
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त्रिपिटक
में १७ ग्रंथो का समावेश है।
बौद्ध महासंगीतियाँ
जैन धर्म
जैन शब्द का अर्थ जिन से
है, जिन का अर्थ है जीतने वाला अर्थात जिसने
इंद्रियों को जीत लिया हो।
जैन धर्म का मूल भारत की प्राचीन परंपराओं में रहा है और इसे श्रमणों का धर्म कहा जाता है
·
जैन धर्म
के संस्थापक ऋषभदेव हैं।
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ऋषभ देव
प्रथम जैन तीर्थंकर थे।
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कुल 24
तीर्थंकर हुये।
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महावीर
24वें तीर्थंकर थे।
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महावीर
स्वामी जी को जैन धर्म का वास्तविक संस्थापक माना जाता हैं ।
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महावीर
स्वामी का बचपन का नाम वर्धमान।
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महावीर
स्वामी जी का विवाह यशोदा से हुआ था।
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महावीर
स्वामी जी के जीवन के जीवन, कृत्यों
एवं अन्य समकालिकों से उनके संबन्ध का विवरण भगवती सूत्र में मिलता है।
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जैन धर्म
के ग्रन्थों की भाषा प्राकृत है।
·
जैन धर्म
दो पंथों में बँटा हुआ है श्वेतांबर एवं दिगम्बर।
·
श्वेतांबर
संप्रदाय के संस्थापक स्थूलभद्र थे।
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दिगम्बर
वस्त्रों का त्याग करते हैं ।
·
महावीर स्वामी के प्रथम
शिष्य जमालि थे।
·
अनेकान्तवाद जैन धर्म का महत्वपूर्ण सिद्धान्त है।
·
अणुव्रत सिद्धान्त का प्रतिपादन जैन धर्म में किया गया
है।
·
त्रिरत्न – सम्यक दर्शन, सम्यक चरित्र एवं सम्यक ज्ञान ।
·
जृंभिक ग्राम के निकट
ऋजुपालिका नदी के तट पर साल वृक्ष के नीचे महावीर स्वामी को कैवल्य (पूर्ण- ज्ञान
) प्राप्त हुआ था।
·
ज्ञान प्राप्ति के बाद
महावीर स्वामी केवलिन, जिन (विजेता), अहर्त (योग्य) तथा निर्ग्रंथ (बंधन रहित) कहलाए।
· महावीर स्वामी की मृत्यु पावापुरी (राजग्रह) में हुयी थी।
भारत पर विदेशी आक्रमण
ईरानी आक्रमण
👉 भारत में प्रथम ईरानी आक्रमण 516 ई० पू० हुआ था।
👉 भारत में आक्रमण करने में प्रथम सफलता ईरानी शासक दारयवहु प्रथम
(डेरियस प्रथम) को प्राप्त हुयी।
👉 दारयवहु प्रथम ने पंजाब, सिन्धु नदी के पश्चिमी क्षेत्र और सिन्ध को जीतकर अपने राज्य में मिला
लिया।
👉 पंजाब, सिन्धु नदी
के पश्चिमी क्षेत्र और सिन्ध के क्षेत्र को फारस का 20वाँ प्रान्त या क्षत्रपी
बनाया।
👉 खरोष्ठी एवं अरामेइक लिपि का पश्चिमी प्रचार ईरानी सम्पर्क का
परिणाम था ।
👉 सिंधु घाटी की चित्रलिपि को छोड़ कर, खरोष्ठी भारत की दो प्राचीनतम लिपियों में से
एक है।
👉 खरोष्ठी लिपि दाएँ से बाएँ को लिखी जाती थी।
👉 टेसियस एक ईरानी राज वैध था।
यूनानी आक्रमण
👉 भारत में सिकन्दर यूनानी शासक (मकदूनियाई शासक) ने 326 ई०पू०
आक्रमण किया था।
👉 सिकन्दर हिंदुकुश पर्वत (खैबर दर्रा) पार कर भारत आया।
👉 सिकन्दर के समकालीन मगध का राजा घनानन्द था।
👉 सिकन्दर का शिक्षक अरस्तू था।
👉 पोरस (पुरु) जिसका राज्य झेलम एवं चिनाब नदियों के बीच स्थित
था।
👉 सिकन्दर ने राजा पोरस के राज्य पर आक्रमण कर उसे परास्त किया
किन्तु राजा पुरु की वीरता से प्रभावित होकर राज्य वापस कर दिया।
👉 झेलम नदी के तट पर 326 ई० पू० लड़े गये युद्ध को वितस्ता या ‘हाइडेस्पीज‘ के युद्ध के नाम से जाना जाता है।
अन्य
👉 सायरस फारस देश (ईरान) देश का था।
👉 डैरियस तृतीय को सिकन्दर ने हराया।
👉 फिलिप मकदूनिया का राजा था।
👉 सिकंदर का सेनापति सेल्यूकस निकेटर था।
मौर्य साम्राज्य
👉 मौर्य राजवंश (321-185 ईसापूर्व) प्राचीन भारत का एक शक्तिशाली
राजवंश था।
👉 मौर्य राजवंश ने 137 वर्ष भारत में राज्य किया।
👉 मौर्य साम्राज्य का संस्थापक चन्द्रगुप्त मौर्य था।
👉 यह साम्राज्य पूर्व में मगध राज्य में गंगा नदी के मैदानों (आज
का बिहार एवं बंगाल) से शुरु हुआ।
👉 मौर्य साम्राज्य की राजधानी पाटलिपुत्र (पटना बिहार) थी।
👉 यूनानी लेखकों ने चन्द्रगुप्त मौर्य के लिए सेंड्रोकोट्स एवं
एंडोक्रोट्स नाम का प्रयोग किया है।
👉 प्रथम भारतीय साम्राज्य चन्द्रगुप्त के द्वारा स्थापित किया
गया।
👉 चन्द्रगुप्त के प्रधानमंत्री कौटिल्य (चाणक्य) थे।
👉 चाणक्य के बचपन का नाम विष्णुगुप्त था।
👉 अर्थशास्त्र की रचना कौटिल्य ने की।
👉 पाटिलपुत्र मे स्थित चन्द्रगुप्त मौर्य का महल लकड़ी से निर्मित
था।
👉 सेल्यूकस को चन्द्रगुप्त मौर्य ने पराजित किया था।
👉 मेगस्थनीज चन्द्रगुप्त मौर्य के दरवार में यूनानी राजदूत के रूप
में आया था।
👉 सारनाथ स्तम्भ का निर्माण सम्राट अशोक ने कराया था।
👉 अशोक द्वारा निर्मित शिला लेखों की भाषा प्राकृत थी।
👉 अशोक के शिला लेख को सर्वप्रथम जेम्स प्रिंसेस ने पढ़ा था।
👉 कलिंग युद्ध की विजय तथा क्षतियों का वर्णन अशोक के 13 वें
शिलालेख में प्राप्त होता है।
👉 पाटिलपुत्र के प्रशासन का वर्णन इंडिका (मेगस्थनीज द्वारा लिखित) में प्राप्त होता है।
मौर्य कालीन प्रांत एवं राजधानियाँ
उत्तरापथ तक्षशिला
दक्षिणापथ सुवर्णगिरि
कलिंग तोसली
अवन्तिराष्ट्र उज्जयिनी
प्राच्य या प्राची पाटिलपुत्र
मौर्य राजवंश के शासकों का शासन काल
सम्राट चंद्रगुप्त
मौर्य 321-298
ई०पू० (24 वर्ष)
सम्राट बिन्दुसार मौर्य 298-271 ई०पू० (28 वर्ष)
सम्राट अशोक महान 269-232 ई०पू० (37 वर्ष)
कुणाल मौर्य 232-228 ई०पू० (4 वर्ष)
दशरथ मौर्य 228-224 ई०पू० (4 वर्ष)
सम्प्रति मौर्य 224-215 ई०पू० (9 वर्ष)
शालिसुक मौर्य 215-202 ई०पू० (13 वर्ष)
देववर्मन मौर्य 202-195 ई०पू० (7 वर्ष)
शतधन्वन् मौर्य 195-187 ई०पू० (8 वर्ष)
बृहद्रथ मौर्य 187-185 ई०पू० (2 वर्ष)
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