मानव में जनन किस प्रकार होता है,एवं मानव का जनन तंत्र


  मानव में जनन और जननांग  

मानव में लैंगिक जनन होता है।

परिचय

मानव जनन करने के लिए कब परिपक्व होता है यह जानने के लिए हम अपने बचपन  में चलते हैं और बचपन से लेकर किशोरावस्था में आते - आते जिन शारीरिक और भावनात्मक बदलाव का अनुभव किया है उस पर फिर से विचार करते है । हमने पाया कि-

आयु के साथ-साथ हमारे शरीर में कुछ परिवर्तन आते हैं। जन्म से 14 वर्ष तक पहुँचते-पहुँचते हमारी लंबाई एवं भार बढ़ जाता है। हमारे दाँत जो गिर जाते हैं, दूध के दाँत कहलाते हैं तथा नए दाँत निकल आते हैं। इन सभी परिवर्तनों को एक सामान्य प्रक्रम वृद्धि में समूहबद्ध कर सकते हैं जिसमें शारीरिक वृद्धि होती है।

            किशोरावस्था के प्रारंभिक वर्षों में, कुछ ऐसे परिवर्तन होते हैं जिन्हें मात्र शारीरिक वृद्धि नहीं कहा जा सकता। जबकि, शारीरिक सौष्ठव ही बदल जाता है। शारीरिक अनुपात बदलता है, नए लक्षण आते हैं तथा संवेदना में भी परिवर्तन आते हैं। इनमें से कुछ परिवर्तन तो लड़के एवं लड़कियों में एकसमान होते हैं। 

हम देखते हैं कि-

👉शरीर के कुछ नए भागों जैसे कि काँख एवं जाँघों के मध्य जननांगी क्षेत्र में बाल-गुच्छ निकल आते हैं। तथा उनका रंग भी गहरा हो जाता है।
👉पैर, हाथ एवं चेहरे पर भी महीन रोम आ जाते हैं। त्वचा अक्सर तैलीय हो जाती है तथा कभी-कभी मुँहासे भी निकल आते हैं।
👉हम अपने और दूसरों के प्रति अधिक सजग हो जाते और आकर्षित होने लगते हैं।

कुछ ऐसे भी परिवर्तन हैं जो लड़कों एवं लड़कियों में भिन्‍न होते हैं।

👉लड़कियों में स्तन के आकार में वृद्धि होने लगती है स्तनाग्र की त्वचा का रंग  गहरा होने लगता है।
👉लड़कियों में रजोधर्म होने लगता है।
👉लड़कों के चेहरे पर दाढ़ी-मूँछ निकल आती है
👉लड़कों की आवाज़ फटने लगती है।
👉दिवास्वप्न अथवा रात्रि में शिश्न भी अक्सर विवर्धन के कारण ऊर्ध्व (ऊपर की ओर सीधा खडा) हो जाता है।

ये सभी परिवर्तन महीनों एवं वर्षों की अवधि में मंद गति से होते हैं। इन सभी परिवर्तनों में विभिन्‍न व्यक्तियों के बीच विविधता परिलक्षित होती है। जैसे कि हमारे नाक-नक्श अलग-अलग हैं उसी प्रकार इन बालों की वृद्धि का पैटर्न, स्तन अथवा शिश्न की आकृति एवं आकार भी भिन्न होते हैं। लैंगिक जनन में भाग लेने के लिए जनन कोशिकाओं का उत्पादन इसी प्रकार का एक विशिष्ट कार्य है।

            जैसे-जैसे शरीर की सामान्य वृद्धि दर धीमी होनी शुरू होती है, जनन-ऊतक परिपक्व होना प्रारंभ करते हैं। किशोरावस्था कौ इस अवधि को यौवनारंभ कहा जाता है।

लैंगिक जनन प्रणाली का अर्थ है, कि दो भिन्न व्यक्तियों की जनन कोशिकाओं का परस्पर संलयन।यदि जंतुओं को संगम के इस प्रक्रम में भाग लेना हो, तो यह आवश्यक है कि दूसरे जीव उनकी लैंगिक परिपक्वता की पहचान कर सकें। यौवनारंभ की अवधि में अनेक परिवर्तन जैसे कि बालों का नवीन पैटर्न इस बात का संकेत है कि लैंगिक परिपक्वता आ रही है।

व्यक्तियों के बीच जनन कोशिकाओं के वास्तविक स्थानांतरण हेतु विशिष्ट अंग/संरचना की आवश्यकता होती है; उदाहरण के लिए शिश्न के ऊर्ध्व होने की क्षमता। स्तनधारियों जैसे कि मानव में शिशु माँ के शरीर में लंबी अवधि तक गर्भस्थ रहता है तथा जन्मोपरांत स्तनपान करता है। इन सभी स्थितियों के लिए मादा के जननांगों एवं स्तन का परिपक्व होना आवश्यक है।

जनन तंत्र 

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मानव का नर जनन तंत्र 

जनन कोशिका उत्पादित करने वाले अंग एवं जनन शुक्राशय कोशिकाओं को निषेचन के स्थान तक पहुँचाने वाले अंग, संयुक्त रूप से, नर जनन तंत्र  बनाते हैं।

नर जनन-कोशिका अथवा शुक्राणु का निर्माण वृषण में होता है। यह उदर गुहा के बाहर वृषण कोष में स्थित होते हैं। इसका कारण यह है कि शुक्राणु उत्पादन के लिए आवश्यक ताप शरीर के ताप से कम होता है। टेस्टोस्टेरॉन हार्मोन के उत्पादन में वृषण की मुख्य भूमिका है। शुक्राणु उत्पादन के नियंत्रण के अतिरिक्त टेस्टोस्टेरॉन लड़कों में यौवनावस्था के लक्षणों का भी नियंत्रण करता है।

शुक्रवाहिकाएँ

उत्पादित शुक्राणुओं का मोचन शुक्रवाहिकाओं द्वारा होता है। ये शुक्रवाहिकाएँ मूत्राशय से आने वाली नली से जुड़ कर एक संयुक्त नली बनाती है। अतः मूत्रमार्ग (पल) शुक्राणुओं एवं मूत्र दोनों के प्रवाह के उभय मार्ग है। प्रोस्ट्रेट तथा शुक्राशय अपने स्राव शुक्रवाहिका में डालते हैं जिससे शुक्राणु एक तरल माध्यम में आ जाते हैं। इसके कारण इनका स्थानांतरण सरलता से होता है साथ ही यह स्राव उन्हें पोषण भी प्रदान करता है।

शुक्राणु

शुक्राणु सूक्ष्म सरंचनाएँ हैं जिसमें मुख्यतः आनुवंशिक पदार्थ होते हैं तथा एक लंबी पूँछ होती है जो उन्हें मादा जनन-कोशिका की ओर तैरने में सहायता करती है।

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मानव का मादा जनन तंत्र

अंडाशय

अंडाशय महिला प्रजनन प्रणाली का एक हिस्सा है जिसे महिला जननांग भी कहा जाता है और ये पेडू में गर्भाशय के दोनों तरफ स्थित होते हैं। प्रत्येक अंडाशय एक अखरोट के आकार और आकृति का होता है। अंडाशय अंडा और महिला हॉर्मोन का उत्पादन करते हैं जो महिला शरीर के लक्षण, मासिक धर्म और गर्भावस्था के विकास को नियंत्रित करते हैं।

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गर्भ नली (फेलोपियन ट्यूब)

गर्भाशय और अंडाशय के बीच पेट में स्थित फैलोपियन ट्यूबों को गर्भाशय ट्यूब भी कहा जाता है। गर्भाशय के दोनों तरफ दो फैलोपियन ट्यूब हैं। ये ओव्यूलेशन के दौरान अंडाशय से फुटे हुए अण्डे को निषेचन में एवं तत्पश्चात् भ्रूण को गर्भाशय तक पहुँचाने में मदद करती है।

गर्भाशय

महीन अंडवाहिका अथवा ग्रीवा 'फेलोपियन ट्यूब द्वारा यह अंडकोशिका गर्भाशय तक ले जाए जाते हैं। दोनों अंडवाहिकाएँ संयुक्त होकर एक लचीली योनि' थैलेनुमा संरचना का निर्माण करती हैं जिसे गर्भाशय कहते हैं। गर्भाशय ग्रीवा द्वारा योनि में खुलता है।

योनि

मादा के जननांग को योनि कहा जाता है। सामान्य तौर पर "योनि" शब्द का प्रयोग अक्सर भग के लिये किया जाता है, लेकिन जहाँ भग बाहर से दिखाई देने वाली संरचना है वहीं योनि एक विशिष्ट आन्तरिक संरचना है। योनि बहुत संवेदनशील होती है।  यह दोनों जाँघो के बीच योनि का प्रवेश-द्वार है। व्यस्क स्त्रियों में यह चारो और से बालों से घिरा होता है। यह त्वचा की कई परतों से बनी होती है, यह कई उपांगों से मिलकर बनी होती है जैसे-

भगशिशिनका
मूत्रमार्ग का छिद्र
योनि की झिल्ली (हाइमेन)
लघु ग्रंथियां
भगोष्ठ

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यह गर्भाशय से योनि प्रघाण तक फैली हुई लगभग 8 से 10 सेमीमीटर लम्बी नली होती है जो मूत्राशय एवं मूत्रमार्ग के पीछे तथा मलाशय एवं गुदामार्ग के सामने स्थित होती है। 

मैथुन के समय शुक्राणु योनि मार्ग में स्थापित होते हैं जहाँ से ऊपर की ओर यात्रा करके वे अंडवाहिका तक पहुँच जाते हैं, जहाँ अंडकोशिका से मिल सकते हैं। निषेचित अंडा विभाजित होकर कोशिकाओं की गेंद जैसी संरचना या भ्रूण बनाता है। भ्रूण गर्भाशय में स्थापित हो जाता है, जहाँ यह लगातार विभाजित होकर वृद्धि करता है तथा अंगों का विकास करता है

भ्रूण को माँ के रुधिर से ही पोषण मिलता है, इसके लिए एक विशेष संरचना होती है जिसे प्लैसेंट कहते हैं। माँ के शरीर में गर्भ को विकसित होने में लगभग 9 मास का समय लगता है। गर्भाशय के पेशियों के लयबद्ध संकुचन से शिशु का जन्म होता है। 

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