Monera Kingdom मोनेरा जगत


मोनेरा जगत Kingdom Monera

 मोनेरा जगत

सभी बैक्टीरिया मॉनेरा जगत के अंतर्गत आते हैं। ये सूक्ष्मजीवियों में सर्वाधिक संख्या में होते हैं और लगभग सभी स्थानों पर पाए जाते हैं। मुट्ठी भर मिट्टी में सैकड़ों प्रकार के बैक्टीरिया देखे गए हैं। ये गर्म जल के झरनों, मरूस्थल, बर्फ एवं गहरे समुद्र जैसे विषम एवं प्रतिकूल वास स्थानों, जहाँ दूसरे जीव मुश्किल से ही जीवित रह पाते हैं, में भी पाए जाते हैं। कई बैक्टीरिया तो अन्य जीवों पर या उनके भीतर परजीवी के रूप में रहते हैं। बैक्टीरिया को उनके आकार के आधार पर चार समूहों गोलाकार कोकस (बहुबचन कोकाई) , छड़ाकार बैसिलस (बहुवचन बैसिलाई) कॉमा-आकार के, विब्रियम (बहुबचन-विब्रियाँ) तथा सर्पिलाकार स्पाइरिलम (बहुवचन स्पाइरिला) में बाँटा गया है यद्यपि संरचना में बैक्टीरिया अत्यंत सरल प्रतीत होते हैं; परंतु इनका व्यवहार अत्यंत जटिल होता है। चयपचाय (उपापचय) की दृष्टि से अन्य जीवधारियों की तुलना में बैक्टीरिया में बहुत अधिक विविधता पाई जाती है। उदाहरण स्वरूप वे अपना भोजन अकार्बनिक पदारथों से संश्लेषित कर सकते हैं। ये प्रकाश संश्लेषी स्वपोषी अथवा रसायन संश्लेषी स्वपोषी होते हैं, अर्थात्‌ वे अपना भोजन स्वयं संश्लेषित नहीं करते हैं; अपितु  भोजन के लिए अन्य जीवधारियों अथवा मृत कार्बनिक पदार्थों पर निर्भर रहते हैं।

मोनेरा जगत के जीवधारियों के मुख्य लक्षण

इनमें प्रोकैरिओटिक प्रकार का कोशिकीय संगठन पाया जाता है। अर्थात् कोशिका में आनुवंशिक पदार्थ. किसी झिल्ली द्वारा बँधा नहीं होता बल्कि जीवद्रव्य में बिखरा पड़ा रहता है।

इनकी कोशिका भिति अत्यंत सुदृढ़ रहती है। इसमें पोलीसैकेराइड्स के साथ एमीनो अम्ल भी होता है।

इनमें केन्द्रकीय झिल्ली अनुपस्थित होता है।

इनमें माइटोकॉण्ड्रिया, गॉल्जीकाय तथा रिक्तिका भी अनुपस्थित होती हैं।

ये प्रकाशसंश्लेषी, रसायन संश्लेषी या परपोषी होते हैं।

कुछ सदस्यों में वायुमंडलीय नाइट्रोजन के स्थिरीकरण (Fixation of atmospheric nitrogen) की क्षमता पाई जाती है।

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मोनेरा जगत का वर्गीकरण (Classification of monera kingdom): 

अध्ययन की सुविधा की दृष्टि से मोनेरा जगत को चार भागों में विभाजित किया गया है-

जीवाणु (Bacteria): ये वास्तव में पौधे नहीं होते हैं। इनकी कोशिकाभित्ति का रायायनिक संगठन पादप कोशिका के रासायनिक संगठन से बिल्कुल भिन्न होता है। यद्यपि कुछ जीवाणु प्रकाश संशलेषण करने में सक्षम होते हैं लेकिन उनमें विद्यमान बैक्टीरियोक्लोरोफिल पौधों में उपस्थित क्लोरोफिल से बिल्कुल भिन्न होता है।

एक्टिनोमाइसिटीज (Actinomycetes): इन्हें कवकसम जीवाणु भी कहते हैं। ये वे जीवाणु हैं जिनकी रचना कवक जाल के समान तन्तुवत या शाखित होती है। पहले इन्हें कवक माना जाता था, परन्तु प्रोकैरिओटिक कोशिकीय संगठन के कारण इन्हें अब जीवाणु माना जाता है। स्ट्रेप्टोमाइसीज इस समूह का एक महत्वपूर्ण वंश है। कवकसम जीवाणुओं की अनेक जातियों से विभिन्न प्रकार के प्रतिजैविक (Antibiotics) प्राप्त किए जाते हैं।

आर्कीबैक्टीरिया (Archaebacteria): ऐसा माना जाता है कि ये प्राचीनतम जीवधारियों के प्रतिनिधि हैं। इसलिए इनका नाम आर्की (Archae) अर्थात् बैक्टीरिया रखा गया है। इसलिए इन्हें प्राचीनतम जीवित जीवाश्म कहा जाता है। जिन परिस्थितियों में ये निवास करते हैं उनके आधार पर आक बैक्टीरिया को तीन समूहों में विभाजित किया गया है-मैथेनेजोन, हैलोफाइल्स तथा थर्मोएसिडोफाइल्स।

साइनोबैक्टीरिया (Cyanobacteria): साइनोबैक्टीरिया साधारणत: प्रकाश संश्लेषी (Photosynthetic) जीवधारी होते हैं। इन्हें पृथ्वी का सफलतम जीवधारियों का समूह माना जाता है। संरचना के आधार पर इनकी कोशिकाओं की मूलभूत संरचना शैवालों की अपेक्षा जीवाणुओं से अधिक समानता रखते हैं। साइनोबैक्टीरिया को नील-हरित शैवाल (Blue green algae) के नाम से भी जाना जाता है। ये कवक से लेकर साइकस तक अनेक जीवधारियों के साथ सहजीवी के रूप में रहते हैं।

अन्य

आद्य बैक्टीरिया

ये विशिष्ट प्रकार के बैक्टीरिया होते हैं, ये बैक्टीरिया अत्यंत कठिन वास स्थानों, जैसे-अत्यंत लवणीय क्षेत्र (हैलोफी), गर्म झरने (थर्मोएसिडोफिलस) एवं कच्छ क्षेत्र (मैथेनोजेन) में पाए जाते हैं। आद्य बैक्टीरिया तथा अन्य बैक्टीरिया कौ कोशिका भित्ति की संरचना एक दूसरे से भिन्‍न होती है। यही लक्षण उन्हें प्रतिकूल अवस्थाओं में जीवित रखने के लिए उत्तरदायी हैं। मैथेनोजेन अनेक रूमिनेंट पशुओं (जैसे गाय एवं भैंस) के आंत्र में पाए जाते हैं तथा इनके गोबर से मिथेन (जैव गैस) का उत्पादन करते हैं।

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यूबैक्टीरिया

हजारों यूबैक्टीरिया अथवा वास्तविक बैक्टीरिया कौ पहचान एक कठोर कोशिका भित्ति एवं एक कशाभ (चल बैक्टीरिया) द्वारा की जाती है। सायनो बैक्टीरिया (जिन्हें नील-हरित शैवाल भी कहते हैं) में हरित पादपों की तरह क्लोरोफिल-ए पाया जाता है तथा ये प्रकाश संश्लेषी स्वपोषी होते हैं (चित्र 2.2)। सायनो बैक्टीरिया एककोशिक, क्लोनीय अथवा तंतुमय अलवण जलीय समुद्री अथवा स्थलीय शैवाल हैं। इनकी क्लोनी प्रायः जेलीनुमा आवरण से ढकी रहती हैं जो प्रदूषित जल में बहुत फलते-फूलते हैं। बैक्टीरिया जैसे नॉस्‍्टॉक एवं एनाबिना पर्यावरण के नाइट्रोजन को टेटरोसिस्ट नामक विशिष्ट कोशिकाओं द्वारा स्थिर कर सकते हैं। रसायन संश्लेषी बैक्टीरिया नाइट्रेट, नाइट्राइट एवं अमोनिया जैसे विभिन्‍न अकार्बनिक पदाथों को ऑक्सीकृत कर उनसे मुक्त ऊर्जा का उपयोग एटीपी उत्पादन के लिए करते हैं। ये नाइट्रोजन, फॉस्फोरस, आयरन एवं सल्फर जैसे पोषकों के पुनर्चक्रण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

Monera Kingdom  मोनेरा जगत

परपोषी बैक्टीरिया प्रकृति में बहुलता से पाए जाते हैं और इनमें अधिकतर महत्वपूर्ण अपघटक होते हैं। इन परपोषी बैक्टीरिया में से अनेक का मनुष्य के जीवन संबधी गतिविधियों पर महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ता है। ये दूध से दही बनाने में, प्रतिजैविकों के उत्पादन में, लेग्युम पादप की जड़ों में नाइट्रोजन स्थिरिकरण में सहायता करते हैं। कुछ बैक्टीरिया रोगजनक होते हैं जो मनुष्यों, फसलों, फार्म एवं पालतू पशुओं को हानि पहुँचाते हैं। विभिन्‍न बैक्टीरिया के कारण हैजा, टायफॉयड, टिटनेस, साइट्रस, कैंसर जैसी बीमारियां होती हैं।

बैक्टीरिया प्रमुख रूप से कोशिका विभाजन द्वारा प्रजनन करते हैं। कभी-कभी, विपरीत परिस्थितियों में ये बीजाणु बनाते हैं। ये लैंगिक प्रजनन भी करते हैं, जिनमें एक बैक्टीरिया से दूसरे बैक्टीरिया में डीएनए का पुरातन स्थानांतरण होता है। माइकोप्लाज्मा ऐसे जीवधारी हैं, जिनमें कोशिका भित्ति बिल्कुल नहीं पाई जाती है। ये सबसे छोटी जीवित कोशिकाएं हैं, जो ऑक्सीजन के बिना भी जीवित रह सकती हैं। अनेक माइकोप्लाज्मा प्राणियों और पादपों के लिए रोगजनक होती हैं।

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