प्रकाश, प्रकाश परावर्तन एवं प्रकाश तरंगधैर्य

प्रकाश

आप कह सकते हें कि हम वस्तुओं को नेत्रों से देखते हैं। लेकिन, क्या आप अंधेरे में किसी वस्तु को देख पाते हैं? इसका अर्थ है कि केवल नेत्रों द्वार हम किसी वस्तु को नहीं देख सकते।

क्या आप जानते हें कि ये सब देखना कैसे सम्भव हो पाता है?

किसी वस्तु को हम तब ही देख पाते हें जब उस वस्तु से आने वाला प्रकाश हमारे नेत्रों में प्रवेश करे। यह प्रकाश वस्तुओं द्वारा उत्सर्जित अथवा उनसे परावर्तित हुआ हो सकता हे। दिन के समय सूर्य का प्रकाश वस्तुओं को देखने में हमारी सहायता करता है। कोई वस्तु उस पर पड़ने वाले प्रकाश को परावर्तित करती है। यह परावर्तित प्रकाश जब हमारी आँखों द्वारा ग्रहण किया जाता है, तो हमें वस्तुओं को देखने योग्य बनाता है। हम किसी पारदर्शी माध्यम के आर-पार देख सकते हैं क्योंकि प्रकाश इसमें से पार हो जाता है।

प्रकाश के गुणों का अध्ययन इसके अन्वेषण में हमारी सहायता करेगा।

प्रकाश सरल रेखा में गमन करता है। एक छोटा प्रकाश स्रोत किसी अपारदर्शी वस्तु की तीक्ष्ण छाया बनाता है तथा प्रकाश के एक सरलरेखीय पथ की ओर इंगित करता है, जिसे प्राय: प्रकाश किरण कहते हैं।

प्रकाश किरण का अस्तित्व एक आदर्शीकरण है। वास्तव में, हमें प्रकाश का एक संकीर्ण किरण-पुंज प्राप्त होता है जो अनेक किरणों से मिल कर बना होता है। सरलता के लिए हम प्रकाश के संकीर्ण किरण-पुंज के लिए किरण शब्द का उपयोग करते हैं। 

प्रकाश तरंग धैर्य

प्रकाश का तरंग दैर्ध्य 3900 A० (एंग्स्ट्रोम) से 7800 A० (एंग्स्ट्रोम) के बीच होता है। प्रकाश का विद्युत चुंबकीय तरंग सिद्धांत प्रकाश के केवल कुछ गुणों की व्याख्या कर पता है; जैसे– प्रकाश का व्यतिकरण एवं प्रकाश का ध्रुवण।

विद्युत चुंबकीय अनुप्रस्थ तरंग होती है। प्रकाश के कुछ गुण ऐसे हैं जिनकी व्याख्या तरंग सिद्धांत नहीं कर पाता है।  जैसे– प्रकाश विधुत प्रभाव तथा क्राम्पटन सिद्धांत।

प्रकाश विधुत प्रभाव तथा क्राम्पटन सिद्धांत की व्याख्या आइंस्टीन द्वारा प्रतिपादित प्रकाश के फोटोन सिद्धांत द्वारा दी जाती है। वास्तव में यह दोनों प्रभाव प्रकाश की कण प्रकृति को प्रकट करते है।

प्रकाश का फोटोन सिद्धांत

इसके अनुसार प्रकाश ऊर्जा के छोटे छोटे बण्डलों या पैकेटो के रूप में चलता है , जिन्हें फोटोन करते है। आज प्रकाश को कुछ घटनाओं में तरंग और कुछ में कण माना होता है इसी को प्रकाश की दोहरी प्रकति कहते है।

प्रकाश के वेग की गणना सबसे पहले रोमन ने की थी। वायु और निर्वात में प्रकाश की चाल सबसे अधिक होती है। ( 3.00×108m/s)

प्रकाश की चाल माध्यम के अपवर्तनांक पर निर्भर करती है जिस माध्यम का अपवर्तनांक जितना अधिक होता है, उसमे प्रकाश की चाल उतनी ही कम होती है। प्रकाश को सूर्य से पृथ्वी तक आने में औसतन 8 मिनट 16.6 सेकंड का समय लगता है।

प्रकाश के व्यवहार

प्रकाश के प्रति व्यवहार के आधार पर वस्तुओं को निम्न भागों में बांटा जा सकता है–

चमकदार वस्तुएँ (luminous bodies): वे वस्तुएँ जो स्वयं के प्रकाश से प्रकाशित होती है. जैसे– सूर्य, विधुत, बल्ब

गैर चमकदार वस्तुएँ(Non-luminous Bodies): वे वस्तुएँ जिनका स्वयं का प्रकाश नहीं होता लेकिन उनपर प्रकाश डालने पर दिखाई देने लगती है. जैसे– मेज, कुर्सी आदि।

पारदर्शी वस्तुएँ (Transparent Bodies): वे वस्तुएं जिनमें से होकर प्रकाश की किरणें निकल जाती है जैसे–कांच और जल आदि।

अर्धपारदर्शी वस्तुएँ (Translucent Bodies): कुछ वस्तुएँ ऐसी होती है जिन पर प्रकाश की किरणें पड़ने से उनका कुछ भाग तो अवशोषित हो जाता है, तथा कुछ भाग बाहर निकल जाता है; जैसे तेल लगा हुआ कागज।

अपारदर्शी वस्तुएँ (Opaque Bodies): अपारदर्शी वस्तुएँ वे वस्तुएं है जिनमें होकर प्रकाश की किरणें बाहर नहीं निकल पाती है; जैसे– धातु आदि।

प्रकाश का विवर्तन (Diffraction of Light): प्रकाश के अवरोध के किनारों पर थोडा मुड़कर उसकी छाया में प्रवेश करने की घटना को विवर्तन कहते है।

प्रकाश का प्रकीर्णन (Scattering of Light): जब प्रकाश किसी ऐसे माध्यम से गुजरता है, जिसमें धूल तथा अन्य पदार्थो के अत्यंत सूक्ष्म कण होते है, तो इनके द्वारा प्रकाश सभी दिशाओं में प्रसारित हो जाता है, इस घटना को प्रकाश का प्रकीर्णन कहा हाता है। बैंगनी रंग के प्रकाश का प्रकीर्णन सबसे अधिक तथा लाल रंग के प्रकाश का प्रकीर्णन सबसे कम होता है आकाश का रंग नीला प्रकाश के प्रकीर्णन के कारण होता है।

प्रकाश का परावर्तन(Reflection of Light):  प्रकाश का परावर्तन

उच्च कोटि की पॉलिश किया हुआ पृष्ठ, जैसे कि दर्पण, अपने पर पड़ने वाले अधिकांश प्रकाश को परावर्तित कर देता है।

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प्रकाश के परावर्तन के नियम

  • आपतन कोण, परावर्तन कोण के बराबर होता है,
  • आपतित किरण, दर्पण के आपतन बिंदु पर अभिलंब तथा परावर्तित किरण, सभी एक ही तल में होते हैं।
  • परावर्तन के ये नियम गोलीय पृष्ठों सहित सभी प्रकार के परावर्तक पृष्ठों के लिए लागू होते हैं।
  • समतल दर्पण द्वारा प्रतिबिंब के बनने की विशेषताएँ
  • समतल दर्पण द्वारा बना प्रतिबिंब सदैव आभासी तथा सीधा होता है।
  • प्रतिबिंब का साइज़ बिंब (वस्तु) के साइज़ के बराबर होता है।
  • प्रतिबिंब पार्श्व परिवर्तित होता है।
  • प्रतिबिंब दर्पण के पीछे उतनी ही दूरी पर बनता है, जितनी दूरी पर दर्पण के सामने बिंब रखा होता है।

समतल दर्पण से परावर्तन

विचलन (Deviation) : इसे δ से व्यक्त करते है। जो आपतित किरण एवं निर्गत किरण की दिशाओं के मध्य कोण है अत: यदि प्रकाश i आपतन के कोण पर आपतित होता है

 एक समतल दर्पण द्वारा बनाये गये प्रतिबिम्ब के अभिलाक्षिक गुण :

 (i) एक समतल दर्पण द्वारा बनाया गया प्रतिबिम्ब आभासी होता है।

(ii) एक समतल दर्पण द्वारा बनाया गया प्रतिबिम्ब सीधा होता है।

(iii) एक समतल दर्पण द्वारा बनाया गया प्रतिबिम्ब का आकार वह होता है जो कि बिम्ब का है। यदि बिम्ब 10 cm ऊँचा हो तो बिम्ब का प्रतिबिम्ब भी 10 cm ऊँचा होगा।

(iv) एक समतल दर्पण द्वारा बनाये गये प्रतिबिम्ब की दर्पण के पीछे वही दूरी होगी जो कि बिम्ब की दर्पण के सामने होती है। मान लीजिए एक बिम्ब एक समतल दर्पण के सामने 5 cm पर रखा जाता है। तब इसका प्रतिबिम्ब समतल दर्पण के पीछे 5 cm पर होगा।

(v) एक समतल दर्पण द्वारा बनाया गया है प्रतिबिम्ब पाश्र्व रूप से व्युत्क्रमित होता है। अर्थात्् बिम्ब का दाया पक्ष प्रतिबिम्ब के बायें पक्ष के रूप में नजर आयेगा एवं बिम्ब का बायां पक्ष प्रतिबिम्ब के दायें प़्ाक्ष के रूप में नजर आयेगा।

गोलीय दर्पण से प्रकाश का परावर्तन

गोलीय दर्पण (Spherical Mirror) वैसा दर्पण होता है, जिसकी परावर्तक सतह (Reflecting Surface) काँच के खोखले गोले का हिस्सा होती है। गोलीय दर्पण दो प्रकार के होते हैः अवतल दर्पण (Concave Mirror) और उत्तल दर्पण (Convex Mirror)

अवतल दर्पण में प्रकाश की परावर्तक सतह भीतर की तरफ मुड़ी (Bent) हुई या अवतल सतह वाली होती है। एक चम्मच की भीतरी चमकदार सतह अवतल दर्पण का उदाहरण है। उत्तल दर्पण में प्रकाश की परावर्तक सतह बाहर की ओर उभरी हुई या उत्तल सतह वाली होती है। चम्मच का पिछला हिस्सा उत्तल दर्पण का उदाहरण है।

वक्रता केंद्रः गोलीय दर्पण में वक्रता केंद्र (centre of curvature) दर्पण के खोखले गोले का केंद्र बिन्दु होता है।अवतल दर्पण में वक्रता केंद्र दर्पण के सामने होता है, लेकिन उत्तल दर्पण में वक्रता केंद्र दर्पण के पीछे होता है।

ध्रुव (Pole): गोलीय दर्पण पर केंद्र बिन्दु ध्रुव (pole) कहलाता है।

वक्रता त्रिज्या (radius of curvature): वक्रता केंद्र और ध्रुव के बीच की दूरी |

प्रधान अक्ष (Principal axis): वक्रता केंद्र और ध्रुव के बीच से होकर गुजरने वाली सीधी रेखा ।

दर्पण का विवर (Aperture of mirror): दर्पण का वह हिस्सा जिससे प्रकाश का परावर्तन होता है|

अवतल दर्पण का मुख्य फोकसः प्रधान अक्ष का वह बिन्दु,जहां पर अवतल दर्पण से परावर्तित होने के बाद प्रकाश की सभी किरणें,जोकि अक्ष के समानांतर होती हैं, संकेंद्रित हो जाती हैं।

अवतल दर्पण की फोकस दूरी (Focal length): ध्रुव और मुख्य फोकस के बीच दूरी।

उत्तल दर्पण का मुख्य फोकसः प्रधान अक्ष का वह बिन्दु, जहां पर उत्तल दर्पण से परावर्तित होने के बाद प्रकाश किरणें बिखर जाती हैं

उत्तल दर्पण :- वह दर्पण जिसका परावर्तक सतह बाहर की ओर उभरा रहता है , उसे उत्तल दर्पण कहते हैं । उत्तल दर्पण प्रकाश को बाहर की ओर प्रतिबिम्बित करती है ।।उत्तल दर्पण का उपयोग घर के दरवाजे में , पीछे से आ रहे वाहनों को देखने के लिए गाड़ियों में उत्तल दर्पण का ही उपयोग किया जात है ।

अवतल दर्पण :- वह दर्पण जीका परावर्तक सतह अंदर की ओर उभरा रहता है , उसे अवतल दर्पण कहते है । अवतल दर्पण प्रकाश कप अंदर की ओर प्रतिबिम्बित करता है , यही कारण है कि इसका उपयोग दाढ़ी बनाने , टार्च में , सोलरकुकर में , हेडलाइट में , दांत के डॉक्टर द्वारा उपयोग में लाया जाता है ।

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