What is an organism जीव क्या है?

 

What is an organism? जीव क्या है?

आओ, हम इन सबको विस्तार से समझने का प्रयत्न करें।

सभी जीव वृद्धि करते हैं। जीवों के भार तथा संख्या में वृद्धि होना, ये दोनों वृद्धि के द्वियुग्मी अभिलक्षण हैं। बहुकोशिक जीव कोशिका विभाजन द्वारा वृद्धि करते हैं। पौधों में यह वृद्धि जीवन पर्यत कोशिका विभाजन द्वारा संपन्‍न होती रहती है। प्राणियों में. यह वृद्धि कुछ आयु तक होती है। लेकिन कोशिका विभाजन विशिष्ट ऊतकों में होता है ताकि विलुप्त कोशिकाओं के स्थान पर नई कोशिकायें आ सके। एककोशिक जीव भी कोशिका विभाजन द्वारा वृद्धि करते हैं। बड़ी सरलता से कोई भी इसे पात्रे संवर्धन में सूक्ष्मदर्शी (माइक्रोस्कोप) से देखकर कोशिकाओं की संख्या गिन सकता है।

cell division, rvseducation

       अधिकांश उच्चकोटि के प्राणियों तथा पादपों में वृद्धि तथा जनन पारस्परिक विशिष्ट घटनाएं हैं। हमें याद रखना चाहिए कि जीव के भार में वृद्धि होने को भी वृद्धि समझा जाता है। यदि हम भार को वृद्धि का अभिलक्षण मानते हैं तो निर्जीवों के भार में भी वृद्धि होती है। पर्वतगोलाश्म तथा रेत के टीले भी वृद्धि करते हैं। लेकिन निर्जीवों में इस प्रकार की वृद्धि उनकी सतह पर पदार्थों के एकत्र होने के कारण होती हैं। जीवों में यह वृद्धि अंदर की ओर से होती है। इसलिए वृद्धि को जीवों का एक विशिष्ट गुण नहीं मान सकते हैं। यह समझना चाहिए कि यह जीव तंत्र के लक्षण हैं।

     इस प्रकार जनन भी जीवों का अभिलक्षण है। वृद्ध्धि के संदर्भ में इस तथ्य की व्याख्या हो जाती है। बहुकोशिक जीवों में जनन का अर्थ अपनी संतति उत्पन्न करना है जिसके अभिलक्षण लगभग उसे अपने माता-पिता से मिलते हैं। निर्विवाद रूप से हम लैंगिक जनन के विषय में चर्चा कर रहे हैं। जीव अलैंगिक जनन भी करते हैं। फंजाइ (कवक) लाखों अलैंगिक बीजाणुओं द्वारा गुणन करती है और सरलता से फैल जाती है। निम्न कोटि के जीवों जैसे यीस्ट तथा हाइड्रा में मुकुलन द्वारा जनन होता है। प्लैनेरिया (चपटा कृमि) में वास्तविक पुनर्जनन होता है अर्थात्‌ एक खंडित जीव अपने शरीर के लुप्त अंग को पुनः प्राप्त (जीवित) कर लेता है और इस प्रकार एक नया जीव बन जाता है। फंजाइ, तंतुमयी शैवाल, मॉस का प्रथम तंतु सभी विखंडन विधि द्वारा गुणन करते हैं।


जब हम एककोशिक जीवों जैसे जीवाणु (बैक्टीरिया), एककोशिक शैवाल अथवा अमीबा के विषय में चर्चा करते हैं तब जनन की वृद्धि पर्यायवाची है अर्थात्‌ कोशिकाओं की संख्या में वृद्धि होती है। 

 कुछ ऐसे भी जीव हैं जो जनन नहीं करते (खेसर या खच्चर, बंध्य कामगार मधुमक्खी, अनुर्वर मानव युगल आदि)। इस प्रकार जनन भी जीवों का समग्र विशिष्ट लक्षण नहीं हो सकता। यद्यपि, कोई भी निर्जीव वस्तु जनन अथवा अपनी प्रतिलिपि बनाने में अक्षम है।

            जीवों का दूसरा लक्षण उपापचयन है। सभी जीव रसायनों से बने होते हैं। ये रसायन छोटे, बड़े, विभिन्‍न वर्ग, माप, क्रिया आदि वाले होते हैं जो अनवरत जैव अणुओं में बदलते और उनका निर्माण करते हैं। ये परिवर्तन रासायनिक अथवा उपापचयी क्रियाएं हैं। सभी जीवों, चाहें वे बहुकोशिक हो अथवा एककोशिक हों, में हजारों उपापचयी क्रियाएं साथ-साथ चलती रहती हैं। सभी पौधों, प्राणियों, कवकों (फेजाई) तथा सूक्ष्म जीवों में 'उपापचयी क्रियाएं होती हैं। हमारे शरीर में होने वाली सभी रासायनिक क्रियाएं उपापचयी क्रियाएं हैं। किसी भी निर्जीव में उपापचयी क्रियाएं नहीं होती। शरीर के बाहर कोशिका मुक्त तंत्र में उपापचयी क्रियाएं प्रदर्शित हो सकती हैं। 

        सभी जीवों का सबसे स्पष्ट परंतु पेंचीदा अभिलक्षण अपने आस-पास या पर्यावरण के उद्दीपनों, जो भौतिक, रासायनिक अथवा जैविक हो सकती हैंके प्रति संवेदनशीलता तथा प्रतिक्रिया करना है। हम अपने संवेदी अंगों द्वारा अपने पर्यावरण से अवगत होते हैं। पौधे प्रकाश, पानी, ताप, अन्य जीवों, प्रदूषकों आदि जैसे बाह्य कारकों के प्रति प्रतिक्रिया दिखाते हैं। प्रोकेरिऑट से लेकर जटिलतम यूकेरिऑट तक सभी जीव पर्यावरण संकेतों के प्रति संवदेना एवं प्रतिक्रिया दिखा सकते हैं। पादप तथा प्राणियों दोनों में दीप्ति काल मौसमी प्रजनकों के जनन को प्रभावित करता है। इसलिए सभी जीव अपने पर्यावरण से अवगत रहते हैं। मानव ही केवल ऐसा जीव है जो स्वयं से अवगत अर्थात्‌ स्वचेतन है। इसलिए चेतना जीवों को पारिभाषित करने के लिए अभिलक्षण हो जाती है।


 


 

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