प्रोटिस्टा जगत
सभी एककोशिक यूकैरियोटिक को प्रोटिस्टा के
अंतर्गत रखा गया है, परंतु इस जगत की सीमाएं ठीक
तरह से निर्धारित नहीं हो पाई हैं। एक जीव वैज्ञानिक के लिए जो प्रकाशसंश्लेषी
प्रोटिस्टा' है, वही दूसरे के लिए 'एक पादप' हो सकता है। क्राइसोफाइट, डायनोफ्लैजिलेट, युग्लीनॉइड, अवपंक कवक एवं प्रोटोजोआ सभी को इस
पुस्तक में प्रोटिस्टा के अंतर्गत रखा गया है। प्राथमिक रूप से प्रोटिस्टा के सदस्य जलीय होते हैं। यूकैरियोटिक
होने के कारण इनकी कोशिका में एक सुसंगठित केंद्रक एवं अन्य झिल्लीबद्ध कोशिकांग पाए जाते हैं। कुछ
प्रोटिस्टा में कशाभ एवं पक्ष्माभ भी पाए जाते हैं। ये अलैंगिक, तथा कोशिका संलयन एवं युग्मनज
(जाइगोट) बनने की विधि द्वारा लैंगिक प्रजनन करते हैं।
क्राइसोफाइट
इस समूह के अंतर्गत डाइएटम तथा सुनहरे शैवाल
(डेस्मिड) आते हैं। ये स्वच्छ जल एवं लवणीय (समुद्री) पर्यावरण दोनों में पाए जाते हैं। ये अत्यंत सूक्ष्म होते हैं तथा जलधारा के साथ
निश्चेष्ट रूप से बहते हैं। डाइएटम में कोशिका भित्ति साबुनदानी की तरह इसी के अनुरूप दो अतिछादित कवच बनाती है। इन
भित्तियों में सिलिका होती है, जिस कारण ये नष्ट नहीं होते हैं। इस प्रकार मृत डाइएटम अपने परिवेश (वास स्थान) में
कोशिका भित्ति के अवशेष बहुत बड़ी संख्या में छोड़ जाते हैं। करोड़ों वर्षों में जमा हुए इस अवशेष को “डाइएटमी
मृदा' कहते हैं। कणमय होने के कारण इस मृदा का उपयोग पॉलिश करने, तेलों तथा सिरप के निस्यंदन
में होता है।
डायनोफ्लैजिलेट
ये जीवधारी मुख्यतः समुद्री एवं प्रकाशसंश्लेषी होते हैं। इनमें उपस्थित प्रमुख वर्णकों के आधार पीले, हरे, भूरे, नीले अथवा लाल दिखते हैं। इनकी कोशिका भित्ति के बाह्य सतह अधिकतर डायनोफ्लैजिलेट में दो कशाभ होते हैं, जिसमें एक लंबवत् तथा दूसरा अनुप्रस्थ रूप से भित्ति पट्टिकाओं के बीच की खांच में उपस्थित होता है। प्रायः लाल डायनोफ्लैसिलेट की संख्या में विस्फोट होता है, जिससे समुद्र का जल लाल (लाल तरंगें) दिखने लगता है। इतनी बड़ी संख्या के जीव से निकले जीव-विष के कारण मछली एवं अन्य समुद्री जीव मर जाते हैं। उदाहरण: गोनियालैक्स ।
👉Life cycle of volvox, Sexual Reproduction in Volvox,
👉Protista Kingdom प्रोटिस्टा जगत
यूग्लीनॉइड
इनमें से अधिकांशत: स्वच्छ जल में पाए जाने
वाले जीवधारी हैं, जो स्थिर जल में पाए जाते
हैं। इनमें कोशिका भित्ति कौ जगह एक प्रोटीनयुक्त पदार्थ की पर्त पेलिकिल होती है, जो इनकी संरचना को लचीला बनाती है। इनमें दो कशाभ होते हैं जिसमें एक छोटा तथा दूसरा लंबा होता है। यद्यपि सूर्य के प्रकाश कौ
उपस्थिति में ये प्रकाशसंश्लेषी होते हैं, लेकिन सूर्य के प्रकाश के नहीं होने पर अन्य सूक्ष्म जीवधारियों का शिकार कर
परपोषी की तरह व्यवहार करते हैं। आश्चर्यजनक रूप से युग्लीनॉइड में पाए जाने वाले वर्णक उच्च पादपों में उपस्थित
वर्णकों के समान होते हैं। उदाहरण: युग्लीना
अवपंक कवक
अवपंक कवक मृतपोषी प्रोटिस्टा हैं। ये सड़ती
हुई टहनियों तथा पत्तों के साथ गति करते हुए जैविक पदाथों का भक्षण करते हैं। अनुकूल परिस्थितियों में ये समूह (प्लाज्मोडियम) बनाते
हैं, जो कई फीट तक की लंबाई का हो सकता है। प्रतिकूल परिस्थितियों में ये बिखरकर सिरों पर बीजाणुयुक्त फलनकाय
बनाते हैं। इन बीजाणुओं का परिक्षेपण वायु के साथ होता है। प्रोटोजोआ सभी प्रोटोजोआ परपोषी होते हैं, जो परभक्षी अथवा परजीवी के रूप में रहते हैं। ये प्राणियों के पुरातन संबंधी हैं। प्रोटोजोआ को चार प्रमुख समूहों में बाँठ जा
सकता है। अमीबीय प्रोटोजोआ: ये जीवधारी स्वच्छ जल, समुद्री जल तथा नम मृदा में पाए जाते हैं। ये अपने कूटपादों की
सहायता से अपने शिकार को पकड़ते हैं। इनके समुद्री प्रकारों कौ सतह पर सिलिका के कवच
होते हैं। इनमें से कुछ जैसे एटअमीबी परजीवी होते हैं।
सभी प्रोटोजोआ परपोषी होते हैं,
जो परभक्षी अथवा परजीवी के रूप में रहते हैं। ये प्राणियों के
पुरातन संबंधी हैं। प्रोटोजोआ को चार प्रमुख समूहों में बाँटा जा सकता है।
अमीबीय प्रोटोजोआ: ये जीवधारी स्वच्छ जल, समुद्री जल तथा नम मृदा में पाए जाते हैं। ये अपने कूटपादों की सहायता से अपने शिकार को पकड़ते हैं। इनके समुद्री प्रकारों कौ सतह पर सिलिका के कवच होते हैं। इनमें से कुछ जैसे एंटअमीबी परजीवी होते हैं।
कशाभी प्रोटोजोआ: इस समूह के सदस्य स्वच्छंद
अथवा परजीवी होते हैं, इनके शरीर पर कशाभ पाया
जाता है
परजीवी कशाभी प्रोटोजोआ बीमारी के कारण हैं, जिनसे
निद्रालु व्याधि नामक बीमारी होती है। उदाहरण:
ट्रिपैनोसोमा ।
पक्ष्माभी प्रोटोजोआ: ये जलीय तथा अत्यंत
सक्रिय गति करने वाले जीवधारी हैं, क्योंकि इनके शरीर पर हजारों की
संख्या में पक्ष्माभ पाए जाते हैं। इनमें एक गुहा (ग्रसिका)
होती है जो कोशिका की सतह के बाहर की तरफ खुलती
है। पक्ष्माभों की लयबद्ध गति के कारण जल से पूरित भोजन गलेट की तरफ भेज दिया जाता है। उदाहरण
पैरामीशियम।
स्पोरोजोआ: इस समूह में वे विविध जीवधारी आते हैं जिनके जीवन चक्र में संक्रमण करने योग्य बीजाणु जैसी अवस्था पाई जाती है। इसमें सबसे कुख्यात प्लाज्मोडियम (मलेरिया परजीवी) प्रजाति है, जिसके कारण मानव की जनसंख्या पर आघात पहुँचाने वाला प्रभाव पड़ा है।
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