कोशिका किसे कहते हैं, और यह कितने प्रकार की होती हैं


कोशिका विज्ञान

जीवों का शरीर एक या अनेक सूक्ष्म एवं कलायुक्त पृथक इकाइयों के रूप में होता है जिन्हें कोशिकाएं Cells कहते हैं। प्रत्येक कोशिका जीवन की एक स्वायत्त इकाई होती है। ‘राबर्टहुक’ ने सबसे पहले मृत पादप ऊतक (कार्क) में कोशिकाएँ देखी और इन्हें Cells की संज्ञा दी।

रार्बट हुक ने माइक्रोग्राफिया नामक पुस्तक लिखी। अनेक कोशिकाएॅ एक कोशिकीय जीवों के रूप में स्वतंन्त्र जीवन व्यतीत करती हैं, जबकि बहुकोशिकीय जीवों में कोशिकाए शरीर की संरचना एवं क्रियात्मक इकाइायों का काम करती हैं। अधिकांश बहुकोशिकीय जीव शरीरों में स्वयं कोशिकाएँ भी सुव्यवस्थित ऊतकों अंगों एवं अंग तन्त्रों में संगठित होती हैं। एन्टोनी वाल ल्यूवेन हाक सर्व प्रथम जीवित कोशिका देखी। इसके बाद जर्मन वैज्ञानिक श्लाइडेन एवं श्वान ने कोशिकावाद का प्रतिपादन किया।

कोशिकाओं को उनकी रचना के आधार पर दो भागों में बाॅटा गया है- (1) प्रोकैरियोटिक कोशिकाएँ एवं यूकैरियोटिक कोशिकाएँ ।

प्रोकैरियोटिक कोशिकाओं में वास्तविक केन्द्रक का आभाव, प्लास्टिक (Plastics) माइट्रोकान्ड्रिया गाल्गी उपकरण, अन्तः प्रद्रव्यी जालिकाएं अनुपस्थित होती हैं। इसके विपरीत यूकैरियोटिक कोशिकाओं में वास्तविक केन्द्रक उपस्थित होते हैं। मनुष्य की तंन्त्रिका कोशिकाएँ सबसे लम्बी (3 से 3.5 फिट) कोशिका तथा पौधों में रैमी की कोशिकाएँ सबसे लम्बी हैं। माइकोप्लाज्मा सबसे छोटी कोशिका (व्यास 0.1 से 0.3 मिमी0) तथा डाइलिस्टर न्यूमोसिटीन्स सबसे कम लम्बाई (0.15 से 0.3मिमी0) की कोशिका होती है।

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कोशिका की संरचना का अध्ययन करने पर हमें निम्न भाग दिखायी पड़तें हैं

1. कोशिका भित्ति Cell Wall :- प्राथमिक द्वितीयक तथा तृतीयक परतों से कोशिका भित्ति बनी होती है। प्राथिमिक कोशिका भित्ति सेल्यूलोज, हेमी सेल्युलोज, प्रोटीन लिपिड तथा कैल्यियम एवं मैग्नीशियम के कार्बोनेट से मिलकर बनी होती है। द्वितीयक भित्ति सबसे अधिक मोटी होती है तथा इनकी भित्तियों पर लिग्निन नामक पदार्थ का निक्षेपण रहता है। तृतीयक कोशिका भित्ति सूखे हुए जीवद्रव्य से बनी होती है। इन्हीं भित्तियों मे प्लाज्माडेस्मेटा नामक छिद्र पाये जाते हैं जो दो कोशिकाओं के बीच जीवद्रव्य के प्रवाह को बनाये रखते हैं। जन्तु कोशिकाओं में कोशिका भित्ति का तो अभाव होता है लिकिन कोशिका झिल्ली (Cell Membrane) पायी जाती है।

2. अन्त प्रद्रव्यी जालिका Endoplosmic Reticulam :- सिस्टर्नी (Eusterbae) पुटिका (Vesicles) एवं नालिकाओं से बनी एक रचना है। इसका एक सिरा केन्द्रक कला तथा दूसरा सिरा कोशिका कला से जुड़ा होता है। यह दो प्रकार की रूक्ष एवं चिकनी अन्तः प्रद्रव्यी जालिका होती है। यह दो प्रकार की रूक्ष एवं चिकनी अन्तः प्रद्रव्यी जालिका होती है। रूक्ष अतः प्रद्रव्यी जालिका के सतह पर राइबोसोम्स पाये जाते हैं और ये प्रोटीन संश्लेषण में भाग लेते हैं। चिकनी अन्तः प्रद्रव्यी जालिका के सतह पर राइबोसाम्स तो अनुपस्थित होते है, लेकिन ये स्टीरायड का निर्माण करते हैं।

3. लवक Plastids :- केवल पादप कोशिकाओं में पाये जाते है, रंग के आधार पर ये तीन प्रकार के हैं- (1) हरित लवक (Chloroplast) (2) वर्णी लवक (Chromoplast) तथा (3) आवर्णी लवक (Leucoplast) ये आपस में एक दूसरे में रूपान्तरित भी होते हैं। हरित लवक प्रकाश संश्लेषण की क्रिया के लिए जिम्मेदार होते हैं।

4. माइटोकान्ड्रिया Mitochondria :- स्तनधारी प्राणियों की लाल रूधिर कणिकाओं R.B.Cके अतिरिक्त सभी जीवित कोशिकाओं में पाया जाता है। इसकी खोज सर्वप्रथम कोलिकर नामक वैज्ञानिक ने कीटों की पेशियों में किया था तथा बन्डा नामक वैज्ञानिक ने यह नाम दिया माइटोकाड्रिया में ऑक्सीकरण, अपचयन तथा फास्फेटीकरण की क्रियाओं के फलस्वरूप कोशिका के लिए आवश्यक ऊर्जा ।A.T.P के रूप में बनती है। इसी कारण माइट्रोकान्ड्रिया को कोशिका ऊर्जा घर Power House कहते हैं।

5. गाल्गी उपकरण Golgi body :-. इसकी खोज कैमिलो गाल्गी द्वारा किये जाने के कारण इसका नाम गाल्गी उपकरण पड़ा। इसे बहुरूपीय भी कहा जाता है, क्योंकि आवश्यकतानुसार इसका रूप बदलता रहता है। यह कोशिका भित्ति निर्माण के लिए आवश्यक पेक्टिन तथा कुछ कार्बोहाइड्रेट का संश्लेषण करता है व लयनकाय तथा स्त्रवण पुटिकाओं का निर्माण होता है।

6. लाइसोसोम्स Lysosome :- एक रसधानी के समान रचना होती है जिसमें जल अपघटनी एन्जाइम भरे होते हैं। जो कोशिका के सभी पदार्थों का पाचन करते हैं। कोशिका में इसकी उपस्थिति का पता सर्वप्रथम सी0डी0डुवे C.D Duve ने लगाया। सामान्यतया लाइसोसोम्स संचयित पदार्थों वसा, ग्लाइकोजन, प्रोटीन आदि का पाचन कर कोशिका को ऊर्जा प्रदान करते है, परन्तु कभी-कभी ये फटकर समस्त कोशिका को नष्ट कर देते हैं। इसीलिए इसे आत्महत्या की थॅली भी कहते हैं।

7. राइबोसोम Ribosomes :- कोशिकाओं में प्रोटीन संश्लेषण का कार्य करते हैं, अतः इन्हें प्रोटीन निर्माण की फैक्ट्री कहा जाता है। इसे सर्वप्रथम क्लाॅडी ने प्रोटोप्लाज्मा में देखा।

8. पराक्सिसोम Peroxisomes :- अनेक कोशिकाओं (पौधों तथा तन्तु) में पाये जाते हैं। पौधों में ये प्रकाश श्वसन तथा जन्तुओं की यकृत कोशिकाओं में विषालु हाइड्रोजन पराक्साइड को कैटेलोज एन्जाइम द्वारा तोड़ने का और एकत्रित होने से रोकने का काम करते हैं। इसके अतिरिक्त जन्तु कोशिकाओं में ये वसा उपापचय में भी भाग लेते हैं।

9. स्फेरोसोम Sphaerosomes :- सूक्ष्म गोलाकार पुटकाएॅ होती हैं। इन पुटिकाओं में वसा तथा तेल का संश्लेषण करने वाले एन्जाइम होते हैं।

10. ग्लाइआक्सिसोम Glyoxysomes :- न्यूरोस्पोरा तथा योस्ट जैसे कवकों की कोशिकाओं में पाये जाते हैं तथा वसा युक्त पौधों के बीजों में पाये जाते हैं। ये वसा अम्ल के अपापचय तथा ग्लूकोज का वसा से पुर्नउत्पादन करते हैं।

11. सेन्ट्रोसोम अथवा तारक काय centrosomes :-. ये प्रोकैरियोट, डायटम, यीस्ट, शंकुवृक्ष तथा आवृत्तबीजी पौधों की कोशिकाओं के अतिरिक्त सभी पौधों तथा प्रोटाजोआ में पाये जाते हैं तथा कोशिका विभाजन के समय तर्कु तन्तु Spindle Fibreका निर्माण करते हैं।

12. केन्द्रक Nucleus :- इसे कोशिका का नियन्त्रक कक्ष भी कहते हैं राबर्ट ब्राउन ने कोशिकाओं में केन्द्रक की उत्पत्ति का पता लगाया। यह कोशिका तथा जीवों के आनुवांशिक लक्षणों पर नियन्त्रक रखता है। संरचना मे केन्द्रक केन्द्रक कला अथवा कैरियोथीका द्वारा घिरा रहता है जिसके अन्दर केन्द्रिका केन्द्रक द्रव्य तथा क्रोमैटिन धागे पाये जाते हैं। केन्द्रिका मुख्य रूप से राइबोन्युक्लिक अम्ल आर एन ए के संश्लेषण तथा राइबोसोम बनाने में भाग लेती है केन्द्रक द्रव्य पारदर्शक, कणिकामय तथा कुछ अम्लरागी पदार्थों से बना होता है। इसके मुख्य अवयवों में न्युक्लिक अम्ल आर एन ए तथा डी एन ए प्रोटीन (न्यूक्लिआॅहिस्टोन) एन्जाइम, लिपिड तथा खनिज पदार्थों के रूप में फास्फोरस, पोटैशियम, सोडियम आदि पाये जाते हैं। डी एन ए तथा आर एन ए को सम्मिलित रूप से न्युक्लिक अम्ल भी कहते हैं। इसकी खोज फ्रेडरिक मिशर ने किया था। न्यूक्लिक अम्ल न्यूक्लियोटाइड के अनेकअणुओं से मिलकर बना होता है। ये नाइट्रोजनी क्षार प्यूरिन अथवा पिरीमिडीन्स हो सकते हैं। न्यूक्लियोटाइड में से शर्करा को निकाल देने पर इसे न्यूक्लियोसाइड कहते है। क्रोमोसोम की खोज स्ट्रासबर्गर ने की थी।

नोट – कार्क की काट(Slide) मे कोशिका की खोज करने वाले वैज्ञानिक राबर्ट हुक।

  • जीवद्रव्य जीवन का भौतिक आधार है इस मत को देने वाले- हाक्सले
  • मानव शरीर का अध्ययन सर्वप्रथम किया – एन्ड्रियास वैसालियस ने।
  • सबसे छोटी कोशिका- माइकोप्लाज्मा या (P.P.L.O)
  • सबसे बड़ी कोशिका – शुतुरमुर्ग का अण्डा।
  • कोशिका की आत्महत्या की थैली कहा जाता है – लाइसोसोम
  • ग्लूकोज का आॅक्सीकरण होता है – माइटोकान्ड्रिया में।
  • टमाटर का लाल रंग किस वर्णीलवक के कारण होता है- लाइकोपीन
  • जीवित कोशिका की खोज- लुवेन हाॅक
  • पर्णहरिम का मुख्य कार्य है- प्रकाश संश्लेषण।
  • ऊर्जा दलाल या ऊर्जा सिक्का किसे कहते हैं- (A.T.P) को
  • स्बसे लम्बी कोशिका – मनुष्य की रीढ़ हड्डियों और मस्तिष्क मे पायी जाने वाली कोशिकाए
  • सेन्ट्रोसोम का कार्य है- कोशिका विभाजन में सहयोग।
  • प्रोटीन निर्माण की फैक्ट्री कहते हैं। राइबोसोम।

    डीएनए और आरएनए

    DNA

    (i) DNA आनुवांशिक पदार्थ है ।

    (ii) प्राय: यह केन्द्रक में गुणसूत्रों में पाया जाता है । यह अल्प मात्रा में कोशिका द्रव्य माइटकोन्ड्रीया व क्लोरोप्लास्ट में भी पाया जाता है ।

    (iii) DNA के एक अणु में न्यूक्लिओटाइड्‌स की संख्या काफी अधिक (लगभग 43 लाख तक) होती है ।

    (iv) DNA अणु द्विलडीय होता है । कुछ विषाणुओ में एकलडीय भी होता है । जैसे ɸ x174 जीवाणुभोजी ।

    (v) दोनों लड़ियां एक दूसरे पर विमुख दिशा से सर्पिलाकार रूप में लिपटी रहती है ।

    (vi) सर्पिलाकार कुण्डलन व क्षार युग्मन दोनों लड़ियों की पूरी लम्बाई में होता है ।

    (vii) DNA में डीआक्सीराइबीज पेन्टोज शर्करा पाई जाती है ।

    (viii) प्रमुख नाइट्रोजनी क्षारें A, G, C तथा T पाई जाती हैं ।

    (ix) A का युग्मन T से व G का C से होता है । A व T के मध्य द्विबंध तथा G व C के मध्य त्रिबंध पाया जाता है ।

    (x) DNA के एक अणु में प्यूरीन्स व पिरिमिडीन्स क्षारों की मात्रा बराबर होती हैं ।

    (xi) विकृतिकरण (Denaturation) के बाद पुन: प्राकृतिकरण की क्रिया अपूर्ण व मन्द गति से सम्पन्न होती है ।

    (xii) DNA अणु से पुनरावृत्ति द्वारा DNA व अनुलेखन द्वारा RNAs निर्मित किये जाते हैं ।

    (xiii) DNA में आनुवंशिक सूचनाएं कोडित रहती है ।

    RNA

    (i) RNA केवल कुछ विषाणुओं में ही आनुवांशिक पदार्थ का कार्य करता है । प्राय: यह प्रोटीन संश्लेषण का कार्य करता है ।

    (ii) प्राय: यह केन्द्रिका, राइबोसोम व कोशिका द्रव्य में मुक्त रूप से पाया जाता है । केन्द्रक द्रव्य व गुणसूत्रों में भी इसकी अल्प मात्रा मिलती है ।

    (iii) RNA में न्यूक्लिओटाइड्‌स की संख्या बहुत कम (लगभग 12,000 तक) होती है ।

    (iv) कोशिकीय RNA अणु एक लडीय होता है । कुछ विषाणुओं में द्विलडीय भी पाया जाता है । जैसे रियोवाइरस ।

    (v) RNA की एकलड़ी स्वयं पर ही वलित हो कुण्डलित संरचना बनाती है ।

    (vi) इनकी लड़ी में कुण्डलन व क्षार यूग्मन कहीं-कहीं पर होता है, शेष लड़ी अकुण्डलित रहती है ।

    (vii) RNA में पेन्टोज शर्करा पाई जाती है ।

    (viii) प्रमुख नाइट्रोजनी क्षारें तथा पायी जाती है ।

    (ix) A का युग्मन U से व G का C से होता है । A व U के मध्य द्विबंध तथा G व C के मध्य त्रिबंध पाया जाता है ।

    (x) RNA के एक अणु में पिरामिडीन्स व प्यूरीन्स की मात्रा बराबर नहीं होती है ।

    (xi) पुन: प्राकृतिकरण (Renaturation) की क्रिया पूर्ण व तीव्र गति से सम्पन्न होती है ।

    (xii) RNA में पुनरावृत्ति व अनुलेखन की क्रियाएं नहीं होती । कुछ विषाणुओं में RNA अणु से RNA व व्युतक्रम अनुलेखन द्वारा DNA बनते हैं ।

    (xiii) RNA प्राय: DNA में कोडित सूचनाओं का अनुवाद प्रोटीन संश्लेषण के रूप में के माध्यम से करता है ।

    कोशिका विभाजन

    प्रत्येक जीवित प्राणियों की उत्पत्ति एक कोशिका जाईगोट के रुप में होती है, जो बार बार विभक्त होकर एक बड़ी संख्या में कोशिकाओं का निर्माण करती है. कोशिका विभाजन का सर्वप्रथम 1855 में विरचाऊ ने देखा. इस घटना में पहले डीएनए का द्विगुनन और फिर केंद्रक तथा कोशिका द्रव्य का विभाजन होता है. कोशिका विभाजन प्रमुख रूप से 3 प्रकार का होता है.

    असुत्री विभाजन:- यह अविकसित कौशिकाओं जैसे जीवाणु, नील रहित शैवाल, यीस्ट, अमीबा तथा प्रोटोजोआ में होती है.

    सूत्री विभाजन:- यह विभाजन कायिक कोशिकाओं में होता है. इस प्रकार विभाजन में मातृकोशिका विभाजित हो कर दो समान नई संतति कोशिकाए बनाती है. सूत्री विभाजन के फलस्वरूप जीवों में वृद्धि होती है. शरीर एवम् उनमें स्थित अन्य कोशिकाओं की मरम्मत होती है तथा जख्म भरता है. किंतु कैंसर कोशिकाओं में सूत्री विभाजन की क्रिया अनियंत्रित एवं असीमित होती है.

    अर्द्धसूत्री विभाजन:- यह विभाजन लिंगी जनन करने वाले जीवो में होता है. इनमें गुणसूत्र द्विगुणित से विभाजित होकर अगुणित बनते हैं, इसलिए इस विभाजन को न्युन्कारी विभाजन कहते हैं. यह पराग कणों, बीजाण्ड या विजाणु धानी में होता है. जंतुओं में यह विभाजन वृषण एवं अंडाशय में होता है. इसके बाद यह दो भागों में बांटती है अर्द्धसूत्री I और अर्द्धसूत्री II. इसे विभाजन में क्रासिंग ओवर होता है, जिसमें दो गुण सूत्रों के बीच में जीनों का आदान प्रदान होता है.

    ♦ DNA न्यूक्लियोटाइड का बहुलक है. न्यूक्लियोटाइड एक कार्बनिक अणु है जो तीन छोटे अणुओं को जोड़ने से बनता है- 1) डीऑक्सीराइबोज शर्करा 2) फोस्फोरिक एसिड 3) बेस

    ♦ 1953 में एडमिन और क्रिक ने डीएनए का डबल हेलिक्स मॉडल बनाया और इस काम के लिए उन्हें 1962 में चिकित्सा विज्ञान के क्षेत्र में नोबल पुरस्कार दिया गया. हेलिक्स का व्यास 20 Å होता है.

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