कार्य, शक्ति (सामर्थ्य) तथा उर्जा, Work, Power and Energy

 कार्य, शक्ति (सामर्थ्य) तथा उर्जा

कार्य (Work): विज्ञान में हम उन सब कारणों को कार्य कहते हैं, जिनमें किसी वस्तु पर बल लगाने से वस्तु की स्थिति में परिवर्तन हो जाता है।

किसी वस्तु पर जितना अधिक बल लगाया जाता है तथा जितना अधिक वस्तु की स्थिति में विस्थापन होता है, कार्य उतना ही अधिक होता है। अत: कार्य की माप लगाये गये बल तथा बल की दिशा में वस्तु के गुणनफल के बराबर होती है। अर्थात्

कार्य = बल × बल की दिशा में विस्थापन

यदि किसी पिण्ड पर F बल लगाने से पिण्ड में बल की दिशा में ΔS विस्थापन हो तो बल द्वारा किया गया कार्य

W = F x ΔS

यदि बल F, पिण्ड के विस्थापन की दिशा में होकर उससे θ कोण बना रहा हो, तब किया गया कार्य

W = F Cosθ × ΔS


क्योंकि F Cosθ, विस्थापन की दिशा में बल का घटक है।

यदि θ=90° तो Cosθ=0 W =0, अर्थात् यदि विस्थापन बल की दिशा के लम्बवत् है तो कोई कार्य नहीं होता। यदि कोई कुली अपने सिर पर ट्रक रखे प्लेटफार्म पर टहल रहा हो तो कोई कार्य नहीं कर रहा है (क्योकि उसका विस्थापन गुरुत्वीय बल के लम्बवत् है)। इसी प्रकार जब कोई उपग्रह पृथ्वी के चारों ओर चक्कर काटता है तो पृथ्वी द्वारा आरोपित बल की दिशा सदैव उपग्रह की गति की दिशा के लम्बतव् रहती है, अतः अभिकेन्द्री बल द्वारा उपग्रह पर कोई कार्य नहीं किया जाता। बल तथा विस्थापन दोनों ही सदिश राशियाँ हैं, परन्तु कार्य अदिश राशि है।

कार्य का मात्रक जूल है। यदि 1 न्यूटन का बल किसी पिण्ड को बल की दिशा में 1 मीटर विस्थापित कर दे तो किया हुआ कार्य 1 जूल कहलाता है। अर्थात्

1 जूल = 1 न्यूटन × 1 मीटर

शक्ति अथवा सामर्थ्य

किसी मशीन अथवा कर्ता के द्वारा कार्य करने की दर को सामथ्र्य कहते हैं।

अर्थात् सामर्थ्य = कार्य/समय

यदि कोई कर्ता t सेकण्ड में w कार्य करता है तो उसकी सामर्थ्य p का मान,


चूंकि कार्य का मात्रक जूल है, अतः सामर्थ्य का मात्रक जूल/सेकण्ड होगा। इसे वॉट कहते है। यदि 1 जूल कार्य 1 सेकण्ड में होता है तो सामर्थ्य,

1 वॉट = 1 जूल/सेकण्ड

सामान्य व्यक्ति की सामर्थ्य 0.05 से 0.1 अश्व- सामर्थ्य तक होती है।

उर्जा (Energy)

जब किसी वस्तु में कार्य करने की क्षमता होती है, तो कहा जाता है कि वस्तु में ऊर्जा है, जैसे-गिरते हुए हथौड़े, चलती हुई बन्दूक की गोली, तेज गति से बहता झरना, ऊष्मा इंजन, विद्युत सेल आदि ऐसी वस्तुयें हैं, जो कार्य कर सकती हैं। अत: इनमें ऊर्जा व कार्य एक दूसरे के समरूप हैं। ऊर्जा का मात्रक भी जूल होता है। यह दो प्रकार की होती है –

  1. गतिज ऊर्जा (Kinetic Energy): बन्दूक चलाने पर उसकी नली से निकलने वाली गोली में इतनी शक्ति होती है कि वह सामने की दीवार को भेद सकती है। इस उदाहरण में गति प्रदान कर द्रव्यमान को ऊर्जा दी गई।

द्रव्यमान में गति के कारण ऊर्जा को गतिज ऊर्जा कहते हैं।

माना m द्रव्यमान की कोई वस्तु v वेग से गतिमान है तो –


गजित ऊर्जा सदैव धनात्मक होती है।

  1. स्थिजित ऊर्जा (Potential Energy): किसी वस्तु की विशेष अवस्था अथवा स्थिति के कारण उसमें कार्य करने की जो क्षमता होती है, उसे वस्तु की स्थितिज ऊर्जा कहते हैं। उदाहरणस्वरूप दवी हुई स्प्रिंग, घड़ी में चाबी भरना, पृथ्वी से कुछ ऊंचाई पर स्थित वस्तु आदि में स्थितिज ऊर्जा संचित होती है।

स्थितिज ऊर्जा के कई रूप होते हैं, जैसे- प्रत्यास्थ स्थितिज उर्जा, गुरुत्वीय स्थितिज उर्जा, वैद्युत स्थितिज उर्जा, चुम्बकीय ऊर्जा, रासायनिक ऊर्जा, नाभिकीय ऊर्जा आदि।

गुरुत्वीय स्थितिज ऊर्जा (Gravitational potential energy)

जब वस्तु को ऊपर उठाते हैं, तो गुरुत्व बल के विरुद्ध किया गया कार्य ही उसमें ऊर्जा के रूप में एकत्र हो जाता है। किसी वस्तु की ऊँचाई पर ले जाने में उसमें जो ऊर्जा आ जाती है, उसे गुरुत्वीय स्थितिज ऊर्जा कहते हैं।

यदि m द्रव्यमान का पिण्ड पृथ्वी तल से h ऊंचाई पर स्थित है, तो वस्तु की गुरुत्वीय स्थितिज ऊर्जा = mgh जहाँ g गुरुत्वीय त्वरण है।

यान्त्रिक ऊर्जा (Mechanical Energy)किसी निकाय की सम्पूर्ण ऊर्जाओं के योग को उस निकाय की यान्त्रिक ऊर्जा कहते हैं।अथवा कार्य करने के लिए किसी वस्तु में विद्यमान गतिज ऊर्जा व स्थितिज ऊर्जा के योग को यांत्रिक ऊर्जा कहते हैं 

यांत्रिक ऊर्जा = गतिज ऊर्जा + स्थितिज ऊर्जा  या TME= KE+PE 

ऊर्जा का रूपान्तरण (Conversion of Energy)

भौतिक जगत में सभी प्रक्रियाओं में किसी न किसी प्रकार ऊर्जा का एक या अधिक रूपों में रूपान्तरण होता रहता है। उदाहरणार्थ, जब दो गतिमान वस्तुयें एक-दूसरे से टकराती हैं तो उनमें ध्वनि व ऊष्मा उत्पन्न होती है। ध्वनि व ऊष्मा भी ऊर्जा के एक रूप हैं। जब किसी वस्तु को बहुत अधिक गर्म करते हैं तो उसमें प्रकाश उत्पन्न होता है, जो कि ऊर्जा का एक रूप है। वैद्युत ऊर्जा, चुम्बकीय ऊर्जा की ऊर्जा के रूप है, जिनका एक-दूसरे में रूपान्तरण किया जा सकता है।

खाद्य पदार्थों में अन्तर्निहित ऊर्जा
खाद्य पदार्थअन्तर्निहित ऊर्जा
गेहूं3.2
चावल5.3
आलू3.7
दूध3.0

उर्जा के आंतरिक रूपांतरण के उदाहरण

  • जब हाथों को रगड़ा जाता है तब यांत्रिक ऊर्जा, घर्षण के द्वारा ऊष्मा ऊर्जा में बदलती है।
  • जब पत्थरों को काटने/पीसने के लिए आरी का प्रयोग करने पर यांत्रिक ऊर्जा, ऊष्मा, प्रकाश और ध्वनि ऊर्जा में परिवर्तित होती है।
  • बांधों में पानी में स्थितिज ऊर्जा होती है, जब जल को मुक्त किया जाता है। तब बहते/मुक्त जल में गतिज ऊर्जा होती है। बहते हुये पानी की गतिज ऊर्जा टरबाइन की पत्तियों को घुमाने से यांत्रिक ऊर्जा में परिवर्तित है। टरबाइन की यांत्रिक ऊर्जा को डायनेमो विद्युत ऊर्जा में बदल देती है।
  • विद्युत हीटर, अवन तथा गीजर में विद्युत ऊर्जा, ऊष्मा ऊर्जा में परिवर्तित हो जाती है।
  • विद्युत जनरेटर में यांत्रिक ऊर्जा, विद्युत ऊर्जा में परिवर्तित हो। जाती है।
  • जब पदार्थों को विस्फोटित किया जाता है तब रासायनिक ऊर्जा, ऊष्मा, प्रकाश और ध्वनि ऊर्जा में परिवर्तित हो जाती है।
  • प्रकाश संश्लेषण की क्रिया के दौरान, प्रकाश ऊर्जा, रासायनिक ऊर्जा में परिवर्तित हो जाती है।
  • सूर्य, हाइड्रोजन परमाणुओं के संलयन से अत्यधिक विशाल मात्रा में ऊष्मा और प्रकाश उर्जा का उत्पादन करता है।

ऊर्जा संरक्षण का सिद्धांत (principle of conservation of energy)

इस सिद्धांत के अनुसार, ऊर्जा न तो उत्पन्न और न नष्ट की जा सकती है, किंतु एक रूप से दूसरे रूप में उसका रूपांतर हो सकता है। गुरुत्व के अधीन किसी ऊंचाई से मुक्त रूप से गिरती हुई वस्तु की कुल ऊर्जा अपरिवर्तित रहती है, क्योंकि स्थितिज ऊर्जा की कमी गतिज ऊर्जा की वृद्धि से पूरी हो जाती है। जब वस्तु पृथ्वी तल पर पहुंचती है तो इसकी स्थितिज ऊर्जा शून्य हो जाती है और कुल ऊर्जा गतिज ऊर्जा में रूपांतरित हो जाती है। किंतु ऊर्जा की कीमत बढ़ती है। अत: गुरुत्व के अधीन मुक्त पवन में ऊर्जा का कुल योग पूर्ववत रहता है। अत: गुरुत्व के अधीन मुक्त पवन में ऊर्जा के संरक्षण के सिद्धांत का पालन होता है।

जब कोई चालक किसी पहाड़ी पर अपना वाहन चढ़ाता है तब उसकी चाल बढ़ा देता है क्योंकि, जब चालक वाहन को पहाड़ी पर चढ़ाता है तब वाहन की स्थितिज ऊर्जा में वृद्धि के कारण गतिज ऊर्जा की कमी को पूरा करने के लिए चालक वाहन की चाल बढ़ा देता है।

शक्ति  (Power)

किसी कर्ता द्वारा प्रति इकाई समय में किए गए कार्य को उस कर्ता की शक्ति कहते हैं अर्थात् शक्ति कार्य करने की समय दर है।

शक्ति = किया गया कार्य / कार्य करने में लगा समय या P = F.V

शक्ति को p द्वारा दर्शाया जाता है। यदि कार्य की मात्रा W करने में लगा समय t हो तो शक्ति जहां S विस्थापन है और V वेग है। शक्ति एक अदिश राशि है।

शक्ति का मात्रक

यदि कार्य जूल में और समय सेकण्ड में मापा गया हो तो शक्ति का मात्रक जूल प्रति सेकेण्ड होगा। जूल प्रति सेकेण्ड को ब्रिटेन के वैज्ञानिक जेम्स वाट के सम्मान में वाट कहा जाता है। वाट शक्ति का SI मात्रक है। अत: 1W = 1J/S

मशीन के कार्य करने की क्षमता वाट या किलोवाट में व्यक्त की जाती है। शक्ति का अन्य प्रचलित मात्रक अश्व शक्ति है, जिसका संकेत hp है।

1hp = 746 वाट

ऊर्जा और शक्ति में अन्तर

  1. ऊर्जा कार्य सम्पन्न होने में लगे समय पर निर्भर करती है, जबकि शक्ति समय पर निर्भर करती है। किसी कार्य को संपन्न होने में जितना कम समय लगता है, शक्ति उतनी ही अधिक होती है।
  2. ऊर्जा का SI मात्रक जूल है, जबकि शक्ति का SI मात्रक वाट है।
  3. ऊर्जा कार्य करने की क्षमता है, जबकि शक्ति कार्य करने की समय दर है।
  4. ऊर्जा रूपान्तरित करने वाले कुछ अतिमहत्त्वपूर्ण 10 उपकरण


    1• डायनमो — यांत्रिक ऊर्जा को विद्युत ऊर्जा मेँ
    2• ट्यूब लाइट — विद्युत ऊर्जा को प्रकाश ऊर्जा मेँ
    3• विद्युत मोटर — विद्युत ऊर्जा को यांत्रिक ऊर्जा मेँ
    4• विद्युत बल्ब — विद्युत ऊर्जा को प्रकाश एवं ऊष्मा ऊर्जा मेँ
    5• लाऊडस्पीकर — विद्युत ऊर्जा को ध्वनि ऊर्जा मेँ
    6• सोलर सेल — सौर ऊर्जा को विद्युत ऊर्जा मेँ
    7• मोमबत्ती — रासायनिक ऊर्जा को प्रकाश एवं ऊष्मा ऊर्जा मेँ
    8• माइक्रोफोन — ध्वनि ऊर्जा को विद्युत ऊर्जा मेँ
    9• विद्युत सेल — रासायनिक ऊर्जा को विद्युत ऊर्जा मेँ
    10• सितार — यांत्रिक ऊर्जा को ध्वनि ऊर्जा मे
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