Kingdom Fungi, कवक (फंजाई ) जगत, Fungi Kingdom

कवक (फंजाई ) जगत

परपोषी जीवों में फंजाई (कवक) का जीव जगत में विशेष अद्भुत स्थान है। इनकी आकारिकी तथा वास स्थानों में बहुत भिन्‍नता होती है। आपने नम रोटी व सड़े हुए फलों में कवक को देखा होगा। सामान्य छत्रक (मशरूम) तथा कुकुरमुत्ता (टोडस्टूल) भी फंजाई हैं। सरसों की पत्तियों पर स्थित सफेद धब्बे परजीवी फंजाई के कारण होते हैं।कुछ एककोशिक फंजाई जैसे यीस्ट का उपयोग रोटी तथा बीयर बनाने के लिए किया जाता है। 

अन्य फंजाई पौधों तथा जंतुओं के रोग के कारण होते हैं। उदाहरण के लिए गेहूँ में किट्ट रोग पक्सिनिया के कारण होता है। कुछ फंगल जैसे पेनिसिलियम से प्रतिजैविक (एंटिबायोटिक) का निर्माण होता है। 

फंजाई विश्वव्यापी हैं और ये हवा, जल, मिट्टी में तथा जंतु एवं पौधों पर पाए जाते हैं। ये गरम तथा नम स्थानों पर सरलता से उग जाते हैं। क्या आपने कभी सोचा है कि हम अपने भोजन को रेफ्रिजरेटर में क्यों रखते हैं? हाँइससे हम अपने भोजन को बैक्टीरिया अथवा फंजाई के कारण खराब होने से बचाते हैं। फंजाई तंतुमयी है, लेकिन यीस्ट जो एककोशिक है इसका अपवाद है। 

ये लंबीपतली धागे कौ तरह की संरचनाएं होती हैं, जिन्हें कवक तंतु कहते हैं। कवक तंतु के जाल को कवक जाल (माइसीलियम) कहते हैं। कुछ कवक तंतु सतत नलिकाकार होते हैं, जिनमें बहुकेंद्रकित कोशिका द्रव्य (साइटोप्लाज्म) भरा होता है, जिन्हें संकोशिकी कवक तंतु कहते हैं। 

अन्य कवक तंतुओं में पटीय होते हैं। फंजाई कौ कोशिका भित्ति काइटिन तथा पॉलिसैकेराइड की बनी होती हैं। अधिकांश फंजाई परपोषित होती हैं। वे मृत बस्ट्रेट्स से घुलनशील कार्बनिक पदाथों को अवशोषित कर लेती हैं

अत: इन्हें मृतजीवी कहते हैं। जो फंजाई सजीव पौधों तथा जंतुओं पर निर्भर करती हैं, उन्हें परजीवी कहते हैं। ये शैवाल तथा लाइकेन के साथ तथा उच्चवर्गीय पौधों के साथ कवक मूल बना कर भी रह सकते हैं, ऐसी फंजाई सहजीवी कहलाती है।

Kingdom Fungi, कवक (फंजाई ) जगत, Fungi Kingdom


फंजाई में जनन कायिक-खंडन, विखंडन, तथा मुकुलन विधि द्वारा होता है। अलैंगिक जनन बीजाणु, जिसे कोनिडिया कहते है अथवा धानी-बीजाणु अथवा चलबीजाणु, द्वारा होता है। लैंगिक जनन निषिक्तांड (ऊस्पोरा), ऐँस्कस बीजाणु तथा बेसिडियम बीजाणु द्वारा होता है। विभिन्‍न बीजाणु सुस्पष्ट संरचनाओं में उत्पन्न होते हैं जिन्हें फलनकाय कहते हैं। लैंगिक चक्र में निम्नलिखित तीन सोपान होते हैं;

(a) दो चल अथवा अचल युग्मकों के प्रोटोप्लाज्म का संलयन होना। इस क्रिया को प्लैज्मोगैमी कहते हें।
(b) दो केंद्रकों का संलयन होना जिसे केंद्र संलयन कहते हैं।
(c) युग्मनज में मिऑसिस के कारण अगुणित बीजाणु बनना

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लैंगिक जनन में संयोज्य संगम के दौरान दो अगुणित कवक तंतु पास-पास आते हैं और संलयित हो जाते हैं। कुछ फंजाई में दो गुणित कोशिकाओं में संलयन के तुरंत बाद एक द्विगुणित कोशिका बन जाती है, यद्यपि अन्य फंजाई (ऐस्कोमाइसिटीज) में एक मध्यवर्ती ट्विकेंद्रकी अवस्था अर्थात्‌ एक कोशिका में दो केंद्रक बनते हैं; ऐसी परिस्थिति को केंद्रक युग्म कहते हैं तथा इस अवस्था को फंगस की विकेंद्रक प्रावस्था कहते हैं। बाद में पैतक केंद्रक संलयन हो जाते हैं और कोशिका ट्विगुणित बन जाती है। 

फंजाई फलनकाय बनाती है, जिसमें न्यूनीकरण विभाजन होता है जिसके कारण अगुणित बीजाणु बनते हैं। कवक जाल की आकारिकौ , बीजाणु बनने तथा फलन काय बनने कौ विधि जगत को विभिन्‍न वगों में विभक्त करने का आधार बनते हैं।

फाइकोमाइसिटीज

फाइकोमाइसिटीज जलीय आवासों, गली-सड़ी लकड़ी, नम तथा सीलन भरे स्थानों अथवा पौधों पर अविकल्पी परजीवी के रूप में पाए जाते हैं। कवक जाल अपटीय तथा बहुकेंद्रकित होता है। अलैंगिक जनन चल बीजाणु अथवा अचल बीजाणु द्वारा होता है। ये बीजाणु धानी में अंतर्जातीय उत्पन्न होते हैं। 

दो युग्मकों के संलयन से युग्माणु बनते हैं। इन युग्मकों की आकारिकी एक जैसी (समयुग्मकता) अथवा भिन्न (असमयुग्मकी अथवा विषमयुग्मकी) हो सकती है। इसके सामान्य उदाहरण हैं म्यूकर, राइजोपस (रोटी के कवक पहले ही बता चुके हैं) तथा ऐलबूगो (सरसों पर परजीवी फंजाई) हैं।

ऐस्कोमाइसिटीज

इसे सामान्यतः: थैली फंजाई भी कहते हैं। विरले पाए जाने वाले ऐस्कोमाइसिटीज एककोशिक जैसे यीस्ट (सकैरोमाइसीज) के अलावा ये बहुकोशिक जैसे पेनिसिलियम, होती है। ये मृतजीवी, अपघटक, परजीवी अथवा शमलरागी (पशुविष्टा पर उगनेवाली) होते हैं। कवक जालशाखित तथा पटीय होता है। 

अलैंगिक बीजाणु कोनिडिया होते हैं जो विशिष्ट कवकजाल जिसे कोनिडिमधर कहते हैं, पर बहिर्जात रूप से उत्पन्न होते हैं। कोनिडिया अंकुरित होकर कवक जाल बनाते हैं। 

लैंगिक बीजाणु को ऐस्कस बीजाणु कहते हैं। ये बीजाणु थैलीसम ऐस्कस में अंतर्जातीय रूप से उत्पन्न होते हैं। ये ऐसाई (एक वचन ऐस्कस) विभिन्‍न प्रकार कौ फलनकाय में लगी रहती हैं, जिन्हें ऐस्कोकार्प कहते हैं। इसके कुछ उदाहरण हैं ऐस्पर्जिलसक्लेवीसेप तथा न्यूरोस्पोरा हैं। 

न्यूरोस्परोश का उपयोग जैवरासायनिक तथा आनुवंशिक प्रयोगों में बहुत किया जाता है। इसी कारण यह पादप जगत के ड्रोसोफिला के समान प्रसिद्ध है। इस वर्ग में आने वाले मॉरिल तथा ट्रफल खाने योग्य होते हैं और इन्हें सुस्वादु भोजन समझा जाता है।

बेसिडियोमाइसिटीज

बेसिडियोमाइसिटीज के ज्ञात सामान्य प्रकार - मशरूम, ब्रेक्टफंजाई अथवा पफबॉल हैं। ये मिट्टी में, लट्ठे तथा वृक्ष के ढूँठों पर तथा सजीव पादपों के अंदर परजीवी के रूप में उगते हैं जैसे किट्ट तथा कंड (स्मट)। कवकजाल शाखित तथा पटीय होता है। 

इसमें अलैंगिक बीजाणु प्राय: नहीं होते हैं, लेकिन कायिक जनन खंडन विधि द्वारा बहुत सामान्य है। इसमें लैंगिक अंग नहीं होते, लेकिन इसमें प्लाज्मोगैमी विभिन्‍न स्ट्रेनो वाली दो कायिक कोशिकाओं अथवा जीन प्रारुप के संलयन से होती हैं। 

इसमें बनने वाली संरचना द्विकेंद्रकी होती है, जिससे अंततः बेसिडियम बनते हैं। बेसिडियम में केंद्रक संलयन (कैरियोगैमी) तथा मिऑसिस होता है जिसके कारण चार बेसिडियम बीजाणु बनते हैं। 

बेसिडियमबीजाणु बेसिडियम पर बहिर्जातीय उत्पन्न होते हैं। बेसिडियम फलनकाय में लगे रहते हैं जिसे बेसिडियो कार्प कहते हैं, इसके कुछ सामान्य उदाहरण ऐगैरिकस (मशरूम), आस्टीलैगो (कंड) तथा पक्सिनिया (किट्ट फंगस) हैं।

डयूटिरोमाइसिटीज

इसे प्रायः अपूर्ण कवक भी कहते हैं; क्योंकि इसकी केवल अलैंगिक अथवा कायिक प्रवस्था ही ज्ञात हो पाई है। जब इस फंजाई की लैंगिक प्रवस्था की खोज हो गयी, तब उसे उसके उचित वर्ग में रख दिया गया।  संभव है कि अलैंगिक तथा कायिक प्रवस्थाओं को एक नाम दे दिया गया हो (और उन्हें डयूटिरोमासिटीज में रख दिया गया हो। और लैंगिक प्रवस्था को दूसरे वर्ग में। बाद में जब उनके अनुबंधों (कड़ी) का पता लगा और फंजाई की उचित पहचान हो गई। तब उन्हें डयूटिरोमासिटीज से निकाल लिया गया। 

एक बार जब डयूटिरोमासिटीज के सदस्यों की उचित (लैंगिक) प्रवस्था का पता लग जाए तब उन्हें एस्कोमाइसिटीज और बेसिडियोमाइसिटीज में सम्मिलित कर लेते हैं। 

डयूटिरोमाइसिटीज केवल अलैंगिक बीजाणुओं, जिन्हें कोनिडिया कहते हैं, से जनन करते हैं। इसके कवक जाल पटीय तथा शाखित होते हैं। इसके कुछ सदस्य मृतजीवी अथवा परजीवी होते हैं। लेकिन उनके अधिकांश सदस्य अपशिष्ट के अपघटक होते हैं और खनिज के चक्रण में सहायता करते हैं। इसके कुछ उदाहरण आल्टरनेरिया, कोलीयेट्राइकम तथा ट्राईकोडर्मा हैं।

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